गुलाल साहब

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गुलाल साहब () प्रख्यात सन्त थे। इनका जन्म सत्रहवीं शती के अंतिम चरण में बसहरी (जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश) के एक क्षत्रिय जमींदार कुल में हुआ था। इनके गुरु बुल्ला साहब, 'बुलाकीराम कुर्मी' के नाम से इनके परिवार का हल जोतने का काम करते थे। उनके आध्यात्मिक जीवन से प्रभावित होकर गुलाल साहब ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया था और उनके निधन के पश्चात उनकी गद्दी के अधिकारी हुए थे। ये ऊँचे दरजे के साधक थे। आपने निर्विकल्प मन की समावस्था की दिव्य अनुभूति का वर्णन अनेक रूपों में निरन्तर अपनी रचनाओं में किया है। 'ज्ञानगुष्टि' और 'रामसहस्रनाम' इनकी वाणियों के संग्रह है। इनकी वाणी 'गुलाल साहब की बानी' नाम से भी प्रकाशित हुई है।

इनका निधन १७६० ई. में हुआ। इनकी मृत्यु के बाद भीखा साहब ने गद्दी सम्भाली।

गुलाल साहब के कुछ छन्द
सतगुरु के ढिग जाय के गुप्त भजन सिख लेहु।
कह गुलाल धुनि नाम की हर शै से सुनि लेहु।
राम नाम सुखसार है कह गुलाल हर्षाय।
या के बिन जाने सुनौ ठीक ठौर नहि पाय॥
माला जपों न मंतर पढ़ों मन मानिक को प्रेम ।
कंथ गूदरि पहिरौं नहीं कह 'गुलाल' मेरे नेम ॥
गुलाल ताखी तत्त दियो प्रेम सेल्हि हिये नाय ।
सुमिरिनी मन महँ फिरयो आठ पहर लौ लाय ॥
गूदर धागा नाम का सूई पवन चलाय ।
मन मानिक मनि गन लग्यो पहिर 'गुलाल' बनाय ॥
गुलाल' माला नाम का राखो गर में नाय ।
कोटि जतन छूटे नहीं रहो जोति लपटाय ॥

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]