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गंधराल

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विभिन्न प्रकार के रोजिन

गंधराल या रोज़िन (rosin), रेजिन का एक ठोस रूप है। रोज़िन और रेज़िन एक पदार्थ नहीं हैं। ये दोनों भिन्न भिन्न पदार्थ है। चीड़ और कुछ अन्य वृक्षों से एक स्राव ओलियो रोज़िन (oleo-resin) प्राप्त होता है। इसमें रोज़िन के साथ साथ तारपीन का तेल रहता है। इसके आसवन से तारपीन का तेल आसुत हो निकल जाता है और असवनपात्र में जो अवशिष्ट अंश रह जाता है, वही गंधराल है। रोज़िन बड़े महत्व की व्यापारिक वस्तु है। कई प्रकार के रोज़िन बाजारों में बिकते हैं। उनके रंग, स्वच्छता, साबुनीकरण मान और मृदुभवन बिंदु एक से नहीं होते। रोजिन, अर्ध-पारदर्शी होता है। इसका रंग पीला से लेकर काला तक कुछ भी हो सकता है। सामान्य ताप पर यह भंगुर (ब्रिटल) है। रोजिन में मुख्यतः विभिन्न प्रकार के गंधराल अम्ल (विशेषतः अबीटिक अम्ल / abietic acid) होते हैं।

तारपीन तेल के निर्माण में सह-उत्पाद के रूप में रोज़िन प्राप्त होता है। इसका सर्वाधिक उपयोग (लगभग २८ प्रतिशत) कागज के निर्माण में सज्जीकरण के लिए होता है। इसके बाद इसका उपयोग साबुन बनाने (१७ प्रतिशत), पेंट, वार्निश और प्रलाक्षारस (१७.२ प्रतिशत) बनाने, रसायनक और भेषज (९.० प्रतिशत), १६ प्रतिशत संश्लिष्ट रेजिन तैयार करने और १३ प्रतिशत अन्य कामों में होता है। कोबाल्ट और मैंगनीज़ के साथ इसका शोषक (dier) बनता है, जिसका उपयोग पेंट में होता है। कृमि और सूक्ष्माणु विनाशक ओषधियों में और चिपकने के गुण के कारण सीमेंट, लिनोलियम और मोहर लगाने के चपड़े में रोज़िन काम आता है। इस के एस्टर बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। मेथिल एस्टर और एथिल एस्टर सुघट्यकारी रूप में और सहविलायक में काम आते हैं। इसका ग्लिसरील एस्टर 'एस्टर गोंद' के नाम से विख्यात है और जलप्रतिरोधक वार्निश बनाने में तुंग तेल के साथ प्रयुक्त होता है। संश्लिष्ट रेज़िन और नाइट्रोसैलूलोज़ के लेप चढ़ाने में भी एस्टर गोंद काम आता है।

रोज़िन तेल

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रोज़िन के भंजक आसवन से रोज़िन तेल प्राप्त होता है। इसका क्वथनांक ऊँचा और अणुभार भारी होता है। मुद्रण स्याही और वार्निश में यह बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है। रोज़िन तेल से मिलता जुलता चीड़ का तेल होता है। चीड़ का तेल काठ में नहीं रहता, वरन् काठ के भंजक आसवन से बनता है। इसके प्रभाजक आसवन से ऐल्फा टरपिनियोल, फेंचील ऐल्कोहॉल, बोर्नियोल और ऐनिथोल प्राप्त हुए हैं। अनेक उद्योगधंधों में इसका उपयोग होता है, जैसे उत्प्लावन विधि से अयस्कों के परिष्कार में, विलायक के रूप में रबर व्यवसाय में, अभिघर्षण (scouring) द्वारा वस्त्र की सफाई करने में और निस्संक्रामक तथा गंधहर औषधियों के निर्माण में।