गलाघोंटू

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गलाघोंटू (Hemorrhagic Septicemia) रोग मुख्य रूप से गाय तथा भैंस को लगता है। इस रोग को साधारण भाषा में गलघोंटू के अतिरिक्त 'घूरखा', 'घोंटुआ', 'अषढ़िया', 'डकहा' आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग से पशु अकाल मृत्यु का शिकार हो जाता है। यह मानसून के समय व्यापक रूप से फैलता है। अति तीव्र गति से फैलने वाला यह जीवाणु जनित रोग, छूत वाला भी है। यह Pasteurella multocida नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण होता है।

गलाघोंटू बहुत खतरनाक रोग है। लक्षण के साथ ही इलाज न शुरू होने पर एक-दो दिन में पशु मर जाता है। इसमें मौत की दर 80 फीसदी से अधिक है। शुरुआत तेज बुखार (105-107 डिग्री) से होती है। पीड़ित पशु के मुंह से ढेर सारा लार निकलता है। गर्दन में सूजन के कारण सांस लेने के दौरान घर्र-घर्र की आवाज आती है और अंतत: 12-24 घंटे में मौत हो जाती है। रोग से मरे पशु को गढ्डे में दफनाएं। खुले में फेंकने से संक्रमित बैक्टीरिया पानी के साथ फैलकर रोग के प्रकोप का दायरा बढ़ा देता है।

रोग के लक्षण[संपादित करें]

इस रोग में पशु को अचानक तेज बुखार हो जाता है एवं पशु कांपने लगता है। रोगी पशु सुस्त हो जाता है तथा खाना-पीना कम कर देता है। पशु की आंखें लाल हो जाती हैं। पशु को पीडा होती है और श्वास लेने में कठिनाई होती है। श्वास में घर्रघर्र की आवाज आती है। पशु के पेट में दर्द होता है, वह जमीन पर गिर जाता है और उसके मुंह से लार भी गिरने लगती है।

रोकथाम[संपादित करें]

  • अपने पशुओं को प्रति वर्ष वर्षा ऋतु से पूर्व इस रोग का टीका पशुओं को अवश्य लगवा लेना चाहिए। बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  • जिस स्थान पर पशु मरा हो उसे कीटाणुनाशक दवाइयों, फिनाइल या चूने के घोल से धोना चाहिये।
  • पशु आवास को स्वच्छ रखें तथा रोग की संभावना होने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर सलाह लेवें।

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