डिमास्थेने

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डिमास्थेने या डिमास्थेनीज़ (Demosthenes ; ग्रीक: Δημοσθένης Dēmosthénēs; 384 – 12 अक्टूबर 322 ईसापूर्व)) विश्वविख्यात यूनानी राजमर्मज्ञ (स्टेट्समैन) तथा वक्ता था। डेमास्थेनीज़ शब्द-प्रभु था, ग्रीक प्रतिभा का उज्ज्वल उदाहरण।

डिमास्थेनीज़ का जन्म एथेंस में ३८४ ईसा पूर्व में हुआ था। सात वर्ष की उम्र में ही अनाथ बने इस व्यक्ति ने १८ वर्ष की अल्पायु में ही अपना वाक्कौशल अपने ही पालकों के विरुद्ध न्यायालय में मुकदमा चलाकर, सिद्ध किया। फिर वह न्यायालयों के लिए भाषणलेखक का काम करने लगा। उसकी राजनीतिक तर्कशक्ति के कारण उसका उपयोग प्रशासन की तथा सार्वजनिक संस्थाओं ने दोनों तरफ करना शुरू किया। एथेन्स और मैसेडौन के फिलिप के बीच संघर्ष के समय डिमास्थेनीज की वक्तृत्व कला का बहुत उपयोग किया गया। ३५१ ईसा पूर्व से ३४१ ईसा पूर्व के औलिफियाई और फिलिपी भाषणों के कारण उसे बहुत यश प्राप्त हुआ। इन वक्तव्यों में, जो जनसभाओं में दिए गए थे, डिमास्थेनीज ने फिलिप की चतुराई और धूर्तता का पर्दाफाश किया और तत्कालीन एथेन्स की सहानुभूतिशून्यता को खूब कोसा। प्राचीन आदर्शों की याद दिलाई। ३४० ईसा पूर्व में डिमास्थेनीज को समूचे एथेंस की राजनीति का सर्वेसर्वा बनाया गया। इसकी सलाह में यह विश्वास बहुत विलंबित घटना थी। तब तक मैसेडोन वाला पक्ष बहुत प्रबल हो चुका था और एथेंस को शैरोनिआ में ३३८ ईसा पूर्व में करारी हार खानी पड़ी। जब डिमास्थेनीज की पूर्व नीतियों को मैसिडोनिया पक्ष के ईस्काइनीस ने चुनौती दी, तब ३३० ईसा पूर्व में उसने आन दि क्राउन, नामक ऐसी प्रसिद्ध वक्तृता दी कि सारे विरोधी तर्क खंडित हो गए। बाद में उसको पुन: हार खानी पड़ी। ३२४ ईसा पूर्व में उसे देशनिकाला दिया गया, क्योंकि उसने कुछ घूस ली, ऐसा सिद्ध हुआ। यह घूस अलेक्जैंडर के एक पलायक सेनाधिकारी हारपेलस ने दी थी। ३२३ में वह पुन: लौटकर एंटीपेटर के विरोध में अंतिम मोर्चा लेने के लिए आया जिसमें अयशस्वी होने पर उसने आत्महत्या कर ली।

डिमास्थेनीज के ६१ भाषण और छह पत्र उपलब्ध हैं। उनमें से २० भाषण प्रतिक्रियात्मक और खंडनप्रधान हैं। शायद कुछ उसके नाम से कहे जाते हैं। फिर भी उसके निजी भाषणों से तत्कालीन ग्रीस की नैतिक और न्याय विषयक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। उसकी सार्वजनिक वक्तृताएँ निजी भाषणों के समान प्रभावशाली हैं। डेमास्थेनीज की गद्यशैली का सच्चा आनन्द उसे मूल ग्रीक में पढ़ने पर मिल सकता है। उसकी गद्यशैली का प्रभाव बहुत कुछ नाद और शब्द संपदा पर निर्भर करता है। ईसाक्रेटस की नपी तुली, स्वचेतन शैली उसकी नहीं है, यद्यपि उसकी और उक्तिचमत्कारवाली कुशलता डिमास्थेनीज़ में है। डिमास्थेनीज़ तर्कयुक्त विवेचना और भावोद्रेक की वृद्धि के लिए शैली भी काम में लाता है। यद्यपि वह जानता है कि शब्दकला का कैसे, कहाँ उपयोग करना चाहिए, फिर भी डिमास्थेनीज़ कहीं भी व्यर्थ के शब्दालंकार में खो नहीं जाता। कहाँ साम, दंड, भेद काम में लाना है, इसे वह अच्छी तरह जानता था और वैसे ही शब्द और अर्थालंकार खोजता था। अपने देश के संकटकालीन इतिहास में उसने शब्दों से शस्त्रों जैसा काम लिया। यह आवश्यक प्रभाव, क्रोध, अमर्श, जनता का समर्थन, वर्णनशक्ति द्वारा पैदा कर सकता था। सिसेरो की भाँति उसकी शैली साधारणीकृत साहित्यिक शैली नहीं है; वरन् उसकी शैली में उसके व्यक्तित्व की पूरी विशिष्ट छाप है। डिमास्थेनीज़ के भाषणों में हास्य, व्यंग्य, करुणा, प्रसन्नता की पुट उतनी नहीं जितनी भव्यता, प्रामाणिकता और व्यंजनाशक्ति का बाहुल्य है। कुछ आलोचकों ने उसकी वक्तृता पद्धति को अध्ययन का परिणाम माना है, पर अधिकतर उसकी रचनाएँ होमर और प्लेटो की तरह स्फूर्ति और सहज प्रेरणा पर आधारित मानी जाती हैं।


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