प्रतापराव गूजर
प्रतापराव गूजर (जन्म: 1615 - मृत्यु: 24 फरवरी, 1674) छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना के सेनापति थे। उन्होंने सलहेर के युद्ध में एक बड़ी मुगल सेना को हराया। सल्हेर में मराठों की जीत को शक्तिशाली मुगलों के खिलाफ उनकी सैन्य प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है।
प्रतापराव गूजर को आदिलशाही सरदार बहलोल खान के नेतृत्व वाली हमलावर सेना का सामना करने के लिए भेजा गया था। मराठा सेना ने नेसरी में बहलोल खान के शिविर को घेर लिया। प्रतापराव की सेना ने युद्ध में विरोधी सेनापति को हरा कर पकड़ लिया। खान द्वारा मराठा क्षेत्र पर दोबारा आक्रमण न करने का वादा करने के बाद प्रतापराव ने बहलोल खान को उसकी सेना के साथ रिहा कर दिया और युद्ध सामग्री जब्त कर ली (लगभग 15 अप्रैल 1673)। इस घटना से छत्रपती शिवाजी नाराज हो गएl वही दूसरी ओर, बहलोल खान फिर से आक्रमक होकर स्वराज्य को हानी पहुचा रहा था l ऐसे मे, प्रतापराव को पता चला की बहलोल खान अपनी सेना के साथ नेसरी मे रुका हुआ हे तो प्रतापराव गुस्सा हो गये और अपने सिर्फ छाह साथी यो के साथ नेसरी चल पडे l वहा यह सात लोग बडी बहादुरी से लाडकर शहीद हो गये l
२४ अप्रैल १६७४ को अंग्रेजी दुभाषिया नारायण शेणवी के पत्र में दर्ज है कि प्रतापराव के साथ छह और वीर वीरगति को प्राप्त हुए। अन्य छह नायकों के नाम किसी भी विश्वसनीय स्रोत में नहीं मिल सकते हैं।
यह लडाई मराठों के इतिहास में एक नया अध्याय था। जब इस लडाई की वार्ता छत्रपती शिवाजी महाराज को पता चली तो महाराज बहोत दुखी हो गये। नेसरी गाव मे यह लड़ाई 24 फरवरी 1674 को हुई थी। इस लडाई का अतुलनीय वर्णन लोकशाहीर बशीर मोमीन (कवठेकर) द्वारा लिखित नाटक "वेडात मराठे वीर दौडले सात"[1] और कवि कुसुमग्रज द्वारा लिखित कविता "वेडात मराठे वीर दौडले सात" मे किया गाय हेl 'वेडात मराठे वीर दौडले सात' नाटक को १९ मई १९७७ को मळगंगा नाट्य निकेतन द्वारा प्रथमतः सादर किया गया था। इसमें प्रतापरावजी का किरदार श्री. फक्कड़ जोशी और छत्रपति शिवाजी महाराज का किरदार खुद श्री. बशीर मोमीन ने निभाया था l नाटक को मिल रहा अभूतपूर्व प्रतिसाद देखकर लेखक श्री. मोमीन कवठेकर ने इस नाटक को वागनाट्य में भी रूपांतरित किया, जिसे विभिन्न तमाशा दलो द्वारा ग्रामीण महाराष्ट्र में प्रस्तुत किया गया l[2].
समाधि
[संपादित करें]प्रतापराव गूजर की समाधि कोल्हापुर जिले के नेसरी (तालुका गढ़िंगलाज) नामक गाँव में है। [उद्धरण चाहिए] इसलिए जन्मगवी स्मारक है भुईकोट किले के रूप में एक स्मारक शुरू हुआ। लेकिन वह काम अधूरा रहता है। वर्तमान में यह जर्जर अवस्था में है। [उद्धरण चाहिए] [3]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ खंडूराज गायकवाड, लेखणीतून ग्रामीण लोककला संपन्न करणारे- बशीर मोमीन कवठेकर!, “दै नवाकाळ", 20-Jan-2019”
- ↑ अवलिया लोकसाहित्यिक "दै.सकाळ”, पुणे, 20-Nov-2021
- ↑ India. "Prataprao Gujar and Battle Of Salher [HIndi]". गायब अथवा खाली
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(मदद)