चर्वण

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एक वानर शक्त पौधे के पदार्थ के प्रसंस्करण हेतु चर्वण का प्रयोग करता है।

चर्वण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा खाद्य को दांतों से कुचला और पीषा जाता है। यह पाचन का प्रथम चरण है, और यह प्रकिण्वों द्वारा अधिक कुशल विखण्डन की अनुमति देने हेतु खाद्य पदार्थों के पृष्ठ क्षेत्रफल को बढ़ाता है। चर्वण के दौरान, खाद्य पेषण हेतु गाल और जिह्वा को दांतों के मध्य रखा जाता है। चर्वण पेशियाँ दांतों को सविराम सम्पर्क में लाने हेतु हनु को हिलाती हैं, बार-बार रोकती और खोलती हैं। जैसे-जैसे चर्वण जारी रहता है, खाद्य नरम और उष्ण हो जाता है, और लार में मौजूद प्रकिण्व खाद्य में कार्बोहाइड्रेट को तोड़ना शुरू कर देते हैं। चर्वण के पश्चात्, खाद्य (जिसे अब ग्रास कहा जाता है) निगल लिया जाता है। यह ग्रासनली में प्रवेश करता है और क्रमाकुंचन के माध्यम से पेट तक जारी रहता है, जहाँ पाचन का अगला चरण होता है। चर्वण प्रति काट की संख्या वृद्धि से प्रासंगिक आंत्र के हॉर्मोन बढ़ जाते हैं।[1] अध्ययनों से पता चलता है कि चर्वण से स्वज्ञापित क्षुधा और भोजन कम हो सकता है। चर्वण गोंद कई सदियों से चलित है; इस के प्रमाण हैं कि उत्तरी यूरोपीय लोग 9,000 वर्ष पूर्व बर्च की छाल का टार चबाते थे।

गाय और कुछ अन्य पशु, जिन्हें रोमंथक कहा जाता है, अधिक पोषक तत्त्व प्राप्ति हेतु खाद्य को एकाधिक बार चबाते हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Miquel-Kergoat, Sophie; Azais-Braesco, Veronique; Burton-Freeman, Britt; Hetherington, Marion M. (2015-11-01). "Effects of chewing on appetite, food intake and gut hormones: A systematic review and meta-analysis". Physiology & Behavior. 151: 88–96. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0031-9384. डीओआइ:10.1016/j.physbeh.2015.07.017.