पिरिक जीत
किसी मुक़ाबले में पिरिक जीत (अंग्रेजी: Pyrrhic victory, पिरिक विक्ट्री) ऐसी जीत को कहा जाता है जिसको पाने के लिए विजेता को इतनी भारी हानि उठानी पड़े कि वास्तव में यह असली जीत ही न हो। यह आधुनिक भाषा में एक सूत्रवाक्य बन चुका है जिसका अर्थ है "ऐसी जीत जो ली तो जा सकती है, लेकिन अपने ही भले के लिए लेनी नहीं चाहिए।"
शब्दोत्पत्ति
[संपादित करें]माना जाता है कि "पिरिक जीत" का नाम प्राचीन यूनान और अल्बानिया के सीमावर्ती इलाके में स्थित इपायरस क्षेत्र के राजा पिरस (Pyrrhus, यूनानी: Πύρρος) पर रखा गया। इनकी रोमन साम्राज्य की फ़ौजों से सन् २८० ईसापूर्व में हेराक्लेया में और आस्क्युलम में २७९ ईसापूर्व में दो युद्ध हुए जिनमें यह विजयी रहे। हालांकि दोनों युद्धों में पिरिक सेना की मृतों से अधिक रोमन सेना के मृत थे, फिर भी रोमन सेना पिरस की सेना से कई गुना बड़ी थी और इन हारों के बावजूद उन्हें अंत में पराजित करने में सक्षम थी। कहा जाता है कि जब किसी ने राजा पिरस को उनकी जीत पर मुबारक दी तो उन्होंने कहा कि "अगर हम रोमनों से एक और युद्ध जीत गए, तो हम पूरी तरह बरबाद हो जाएँगे।"
प्रयोग का उदाहरण
[संपादित करें]कई आधुनिक युद्धों के सन्दर्भ में इस सूत्रवाक्य का प्रयोग हुआ है। मिसाल के लिए भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश द्वारा आरम्भ किये गए सन् २००३ के इराक़ युद्ध में औपचारिक रूप से तो अमेरिका की जीत हुई क्योंकि उनके मुख्य प्रतिद्वंदी, इराक़ के भूतपूर्व शासक सद्दाम हुसैन, की सेनाएँ हार गई और स्वयं सद्दाम हुसैन को फांसी मिली। फिर भी युद्ध में औपचारिक जीत के बाद अमेरिका की सेनाएँ इराक़ में गृह युद्ध और विद्रोहों में फँस गई और सन् २०११ तक ४,५०० से भी अधिक अमेरिकी सैनिक अपनी जानें खो चुके थे। इस स्थिति को राष्ट्रपति बुश की नीतियों के आलोचकों ने "पिरिक जीत" बुलाया है।[1]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Rajendra M. Abhyankar. "West Asia and the Region: Defining India's Role". Academic Foundation, 2008. ISBN 9788171886166. 18 अक्तूबर 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 7 अगस्त 2011.
... It is ironic that this pyrrhic victory was achieved on 8 अप्रैल 2003, the day Baghdad fell to the US Army ...
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