पिप्पलिवन

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पिप्पलिवन बुद्ध के समकालीन मौर्य वंशीय क्षत्रियों का गणराज्य था।[1] [2]सम्भवत: युवानच्वांग द्वारा उल्लिखित न्यग्रोधवन यही है । [3]फ़ाह्यान ने यहाँ के स्तूप की स्थिति कुशीनगर से 12 योजन पश्चिम की ओर बताई है।[4] पिप्पलिवन भारतीय इतिहास में मौर्य वंश के राजाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। पिप्पलिवन को पहले पिप्पलिवाहन भी कहा जाता था। [5]शाक्यों की उपशाखा मोरिय(मौर्य) वंश के क्षत्रिय सम्राट चंद्रवर्धन मोरिय अधिकार में पिप्पलिवन गणराज्य था।[6]इस गणराज्य का मुख्य नगर मोरियनगर था । [7]मोरिय, शाक्यों की शाखा थी और पिप्पलिवन में राज्य करती थी ।[8]

गण संघ (500 ईसा पूर्व)

प्रमुख गणराज्यों बौद्ध साहित्य में वर्णित अलकल्प के बुली, देवदह और रामग्राम के कोलिय, पिप्पलिवन के मोरिय, सुंसुमार पर्वत के भग्ग, वेसपुत के कालाम हैं। पाणिनि की ' अष्टाध्यायी ', कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' तथा ग्रीक विवरणों से अन्य गणराज्यों के उल्लेख भी मिलते हैं।[9]

युद्ध[संपादित करें]

धनानंद ने पिप्पलिवन गणराज्य पर आक्रमण किया था , जिस कारण मोरिय गणराज्य के राजा चन्द्रवर्धन की मृत्यु युद्ध मे हो जाती है और मोरिय क्षत्रियों के शासन का पतन हो जाता है। चन्द्रगुप्त पिप्पलिवन के क्षत्रियकुल “मोरिय” का वंशज था[10]

इतिहास[संपादित करें]

इतिहास में पिप्पलिवन (पीपल वनों) के निवासी आदिम क्षत्रिय मौर्य जाति में चंद्रगुप्त और अशोक जैसे महान् सम्राट हुए। मौर्य, शाक्य-कोलियों के सहोदर वंशज माने गये हैं।[11]चंद्रवर्धन मौर्य बौद्ध ग्रंथो के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य के पिता थे। वह शाक्य थे और पिप्पलिवन गणराज्य के प्रमुख थे।[12][13] कुछ विद्वानों का मत है कि ज़िला बस्ती, उत्तर प्रदेश में स्थित 'पिपरिया' या 'पिपरावा' नामक स्थान ही पिप्पलिवन है। पिप्पलिवन की निश्चित पहचान अभी तक नहीं हो सकी है। [14] यहीं के प्राचीन ढूह में से एक मृदभांड प्राप्त हुआ था, जिसके ब्राह्मी अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसमें बुद्ध के भस्मावशेष निहित थे।कोलिय गणराज्य के उत्तर में हिमालय, दक्षिण में राप्ती (अचिरावती) और दक्षिण-पूर्व में पिप्पलिवन के मोरिय;पड़ोसी के रूप में थे" । कोलियगण की पश्चिमी सीमा रोहिणी नदी बनाती थी ।[15]

बौद्ध साहित्य की कथाओं से सूचित होता है कि बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् उनकी अस्थि-भस्म को आठ भागों में बाँट दिया गया था। प्रत्येक भाग को लेकर उसको एक महास्तूप में सुरक्षित किया गया था। इस प्रकार के आठ स्तूप बनवाए गये थे। इनमें से अंगार स्तूप पिप्पलिवन में था। 'महापरिनिब्वानसुत्त' के अनुसार, महात्मा बुद्ध के देहांत के पश्चात्‌ पिप्पलिवन के मौर्यो ने कुशीनारा के मल्लों के पास संदेश भेजा था कि -"जैसे आप क्षत्रिय हैं, वैसे हम भी क्षत्रिय हैं। अतः हमें भी भगवान्‌ के शरीर के एक भाग को पाने का अधिकार है। हम भी भगवान्‌ के शरीर पर एक महान्‌ स्तूप का निर्माण करेंगे।" [16]

महावंश के मतानुसार चंद्रगुप्त पिप्पलिवन के मोरिय गण का राजकुमार था।[17] मोरियगण वज्जि महाजनपद के निकट ही स्थित था, जिस पर मगध का अधिकार था। पाटलिपुत्र में छिपी एक राजमहिषि चंद्रवर्धन मोरिय की पत्नी धर्मादेवीं ने पिप्पलिवन कुमार चंद्रगुप्त को जन्म दिया और मगध के राजकर्मचारियों के डर के कारण उसे एक ग्वाले को पालने के लिए दे दिया।

स्थान[संपादित करें]

पिप्पलिवन भारत का प्राचीन गणराज्य , 500 ईशा पूर्व

मोरिय राज्य कोलियों के पश्चिम तथा पूर्व और उत्तर-पूर्व में मल्ल राज्य तक फैला हुआ था। यह स्थल पीपल के पेड़ों से आच्छादित था। यह क्षेत्र चार मील लम्बे एवं दो मील चौड़े क्षेत्र में फैला हुआ था।[18] मौर्य राजाओं का मोरिय गण के साथ सम्बन्ध था, जिसकी राजधानी मयूरनगर थी।[19]

उत्पत्ति[संपादित करें]

कोसलराज प्रसेनजीत के बेटे विदूडभ के द्वार किये गये शाक्य गणराज्य पर आक्रमण और नरसंहार के कारण शाक्य राजपरिवार के लोग तितर बितर हो गये । कुछ शाक्य पालयान करके नया पिप्पलिवन गणराज्य बसाते है।[20]शाक्य गणराज्य से विस्थापित पिप्पलिवन[21] के मोरिय महाराज चंद्रवर्धन मौर्य एक महत्वपूर्ण इतिहासिक व्यक्ति थे। उनके पिता शाक्य गणराज्य के राजकीय परिवार से संबंधित थे।[22]

मोरियनगरे चन्दवड्ढनो खत्तिया राजा नाम राज्ज करेसि। तेन तस्स नगरस्स समिनो साक़िया च तेस पुत्तपुत्ता च सकलजम्बुदिपे मोरिया नाम’ति पाकटा जाता। ततो पभुति तेस वंसो मोरियवंसो’ति। वुच्चति,तेन वुच्च”मोरियान खात्तियान वंसजात’ति। चन्दवड्ढनो राजस्स मोरिय रञ्ञो सा अहू। राजमहेसी धम्ममोरिया पुत्तातस्सासि चन्दगुप्तो’ति॥

उत्तरविहार अट्टकथा , महेंद्र.

शब्दार्थ :- पिप्पलिवन के मोरिय नगर में क्षत्रिय राजा चन्द्रवर्द्धन का शासन था, उस नगर के समीप शाक्य के पुत्र-पौत्र सकल जंबूद्वीप में मौर्य नाम से प्रसिद्ध हुए। तत्पश्चात उनके वंश का नाम मौर्य (मोरिया) वंश पड़ा। इस प्रकार पिप्पलिवन मोरियगणराज्य के शाक्य क्षत्रिय मौर्य कहलाये। इसी कारण उनके राजवंश का नाम मौर्यवंश पड़ा। राजा चंद्रवर्द्धन मोरिया और धर्मा मोरिया के पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य हुए।

मौर्य शब्द मोर पक्षी से सम्बन्धित है , मौर्यों ने मोर को राजचिन्ह के रुप में उपयोग किया था ।

Chandragupta Maurya relation with Pipphalivan
सम्राट अशोक निर्मित सांची स्तूप की सीढ़ी के छज्जे पर एक मोर का आकृति।
सम्राट अशोक निर्मित सांची स्तूप की सीढ़ी के छज्जे पर एक मोर का आकृति। 
Chandragupta Maurya relation with Pipphalivana
मौर्यकालीन मोर, सांची स्तूप, पूर्वी द्वार।
मौर्यकालीन मोर, सांची स्तूप, पूर्वी द्वार। 
सम्राट अशोक निर्मित भारहुत स्तूप पर मोर की आकृति
सम्राट अशोक निर्मित भारहुत स्तूप पर मोर की आकृति 

बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र और प्रमाणित ग्रंथ त्रिपितक में वर्णन है की बुद्ध के निर्वाण के बाद मोरिय आए और अपने क्षत्रिय होने के आधार पर अस्थियों पर दावा किया था।

खो पिप्पलिवनिया [पिप्फलिवनिया (स्या० )] मोरिया- “भगवा किर कुसिनारायं परिनिब्बुतो 'ति अथ खो पिप्पलिवनिया मोरिया कोसिनारकानं मल्लानं दूतं पाहेसुं- “भगवापि खत्तियो मयम्पि खत्तिया, मयम्पि अरहाम भगवतो सरीरानं भागं, मयम्पि भगवतो सरीरानं धूपञ्च महञ्च करिस्सामा "ति "नत्थि भगवतो सरीरानं भागो, विभत्तानि भगवतो सरीरानि । इतो अङ्गारं हरथा" ति ते ततो अङ्गारं हरिंसु [ आहरिंसु (स्या० क० ) ]

-त्रिपितक: दीघनिकाय: महापरिनिर्वाण सुत्र[23]

अर्थात - पिप्पलीवन के मौर्यो ने सुना कि कुशीनार में बुद्ध की मृत्यु हो गई है तब उन्होंने दूतों को यह कहते हुए भेजा: "बुद्ध छत्रिय वर्ण के थे और हम भी क्षत्रिय हैं " कृपया हमें भी भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष प्रदान करें। बुद्ध के शिष्यों ने उत्तर दिया: "भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के और कण नहीं बचे हैं," आप आग की राख ले।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Kautilya, Vachaspati Gairola (1984). Arthasastra Of Kautilya & The Chanakya Sutra With Hindi Commentary Vachaspati Gairola 1984 ( Chaukhambha).
  2. Law, Bimala Churn (1972). Historical Geography Of Ancient India.
  3. Digital Library Of India, Cdac Noida. Historical Geography Of Ancient India (1972)ac 5450.
  4. Law, Bimala Churn (1972). Historical Geography Of Ancient India.
  5. Bhikshu Jagdish Kashyap (1954). Sanyukta Nikaya Part 1.
  6. माथुर, वीरेंद्र कुमार. ऐतिहासिक स्थानावली. पृ॰ 560.
  7. Digital Library Of India (1975). Prachin Bharat Ki Shasan Sansthain Aur Raajnitik Vichar (1975) Ac 5445.
  8. Vashishta Tripati Ji Collection. Prachina Bharata ( Missing Pages) Vashishta Tripati Ji Collection.
  9. PRACHIN EVAM MADHYAKALEEN BHARAT KA ITIHAS ( Hindi Edition) ( BHARDWAJ, DR. KAMAL) ( Z Library).
  10. Not Available (1900). Manchitara Manorama Dalit Chetna Or Vikas.
  11. भारत का इतिहास 1 ( Ishwari Prasad).
  12. Uttara Vihara Atthakatha. 2020.
  13. “Just three hundred years after our teacher’s transcendence of sorrow, at the time Buddhist King Chandravardhana in Shambhala.”Kongtrul, Jamgon (1954). The Treasury Of Knowledge COMPLETE (Books I - X). पृ॰ 218. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-55939-345-4.
  14. B B Mishra. Gorakhpur Janpad Ka Puratatva.
  15. B B Mishra. Gorakhpur Janpad Ka Puratatva.
  16. Tripitkacharya Bhikshu Dharmrakshit. Kushinagar Ka Itihas.
  17. Satyaketu Vidyalankar. प्राचीन भारत (Satyaketu Vidyalankar).
  18. B B Mishra. Gorakhpur Janpad Ka Puratatva.
  19. Vidhyalankar, Satya (1971). Maurya Samrajaya Ka Itihash.
  20. Tripitkacharya Bhikshu Dharmrakshit. Kushinagar Ka Itihas.
  21. Acharya Ramdev Ji. भारतवर्ष का इतिहास-3 (Acharya Ramdev Ji).
  22. Vidhyalankar, Satya (1971). Maurya Samrajaya Ka Itihash.
  23. Chowdhary "Shri", Shripati Prasad (2023-07-11). Magadh Ke Bauddh Ratn. Booksclinic Publishing. पृ॰ 112. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5823-463-3.