पत्नीव्रत

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पत्नीव्रत धर्म सनातन धर्म के गृहस्थाश्रम मे नर के लिए प्रयुक्त होता है। नारी के लिए जो महत्व पतिव्रत का है वही ज्यों का त्यों नर के लिए पत्नीव्रत का है । जिस प्रकार नारी पतिव्रत धर्म का अवलंबन करके अपने आत्म - कल्याण , पारिवारिक स्वर्ग एवं सुसंतति की संभावना उत्पन्न करती है , उसी प्रकार पुरुष पत्नीव्रत धर्म का पालन करते हुए इन्हीं विभूतियों एवं सिद्धियों को उपलब्ध करता है । पतिव्रत धर्म और पत्नीव्रत धर्म एक दूसरे के पूरक हैं । नर और नारी की रचना इस प्रकार हुई है कि एक दूसरे की अपूर्णताओं को पूर्ण करके पारस्परिक सहयोग से एक सर्वांगपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करें । पत्नी को अर्द्धांगिनी कहा गया है , यही बात पति के लिए भी कही जा सकती है ।[1]

दोनों का सम्मिलित स्वरूप ही एक परिपूर्ण इकाई बनता है । दो हाथ , दो पैर , दो आँखें , दो नथुने , दो कान , दो फेंफड़े मिलकर जिस प्रकार एक जोड़ा बनता है , उसी प्रकार नर - नारी भी एक सर्वांगपूर्ण जीवन की आवश्यकता पूरी करते हैं । आँख , नाक , कान , हाथ , पाँव , नथुने , फेंफड़े आदि युग्मों में से एक यदि नष्ट हो जाय , बीमार , अशक्त , दुर्बल या अव्यवस्थित हो तो शरीर में उपहासास्पद कुरूपता बढ़ती है । लोग उसे काना , भेंडा , लँगड़ा , टोंटा , नकटा आदि कहकर चिढ़ाते हैं । बात वास्तविक होती है फिर भी उसमें अपमान अनुभव किया जाता है , क्योंकि अपूर्णता अपमान की बात होती भी है । मानव जीवन भी गाड़ी के दो पहियों की तरह पति - पत्नी रूपी दो संतुलित माध्यमों पर ठीक प्रकार लुढ़कता है । जिन्हें सार्वजनिक सेवा या किसी विशेष लक्ष्य से इतनी तन्मयता होती है कि गृहस्थ पालन एवं आजीविका उत्पादन में समय का एक अंश भी बर्बाद न हो ऐसे विशिष्ट मनस्वी लोगों के लिए बिना गृहस्थ बनाये भी काम चल सकता है । वे आजीवन अविवाहित रहना चाहें तो रह भी सकते हैं ।[1]

व्युत्पत्ति व परिभाषा[संपादित करें]

पत्नीव्रत का अर्थ है पत्नी + व्रती अर्थात् पत्नी के प्रति व्रतबद्ध। पत्नीव्रत का अभिप्राय होता है पत्नी के प्रति अपने दिए गए वचन व धर्म के अनुपालन मे प्रतिबद्ध होना। इसके समानार्थी शब्द है जैसे - एकपत्नीव्रत , पत्नीप्रेम , पत्नीसेवा , राम मर्यादा , स्त्रीप्रेम , स्त्रीव्रत , स्त्रीसेवा ।[2] भारतीय संस्कृति में एक पत्नी- व्रत को मान्यता प्रदान की गयी है ।[3]

एक पत्नीव्रत[संपादित करें]

भारतीय संस्कृति में एक पत्नी-व्रत को मान्यता प्रदान की गयी है ।[3] एक पत्नीव्रत हमारा वैदिक काल से आदर्श रहा है , रामचन्द्र की प्रसिद्धि ही इसके कारण हुई ।[4] वे पत्नीव्रत का पालन स्वयं करते थे तथा दूसरों को तदनुसार चलने की शिक्षा देते थे ।[5] श्रीराम एक पत्नीव्रत के आदर्श नायक थे। [6]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "दाम्पत्य जीवन आदर्शो पर आधारित रहे - विवाह और दाम्पत्य जीवन का निर्वाह :: (All World Gayatri Pariwar)". literature.awgp.org. अभिगमन तिथि 2023-10-04.
  2. Kumar, Arvind; Kumar, Kusum (2006-01-01). Arvind Sahaj Samantar Kosh. Rajkamal Prakashan. पृ॰ 520. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1103-1.
  3. Guptā, Līlāvati Devī (1996). Prasāda sāhitya meṃ yuga-cetanā. Candraloka Prakāśana. पृ॰ 145.
  4. Ṭaṇḍana, Purushottamadāsa (1959). Śāsana-patha nidarśana. Ātmārāma. पृ॰ 183. एक पत्नीव्रत हमारा पुराना आदर्श है , रामचन्द्र की प्रसिद्धि ही इसके कारण हुई ।
  5. Tripāṭhī, Candrabalī (1967). Bhāratīya samāja meṃ nārī ādarshoṃ kā vikāsa. Durgāvatī Tripāṭhī. पृ॰ 105. वे (श्रीराम) पत्नीव्रत का पालन स्वयं करते थे तथा दूसरों को तदनुसार चलने की शिक्षा देते थे ।
  6. Gulābarāya (2005). Bābū Gulābarāya granthāvalī: Ālocanā kusumāñjali ; Hindī kāvya-vimarśa ; Hindī nāṭya-vimarśa. Ātmārāma eṇḍa Sansa. पृ॰ 298.