धीरेन्द्रनाथ मजूमदार
धीरेंद्रनाथ मजूमदार (1903 - 31 मई 1960) भारत के अग्रणी नृतत्ववेत्ता (Anthropologist) थे।
जीवनी
[संपादित करें]धीरेंद्रनाथ मजूमदार का जन्म 3 जून, 1903 में पटना में हुआ। वह ढाका जिले के निवासी थे। 1924 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से नृविज्ञान की एम ए परीक्षा में वह प्रथम श्रेणी में प्रथम आए। 1928 में वह लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए। 1946 में वह नृविज्ञान के रीडर बनाए गए और 1950 में प्रोफेसर हुए। 1950-51 में उनकी अध्यक्षता में नृविज्ञान विभाग स्थापित हुआ। वह आर्ट्स फैक्ल्टी के डीन भी थे जब 31 मई 1960 को उनका देहावसान हुआ।
1935 में केंब्रिज विश्वविद्यालय से कोल्हन के हो लोगों में सांस्कृतिक संपर्क तथा आसंस्करण पर हॉड्सन के निर्देशन में तैयार की गई थीसिस पर उन्हें पी-एच डी की उपाधि मिली। 1941 और 1946 के बीच डॉ मजूमदार ने तत्कालीन संयुक्त प्रांत, अविभाजित बंगाल, गुजरात, काठियावाड़ और कच्छ में लगभग 10,000 लोगों के मानवमितीय माप लिए और उनके रक्तसमूहों का अध्ययन किया। अकेले किसी भारतीय नृतत्ववेत्ता ने इतने अधिक लोगों के माप आज तक नहीं लिए हैं। जातिविज्ञान (एथ्नोग्रैफी) संबंधी उनका कार्य बहुमूल्य है। हो लोगों के अलावा जौनसार बावर के खसों तथा दुद्धी (दक्षिणी मिर्जापुर) के कबीलों के बारे में उनका ज्ञान अगाध था।
डॉ मजूमदार ने केंब्रिज विश्वविद्यालय में व्याख्यान भी दिए थे। उनके अन्य प्रसिद्ध व्याख्यान निम्नलिखित हैं -- 1936-37 में विएना में भारतीय संस्कृति पर कई व्याख्यान, 1942 में देहरादून में भारतीय प्रजातियों तथा संस्कृतियों पर छह व्याख्यान, 1946 में नागपुर विश्वविद्यालय में श्री महादेव हरि वठोडकर स्मारक व्याख्यान, 1952-53 में कॉर्नेंल विश्वविद्यालय, इथैका, में विज़िटिग प्रोफेसर ऑव फ़ार ईस्टर्न स्टडीज़; 1957 में लंडन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑव ओरिएंटल ऐंड ऐफ्रीकन स्टडीज़ में विजिटिंग प्रोफेसर तथा 1959 में हेग में भारतीय सामाजिक नृविज्ञान पर व्याख्यान।
उन्होंने 1939 में लाहौर में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 26वें अधिवेशन में नृविज्ञान तथा पुरातत्व अनुभाग की अध्यक्षता की। 1941 में वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑव साएंसेज ऑव इंडिया के फेलो चुने गए। 1956 में वह भारतीय समाजशास्त्र सम्मेलन के अध्यक्ष थे। देश विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों से विभिन्न रूप में संबंधित होने के अतिरिक्त वह नृविज्ञान की केंद्रीय सलाहकार परिषद, इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस के कार्यकारी मंडल आदि के सदस्य थे।
डॉ मजूमदार रॉयल ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसायटी ऑव ग्रेट ब्रिटेन ऐंड आयर्लैंड के फेलो थे। 1952 में भारतीय नृतत्ववेत्ताओं के अग्रणी के रूप में उनकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा स्थापित हुई जब न्यूयार्क में नृविज्ञान की प्रतिष्ठा विषयक विश्वव्यापी सर्वेक्षण के लिये वेनर ग्रेन फाउंडेशन द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी में उन्होंने भारत, पाकिस्तान, बर्मा तथा सिंहल के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। 1953 में अमरीकन एसोसिएशन ऑव फ़िज़िकल ऐंथ्रोपोलॉजिस्ट्स ने उन्हें विदेशी फेलो निर्वाचित किया। वह इंटरनेशनल यूनियन फॉर दि साएंटिफिक स्टडी ऑव पॉप्युलेशन (संयुक्त राष्ट्र संघ) के सदस्य थे। उसी वर्ष फ्रांस में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समाजशास्त्र कांग्रेस में भाग लिया।
कृतियाँ
[संपादित करें]1945 में डॉ मजूमदार ने एथ्नोग्राफिक ऐंड फोक कल्चर सोसायटी, यू पी, की स्थापना की और 1947 में उसकी ओर से "दि ईस्टर्न ऐंथ्रोपोलॉजिस्ट" का प्रकाशन आरंभ किया। हिंदी में "प्राच्य मानव वैज्ञानिक" के भी कुछ अंक प्रकाशित हुए। उनकी लिखी मुख्य पुस्तकें निम्न हैं -
- (1) ए ट्राइब इन ट्रैंज़िशन : ए स्टडी इन कल्चर पैटर्न (1937)
- (2) फार्च्यून्स ऑव प्रिमिटिव ट्राइब्स (1944)
- (3) रेसेज़ ऐंड कल्चर्स ऑव इंडिया (1944) -- संशोधित परिवर्धित संस्करण 1951, 1958
- (4) दि मैट्रिक्स ऑव इंडियन कल्चर (1947)
- (5) दि अफ़ेयर्स ऑव ए ट्राइब : ए स्टडी इन ट्राइबल डाइनेमिक्स (1950)
- (6) रेस रिअलिटीज़ इन कल्चरल गुजरात (1950)
- (7) ऐन इंट्रोडक्शन टु सोशन ऐंथ्रोपोलॉजी (1956)
- (8) कास्ट ऐंड कम्यूनिकेशन इन ऐन इंडियन विलेज (1958)
- (9) भारतीय संस्कृति के उपादान (1948)
- (10) रेस एलिमेंट्स इन बेंगाल (1960)
- (11) सोशल कंर्ट्स ऑव ऐन इंडस्ट्रियल सिटी (1960)
- (12) छोर का एक गाँव (1962)
- (13) हिमालयन पॉलिऐंड्री (1962)