धम्मचेती
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धम्मचेती ဓမ္မစေတီ | |
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King of Hanthawaddy | |
शासनावधि | 1471–1492 |
पूर्ववर्ती | Shin Sawbu |
उत्तरवर्ती | Binnya Ran II |
Regent of Hanthawaddy | |
Regency | 1460–1471 |
Monarch | Shin Sawbu |
जन्म | November/December 1409 Monday, 771 ME[1] |
निधन | 1492 Pegu |
संगिनी | Mi Pakahtaw |
संतान | Binnya Ran II |
धर्म | Theravada Buddhism |
बर्मा (म्यांमार) का राजा। धम्मचेती या धम्मज़ेदी (बर्मी: ဓမ္မစေတီ, pronounced: [dəma̰zèdì]; ई. 1409-1492, शासन काल 1471 से 1492 बर्मा में हंथावाडी साम्राज्य का 16वां राजा था। बर्मी इतिहास में सबसे प्रबुद्ध शासकों में से एक माना जाता है, कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसे सभी हंथवाडी राजाओं में "सबसे महान" कहा जाता है।[2]
पंक्ति संख्या 3-4 : साक्यमुनिनो सम्मसम्बुद्धस्स परिनिब्बानतो द्विन्नं वस्ससतानं उपरि अट्ठारसमे वस्से वितिवत्ते धम्मसोकराज अभिसेकं पापुनि। ततो चतुथ्थे वस्से निग्रोधसमनेरं पाटिच्च बुद्धससने संजात तिविय पसदेन भिक्खुणं लभसक्करो वेपुल्लं अगमसि तित्थियं परिहयि।
— धम्मचेती का कल्यानी अभिलेख[3][4]
हिन्दी अनुवाद : दो सौ अठारह वर्षों का समय बीत गया था, साक्यमुनी (शाक्यमुनी) के महापरिनिर्वाण के जब धम्मासोकराजा (धर्माशोकराजा) का राज्याभिषेक किया गया था। इस घटना के चौथे वर्ष में, निग्रोध के मार्गदर्शन से राजा (सम्राट अशोक) का बुद्ध के शासन में विश्वास बहुत ही उत्कृष्ट हो गया था; और बौद्धिकों (ज्ञानियों) को दिए जाने वाले उपहार और सम्मान में वृद्धि हुई, जबकि उससे पूर्व बौद्धिकों को दिए जाने वाले उपहार व सम्मान खत्म हो गए थे ।
इन्हे भी देखें
[संपादित करें]- अंग्रेजी विकिपीडिया पर: Dhammazedi
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Shwe Naw 1922: 96
- ↑ Hall 1960: 36–37
- ↑ Archaeological Survey of India; Toʻ Cinʻ Khui, 1864-1930 (1892). The Kalyānī inscriptions erected by King Dhammaceti at Pegu in 1476 A. D. Text and translation. Cornell University Library. Rangoon, Printed by the Superintedent, Government Printing, Burma. पृ॰ 1 & 46.
Pg.1 : Sakyamunino Sammasambuddhassa parinibbanato dvinnam vassasatanam upari attharasame vasse vitivatte Dhammasokaraja abhisekam papuni. Tato catutthe vasse Nigrodhasamaneram paticca Buddhasasane sanjata tiviya pasadena bhikkhunam labhasakkaro vepullam agamasi titthiyanam parihayi . Pg.46:Two hundred and eighteen years had passed away since , the attainment of Parinirvana by the Eully Enlightened One, the Sage of the Sakyas, when Dhammasokaraja was inaugurated as king. In the fourth year after this event, owing to Nigrodhasamawera, the King had great faith in the Religion of Buddha; and the gifts and honours to the priests greatly increased, while those to the heretics diminished.
- ↑ Archaeological Survey of Burma (1934-01-01). Epigraphia Birmanica 1919 to 1934. पृ॰ 109.