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समाचारपत्र

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(दैनिक समाचार पत्र से अनुप्रेषित)
अर्जेंटीना की एक सड़क पर स्थित एक समाचारपत्र की टपरी

समाचार पत्र या अख़बार, समाचारो पर आधारित एक प्रकाशन है, जिसमें मुख्यत: सामयिक घटनायें, राजनीति, खेल-कूद, व्यक्तित्व, विज्ञापन इत्यादि जानकारियां सस्ते कागज पर छपी होती है। समाचार पत्र संचार के साधनो में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। समाचारपत्र प्रायः दैनिक होते हैं लेकिन कुछ समाचार पत्र साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक एवं छमाही भी होतें हैं। अधिकतर समाचारपत्र स्थानीय भाषाओं में और स्थानीय विषयों पर केन्द्रित होते हैं।

समाचार पत्रों का इतिहास

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सबसे पहला ज्ञात समाचारपत्र 59 ई.पू. का 'द रोमन एक्टा डिउरना' है। जूलिएस सीसर ने जनसाधरण को महत्वपूर्ण राजनैतिज्ञ और समाजिक घटनाओं से अवगत कराने के लिए उन्हे शहरो के प्रमुख स्थानो पर प्रेषित किया। 8वी शताब्दी में चीन में हस्तलिखित समाचारपत्रो का प्रचलन हुआ[1]

अखबार का इतिहास और योगदान: यूँ तो ब्रिटिश शासन के एक पूर्व अधिकारी के द्वारा अखबारों की शुरुआत मानी जाती है, लेकिन उसका स्वरूप अखबारों की तरह नहीं था। वह केवल एक पन्ने का सूचनात्मक पर्चा था। पूर्णरूपेण अखबार बंगाल से 'बंगाल-गजट' के नाम से वायसराय हिक्की द्वारा निकाला गया था। आरंभ में अँग्रेजों ने अपने फायदे के लिए अखबारों का इस्तेमाल किया, चूँकि सारे अखबार अँग्रेजी में ही निकल रहे थे, इसलिए बहुसंख्यक लोगों तक खबरें और सूचनाएँ पहुँच नहीं पाती थीं। जो खबरें बाहर निकलकर आती थींत्र से गुजरते, वहाँ अपना आतंक फैलाते रहते थे। उनके खिलाफ न तो मुकदमे होते और न ही उन्हें कोई दंड ही दिया जाता था। इन नारकीय परिस्थितियों को झेलते हुए भी लोग खामोश थे। इस दौरान भारत में ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘नेशनल हेराल्ड', 'पायनियर', 'मुंबई-मिरर' जैसे अखबार अँग्रेजी में निकलते थे, जिसमें उन अत्याचारों का दूर-दूर तक उल्लेख नहीं रहता था। इन अँग्रेजी पत्रों के अतिरिक्त बंगला, उर्दू आदि में पत्रों का प्रकाशन तो होता रहा, लेकिन उसका दायरा सीमित था। उसे कोई बंगाली पढ़ने वाला या उर्दू जानने वाला ही समझ सकता था। ऐसे में पहली बार 30 मई 1826 को हिन्दी का प्रथम पत्र ‘उदंत मार्तंड’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ।

यह पत्र साप्ताहिक था। ‘उदंत मार्तंड' की शुरुआत ने भाषायी स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। यह केवल एक पत्र नहीं था, बल्कि उन हजारों लोगों की जुबान था, जो अब तक खामोश और भयभीत थे। हिन्दी में पत्रों की शुरुआत से देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और आजादी की जंग। उन्हें काफी तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता था, ताकि अँग्रेजी सरकार के अत्याचारों की खबरें दबी रह जाएँ। अँग्रेज सिपाही किसी भी क्षेत्र में घुसकर मनमाना व्यवहार करते थे। लूट, हत्या, बलात्कार जैसी घटनाएँ आम होती थीं। वो जिस भी क्षेको भी एक नई दिशा मिली। अब लोगों तक देश के कोने-कोन में घट रही घटनाओं की जानकारी पहुँचने लगी। लेकिन कुछ ही समय बाद इस पत्र के संपादक जुगल किशोर को सहायता के अभाव में 11 दिसम्बर 1827 को पत्र बंद करना पड़ा। 10 मई 1829 को बंगाल से हिन्दी अखबार 'बंगदूत' का प्रकाशन हुआ। यह पत्र भी लोगों की आवाज बना और उन्हें जोड़े रखने का माध्यम। इसके बाद जुलाई, 1854 में श्यामसुंदर सेन ने कलकत्ता से ‘समाचार सुधा वर्षण’ का प्रकाशन किया। उस दौरान जिन भी अखबारों ने अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कोई भी खबर या आलेख छपा, उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ी। अखबारों को प्रतिबंधित कर दिया जाता था। उसकी प्रतियाँ जलवाई जाती थीं, उसके प्रकाशकों, संपादकों, लेखकों को दंड दिया जाता था। उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाता था, ताकि वो दुबारा फिर उठने की हिम्मत न जुटा पाएँ।

आजादी की लहर जिस तरह पूरे देश में फैल रही थी, अखबार भी अत्याचारों को सहकर और मुखर हो रहे थे। यही वजह थी कि बंगाल विभाजन के उपरांत हिन्दी पत्रों की आवाज और बुलंद हो गई। लोकमान्य तिलक ने 'केसरी' का संपादन किया और लाला लाजपत राय ने पंजाब से 'वंदे मातरम' पत्र निकाला। इन पत्रों ने युवाओं को आजादी की लड़ाई में अधिक-से-अधिक सहयोग देने का आह्वान किया। इन पत्रों ने आजादी पाने का एक जज्बा पैदा कर दिया। ‘केसरी’ को नागपुर से माधवराव सप्रे ने निकाला, लेकिन तिलक के उत्तेजक लेखों के कारण इस पत्र पर पाबंदी लगा दी गई।

उत्तर भारत में आजादी की जंग में जान फूँकने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1913 में कानपुर से साप्ताहिक पत्र 'प्रताप' का प्रकाशन आरंभ किया। इसमें देश के हर हिस्से में हो रहे अत्याचारों के बारे में जानकारियाँ प्रकाशित होती थीं। इससे लोगों में आक्रोश भड़कने लगा था और वे ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए और भी उत्साहित हो उठे थे। इसकी आक्रामकता को देखते हुए अँग्रेज प्रशासन ने इसके लेखकों, संपादकों को तरह-तरह की प्रताड़नाएँ दीं, लेकिन यह पत्र अपने लक्ष्य पर डटा रहा।

इसी प्रकार बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र के क्षेत्रों से पत्रों का प्रकाशन होता रहा। उन पत्रों ने लोगों में स्वतंत्रता को पाने की ललक और जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। अगर यह कहा जाए कि स्वतंत्रता सेनानियों के लिए ये अखबार किसी हथियार से कमतर नहीं थे, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

अखबार बने आजादी का हथियार प्रेस आज जितना स्वतंत्र और मुखर दिखता है, आजादी की जंग में यह उतनी ही बंदिशों और पाबंदियों से बँधा हुआ था। न तो उसमें मनोरंजन का पुट था और न ही ये किसी की कमाई का जरिया ही। ये अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ आजादी के जाँबाजों का एक हथियार और माध्यम थे, जो उन्हें लोगों और घटनाओं से जोड़े रखता था। आजादी की लड़ाई का कोई भी ऐसा योद्धा नहीं था, जिसने अखबारों के जरिए अपनी बात कहने का प्रयास न किया हो। गाँधीजी ने भी ‘हरिजन’, ‘यंग-इंडिया’ के नाम से अखबारों का प्रकाशन किया था तो मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 'अल-हिलाल' पत्र का प्रकाशन। ऐसे और कितने ही उदाहरण हैं, जो यह साबित करते हैं कि पत्र-पत्रिकाओं की आजादी की लड़ाई में महती भूमिका थी।

यह वह दौर था, जब लोगों के पास संवाद का कोई साधन नहीं था। उस पर भी अँग्रेजों के अत्याचारों के शिकार असहाय लोग चुपचाप सारे अत्याचर सहते थे। न तो कोई उनकी सुनने वाला था और न उनके दु:खों को हरने वाला। वो कहते भी तो किससे और कैसे? हर कोई तो उसी प्रताड़ना को झेल रहे थे। ऐसे में पत्र-पत्रिकाओं की शुरुआत ने लोगों को हिम्मत दी, उन्हें ढाँढस बँधाया। यही कारण था कि क्रांतिकारियों के एक-एक लेख जनता में नई स्फूर्ति और देशभक्ति का संचार करते थे। भारतेंदु का नाटक ‘भारत-दुर्दशा’ जब प्रकाशित हुआ था तो लोगों को यह अनुभव हुआ था कि भारत के लोग कैसे दौर से गुजर रहे हैं और अँग्रेजों की मंशा क्या है।

ब्रिटिश राज के दौरान प्रकाशित भारत के कुछ प्रमुख समाचार पत्र और पत्रिकाएँ
प्रकाशित होने का वर्ष प्रकाशित होने का स्थान पत्रिका / जर्नल का नाम संस्थापक / संपादक का नाम
1780 कलकत्ता बंगाल गजट जेम्स ऑगस्टस हिक्की
1821 कलकत्ता सम्वाद कौमुदी (बंगाली में साप्ताहिक) राजा राम मोहन राय
1822 कलकत्ता मिरात-उल अकबर (फारसी में सबसे पहले पत्रिका) राजा राम मोहन राय
1822 कलकत्ता बंगदूत (चार भाषाओं अंग्रेजी, बंगाली, फारसी, हिंदी में एक साप्ताहिक पत्रिका) राजा राम मोहन राय और द्वारकानाथ ठाकुर
1826 कलकत्ता उदन्त मार्तण्ड (हिंदी का प्रथम समाचार पत्र) (साप्ताहिक) जुगलकिशोर सुकुल
1838 बंबई बॉम्बे टाइम्स (1861 के बाद से, टाइम्स ऑफ इंडिया) रॉबर्ट नाइट और थॉमस बेनेट
1851 रास्त गफ्तार (गुजराती, पाक्षिक (अर्द्धमासिक)) दादाभाई नौरोजी
1853 कलकत्ता हिन्दू पैट्रियट गिरीशचन्द्र घोष
1858 कलकत्ता सोम प्रकाश द्वारकानाथ विद्याभूषण
1862 कलकत्ता भारतीय आईना देवेन्द्रनाथ टैगोर और एनएन सेन
1862 कलकत्ता बंगाली (इस और अमृता बाजार पत्रिका- पहला स्थानीय भाषा का अखबार) गिरीश चन्द्र घोष
1865 कलकत्ता राष्ट्रीय पेपर देवेंद्र नाथ टैगोर
1868 जेस्सोर (बांग्लादेश) अमृत बाजार पत्रिका (शुरुआत में बंगाली और बाद में अंग्रेजी दैनिक) शिशिर कुमार घोष और मोतीलाल घोष
1873 कलकत्ता बंगदर्शन बंकिमचंद्र चटर्जी
1875 कलकत्ता स्टेट्समैन रॉबर्ट नाइट
1878 मद्रास हिन्दू जी एस अय्यर वीराघवचारी और सुब्बा राव पंडित
1881 लाहौर ट्रिब्यून (अंग्रेजी) दयाल सिंह मजीठिया
बंबई हिन्दुस्तानी और एडवोकेट जीपी वर्मा
1881 मद्रास केसरी (मराठी दैनिक) और मराठा (अंग्रेजी साप्ताहिक) तिलक, चिपलूनकर, अगरकर
1882 सिलहट (बांग्लादेश) स्वदेशमित्रण जी एस अय्यर
1886 परिदर्शक (साप्ताहिक) बिपिन चंद्र पाल
1988 लंडन (इंग्लैंड) सुधारक (मराठी और अंग्रेजी) – साप्ताहिक गोपाल गणेश अगरकर
1905 बंगाल द इंडियन सोशिओलॉजिस्ट (मासिक) श्यामजी कृष्ण वर्मा
1906 बंगाल युगान्तर बारीन्द्रनाथ घोष और भूपेन्द्रनाथ दत्ता
1906 पल्ली संध्या ब्रह्मबान्धव उपाध्याय
वैंकूवर बंदे मातरम मैडम भिकाजी कामा
बर्लिन फ्री हिन्दुस्तान तारकनाथ दास
1909 द तलवार (मासिक) वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय
1909 सैन फ्रांसिस्को लीडर (दैनिक, अंग्रेजी में) मदन मोहन मालवीय
1913 बंबई हिंदुस्तान ग़दर (साप्ताहिक, हिंदी और उर्दू, उसके बाद पंजाबी) गदर पार्टी
1913 दिल्ली दि बॉम्बे क्रॉनिकल (अंग्रेज़ी, दैनिक) फिरोजशाह मेहरवांजी मेहता, बीजी होर्निमान
1920 हिंदुस्तान टाइम्स के.एम. पणिक्कर (कावालम माधव पणिक्कर)
1927 बहिष्कृत भारत (मराठी, पाक्षिक) बी. आर. आंबेडकर
1910 दिल्ली कुडी अरासु (तमिल) ईवी रामास्वामी नायकर (पेरियार), एसएस मिराजकर, केएन जोगलेकर
1938 दिल्ली नेशनल हेराल्ड जवाहर लाल नेहरू
1871 तगजीन-उल-अखलाक (पत्रिका) सर सैयद अहमद खान
1881 केसरी (मराठी डेली अखबार) बाल गंगाधर तिलक
1911 कॉमरेड (साप्ताहिक अंग्रेजी अखबार) मौलाना मोहम्मद अली
1912 अल बलघ, अल-हिलाल (उर्दू, साप्ताहिक) अबुल कलाम आजाद
1913 प्रताप (हिंदी अखबार) गणेश शंकर विद्यार्थी
1919 इलाहाबाद इंडिपेंडेंट (दैनिक) मोतीलाल नेहरू
1920 चंद्रमा नायक (मराठी, साप्ताहिक) बी आर अम्बेडकर
1919 यंग इंडिया (साप्ताहिक) मोहनदास करमचन्द गांधी
1929 नवजीवन (साप्ताहिक अख़बार) मोहनदास करमचन्द गांधी
1931 हरिजन (साप्ताहिक) मोहनदास करमचन्द गांधी
1936 दिल्ली हिंदुस्तान दैनिक (हिंदी, दैनिक) मदन मोहन मालवीय

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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  1. "समाचारपत्रो का संक्षिप्त इतिहास (अंग्रेजी में)". मूल से 13 जून 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि जून 25 2007. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)