ज्वालामुखीय झील
ज्वालामुखीय झील ऐसी झील को कहा जाता है जो किसी ज्वालामुखी के मुख में पानी भर जाने से बन जाती हो। ज्वालामुखीय झीलें जीवित या मृत ज्वालामुखी दोनों में बन सकती हैं। आम तौर से इनमे पानी वर्षा या हिमपात से भर जाता है। यदि किसी जीवित ज्वालामुखी में झील बनी हो और वह ज्वालामुखी फटना शुरू हो जाये, तो ऐसी झीलें तेज़ी से उबल कर ख़ाली हो जातीं हैं। इण्डोनेशिया में स्थित तोबा झील विश्व की सबसे बड़ी ज्वालामुखीय झील है।
आकार और द्वीप
[संपादित करें]क्योंकि ज्वालामुखीय झीलें ज्वालामुखियों के शिखर पर उनके मुंह में बनती है इसलिए इन झीलों का आकार आम तौर पर गोल होता है। जब ज्वालामुखी फटना बंद हो जाता है तो मुंह में लावा जमकर एक पत्थर की सतह बना देता है। यही सतह ज्वालामुखीय झील का नीचे का फ़र्श होती है। अगर लावा उबड़-खाबड़ रूप से जम गया हो, तो वह कुछ पहाड़ियां-सी भी बना देता है, जो की कभी-कभी झील के पानी से भर जाने पर झील में छोटे द्वीपों का रूप धारण कर लेतीं हैं। अगर ज्वालामुखी शांत रहे तो समय के साथ साथ इन द्वीपों पर घास, पौधे या पेड़ भी कभी-कभी जड़ पकड़ लेतें हैं।
पानी का रंग-रूप
[संपादित करें]ज्वालामुखीय झीलें अक्सर ऊँचाई पर होती हैं और उनके इर्द-गिर्द का क्षेत्र ज्वालामुखी के पुराने विस्फोटों के कारण साफ़ हो चुका होता है। इसलिए, अगर ज्वालामुखी मृत हो (या जीवित होते हुए भी लम्बे समय के लिए शांत रहा हो) इन झीलों का पानी अक्सर बहुत साफ़ और नीला नज़र आता है। अमेरिका के आरेगोन राज्य में स्थित क्रेटर लेक अपने साफ़ और नीले पानी के लिए विश्व-भर में मशहूर है। लेकिन अगर ज्वालामुखी से अभी भी गैस निकल रही हो, तो उस विषैली गैस के बुलबुले लगातार इस झील में उठते रहते हैं, जिस से एक तो पानी का रंग गाढ़ा (हरा, भूरा या काला-सा) हो जाता है और दूसरा गैस के मिलने से पानी में कुछ मात्रा में अम्ल (यानि तेज़ाब) भी बन जाता है।