डच बंगाल
डच बंगाल बेंगालन | ||||||
उपनिवेश | ||||||
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राजधानी | पिपली (1627–1635) हुगली-चुचुरा (1635–1825) | |||||
भाषाएँ | डच | |||||
Political structure | उपनिवेश | |||||
संचालक | ||||||
- | 1655–1658 | पीटर स्टेरटेमियस | ||||
- | 1724–1727 | अब्राहम पैत्रस | ||||
- | 1785–1792 | इसाक टिट्सिंह | ||||
- | 1792–1795 | कोर्नेलिस वैन सिटेर्स | ||||
ऐतिहासिक युग | साम्राज्यवाद | |||||
- | पिपली पर एक व्यापारिक उपनिवेश की स्थापना | 1627 | ||||
- | आंग्ल-डच संधि, 1824 | 1825 | ||||
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बेंगालन 1610 से 1810 में कंपनी के परिसमापन तक, बंगाल में डच इस्ट इंडिया कंपनी का निदेशालय था। 1824 में अंग्रेजों के साथ हुए आंग्ल-डच संधि के बाद, इसे 1825 तक नीदरलैंड साम्राज्य का उपनिवेश बना दिया गया। इस क्षेत्र में डच की उपस्थिति, ओडिशा के सुबरनेरेखा नदी के मुंहाने में पिपली में एक व्यापारिक उपनिवेश की स्थापना से शुरू हुई। पूर्व उपनिवेश जिसे आज डच भारत कहा जाता है उसी का हिस्सा है।[1]
इतिहास
[संपादित करें]1615 से, डच इस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के साथ व्यापार करना आरम्भ किया। 1627 में, पिपली में एक व्यापारिक चौकी स्थापित किया गया था। 1635 में अफीम, नमक, मलमल और मसालों का व्यापार करने के लिए हुगली के निकट चिनसराह[2] में एक उपनिवेश बस्ती स्थापित किया गया था। उन्होंने फोर्ट गुस्तावस नामक एक किला, एक चर्च और कई अन्य इमारतों का निर्माण किया। एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी, जनरल पेरॉन जिन्होंने महात्मास के सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य किया, इस डच कॉलोनी में बस गए और यहां एक बड़ा घर बनवाया था।
अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत तक बंगाल में व्यापार इस हद तक बढ़ गया, कि डच इस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासकों ने 1734 में हुगली-चिनसरा को सीधे डच गणराज्य के साथ व्यापार करने की अनुमति दे दी, बजाय बल्टाविया में पहले सामान का भंडारण करने के। यह अधिकार रखने के लिए एकमात्र अन्य डच ईस्ट इंडिया कंपनी का उपनिवेश डच सिलोन था।
अठारहवीं शताब्दी के मध्य में भारत में आंग्ल-फ़्रेंच प्रतिद्वंद्विता के मुकाबले बंगाल पर डच का नियंत्रण कम होता रहा, और 1757 में प्लासी की लड़ाई में ब्रिटिश की जीत के साथ, बंगाल में उनकी स्थिति एक मामूली शक्ति के रूप में रह गई।
1795 में ब्रिटिश सेनाओं द्वारा डच बंगाल पर कब्जा कर लिया गया, डच स्टैडहोल्डर विलियम वी, के लिखे पत्र अनुसार ऐसा कॉलोनी पर फ्रांस द्वारा कब्जा करने से रोकने कि लिये था। 1814 की आंग्ल-डच संधि के बाद कॉलोनी में डच शासन में बहाल कर दिया गया, लेकिन भारत को दो अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित करने की इच्छा के साथ, डच ने 1824 के आंग्ल-डच संधि के साथ भारतीय प्रायद्वीप पर अपनी सभी उपनिवेश बस्तियों को अंग्रेजों को सौंप दिया।
विरासत
[संपादित करें]चिनसराह से फोर्ट गुस्तावस को नामोनिशान से मिट चुका था और चर्च हाल ही में अनदेखी के कारण गिर गया है, लेकिन अधिकांश डच विरासत आज भी देखी जा सकती है। इनमें डच कब्रिस्तान, पुरानी बैरक्स (अब चिनसराह कोर्ट), गवर्नर का निवास, जनरल पेरॉन का घर, अब चिनसराह कॉलेज, हुगली मोहसिन कॉलेज और पुरानी फैक्टरी बिल्डिंग, जिसे अब विभागीय आयुक्त का कार्यालय कहा जाता है। हुगली-चिनसराह अब आधुनिक पश्चिम बंगाल के हुगली जिले का शहर मुख्यालय है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ De VOC site - Bengalen Archived 2019-05-06 at the वेबैक मशीन
- ↑ "The Dutch Cemetery in Chinsurah". www.dutchcemeterybengal.com (अंग्रेज़ी में). मूल से 9 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-04-21.