खेतसिंह खंगार

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महाराजा खेतसिंह खंगार
खेतसिंह खंगार
राष्ट्रीय संग्रहालय झांसी में संगृहीत महाराजा खेतसिंह का चित्र
Great King of the bundelkhand
शासनावधि११८२–१२१२ ई•
राज्याभिषेक११८२ में पृथ्वीराज चौहान द्वारा
उत्तरवर्तीराजा नन्दपाल
जन्म२७ दिसम्बर, ११४०
जूनागढ़ गुजरात
निधन३० अगस्त, १२१२
जुझौतिखण्ड
समाधि
जिझौतिखण्ड
संतानपुत्र नन्दपाल, पौत्र छत्रपालसिंह, खूबसिंह, मानसिंह
घरानाराजपूत राजघराना
पितारुणदेव सिंह
माताकिशोर कुँवर बाई
गढ़कुण्डार या कुण्डार दुर्ग

खेतसिंह खंगार (११४०-१२१२ ई.) १२वीं-१३वीं शतब्दी के भारत के खंगार राजवंश के एक राजा थे। इनके राज्य जिझौतिखण्ड की राजधानी गढकुंडार थी। गढ़-कुण्डार वर्तमान समय में मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित एक गाँव है। इस गाँव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग (या गढ़) के नाम पर पड़ा है। यह दुर्ग उस काल की बेजोड़ शिल्पकला का एक बेहतरीन नमूना है किन्तु अब भग्न अवस्था में है। वृन्दावन लाल वर्मा द्वारा रचित भाववाचक एवं वास्तविकता से प्रेरित उपन्यास "गढ़ कुण्डार" इसी कथानक पर आधारित है।[1]

खेतसिंह मूलतः पृथ्वीराज चौहान के सेनापति थे। इनका शासनकाल ११८२ ई से १२१२ ई तक रहा।

खेत सिंह खंगार का  जन्म गुजरात (सौराष्ट्र) राज्य के जूनागढ़ के राजा कटाव द्वितीय के परिवार में विक्रम संवत ११९७ पौष मास शुक्ल पक्ष (तदनुसार २७ दिसम्बर ११४०ई) में हुआ था। इनकी माता का नाम किशोर कुँवर बाई था।

खेतसिंह पृथ्वीराज चौहान के सामन्त थे। इनका वर्णन चंदरबरदाई कृत हिंदी महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में भी मिलता है। खेत सिंह ने पृथ्वीराज के सेनापति के तौर पर उनके साथ कई युद्ध लड़े जिनमें से एक युद्ध था जेजाकभुक्ति का युद्ध सन ११८१ ई. में लड़ा गया। इस युद्ध में ऊदल मारे गए और आल्हा रण छोड़ कहीं चले गये।

इस युद्ध में विजय के पश्चात पृथ्वीराज चौहान ने खेतसिंह खंगार को इस राज्य का राजा घोषित कर दिया। ११८१ई. में ही इनका राज्यभिषेक कर दिया और इन्होंने इस राज्य को जुझौतिखण्ड नाम दिया और राजधानी गढ़कुंडार में स्थापित की। ११९२ई. में साम्राज्य क्षेत्र विस्तार व लूट की दृष्टि से आया अफगानी मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद ग़ौरी एवं तत्कालीन दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान के मध्य तराइन का युद्ध प्रथम हुआ। युद्ध का नेतृत्व खेतसिंह खंगार ने किया और इनके सहयोगी २ अन्य सामंत गोविंदराव व खांडेराव थे। प्रथम युद्ध में विजय प्राप्त पृथ्वीराज चौहान को विजय प्राप्त हुई। किन्तु तराइन के द्वतीय युद्ध दिल्ली मोहम्मद ग़ौरी के अधीन हो गई। इसके पश्चात खेतसिंह खंगार ने जिझौतिखण्ड को स्वतंत्र हिन्दू गणराज्य घोषित कर दिया।

लोकपरम्परा में निम्नलिखित उक्ति प्रसिद्ध है-

अधिपति वो भूप जिसकी कृति ये कुंडार ।
राजपूतों में प्रथम सिंह जय महाराजा खेत ॥

सन १२१२ ई. में खेतसिंह की मृत्यु हो गई थी। इनके बाद इनके पुत्र राजा नन्दपाल, छत्रशाल, ख़ूबसिंह एवं मानसिंह ने जिझौतिखण्ड पर शासन किया जो कुल १६५ वर्षो तक रहा (१३४७ई)

(तत्कालीन दिल्ली तुगलकों के अधीन)

संदर्भ[संपादित करें]

खंगारों का शासनकाल मे बुंदेलखंड का नाम जुझौतिखण्ड था। जब पृथ्वीराज चौहान ने सन ११८२ में सिरसागढ़ पर आक्रमण किया और उस पर विजय प्राप्त की उस समय इस युद्ध के सेनापति महाराजा खेतसिंह खंगार थे। चूंकि ये युद्ध उन्ही के नेतृत्व में हुआ था इसलिये सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने विज्युपरांत ये राज्य महाराजा खेतसिंह खंगार को सौंप दिया और उनका राज्याभिषेक कर उन्हें यहाँ का राजा घोषित कर दिया। महाराजा खेतसिंह खंगार की ४ पीढ़ियों ने यहां शासन किया। यहाँ खंगारों का शासन तकरीबन १६५ वर्षो तक जुझौतिखण्ड वर्तमान बुंदेलखंड खण्ड पर रहा खंगारों के राजाओं ने निम्न क्रम में यहां शासन किया।

सन (११८२ से १३४७ तक )

१• महाराजा खेतसिंह खंगार (११८२ - १२१२)

२• राजा नन्दपाल खंगार (१२१२ - १२४१)

३• राजा छत्रपालसिंह खंगार (१२४१ - १२७९)

४• राजा खूबसिंह खंगार (१२७९ - १३०९)

५• राजा मानसिंह खंगार (१३०९ - १३४&)

जुझौतिखण्ड साम्राज्य के समय का एक दोहा:-

गिर समान गौरव रहे, सिंधु समान स्नेह।
वर समान वैभव रहे, ध्रुव समान धेय्य॥
विजय पराजय न लिखें, यम न पावें पंथ।
जय जय भूमि जुझौति की, होये जूझ के अंत॥

इसके पश्चात यहां किसी खंगार राजा से शासन नही किया किउंकि १३२५ में दिल्ली की गद्दी पर मोहम्मद बिन तुगलक बैठ गया था, और खंगार वंश के प्रथम राजा महाराजा खेतसिंह खंगार ने इस राज्य को पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद से ही स्वतंत्र हिन्दू गणराज्य घोषित कर दिया था । सन १३४७ में मुहम्मद बिन तुगलग ने जुझौतिखण्ड की राजधानी गढ़कुंडार पर हमला कर दिया जिसमे राजा मानसिंह समेत सभी खंगार राजपूत वीरगति प्राप्त कर गए और मानसिंह की पुत्री रानी केसर दे एवं अन्य दासीयों ने किले के भीतर मौजूद स्नान कुंड को अग्नि कुंड, जौहर कुंड बना कर स्वयं को अग्नि को सौंप दिया ।

किन्ही पुस्तक से ये दोहा प्राप्त होता है:-

जल धर रूठा नित रहे , धर जल उण्डी धार
क्षत्राणी न्हावे अग्न में , क्षत्रिय न्हावे खंग धार

कुँवर खेता से खेतसिंह खंगार[संपादित करें]

कुँवर खेता ( महाराजा खेतसिंह खंगार) इन्हें बचपन से ही कुश्ती लड़ने ओर तलवार चलाने में रुचि था। एक रोज इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के शासक पृथ्वीराज चौहान सौराष्ट्र गुजरात की यात्रा पर निकले। वहां उन्होंने युवावस्था में एक वीर युवा को सिंह से लड़ते हुए देखा । कुँवर खेता की वीरता से आकर्षित पृथ्वीराज चौहान ने उन्हें अपने साथ इंद्रप्रस्थ आने को न्योता ओर कुँवर अपने पिता की आज्ञा लेकर दिल्ली आ गए। वहाँ शेरपुर के जंगल मे कुँवर खेता द्वारा एक सिंह को चीरता देख वे इनकी वीरता से प्रभावित हो गए और उन्होंने कुँवर खेता को सिंह की उपाधि से विभूषित किया। अर्थात इन्हें राजपूतों में प्रथम सिंह भी कहा गया है।

।। था अधिपति वो भूप जिसकी कृति ये कुंडार ।।

।। राजपूतों में प्रथम सिंह जय महाराजा खेतसिंह खंगार ।।

महाराजा खेतसिंह खंगार जू देव की इसी कथा पर आधारित एक चित्रण जिसमे एक क्षत्रिय योद्धा एक सिंह से लड़ता दिखाई दे रहा है

स्वयंवर[संपादित करें]

महाराजा खेतसिंह बलवानी एवं पराक्रमी एवं पृथ्वीराज चौहान के करीबी सामन्तो में से के होने के कारण उस समय के चर्चित राजाओं में से एक थे। उस समय तारागढ़ के महाराजा ने अपनी पुत्री का स्वयंवर रखा और उसमें राष्ट्र के सभी राजपूत राजाओं को आमंत्रित किया । उस सभा में महाराजा खेतसिंह भी पहुंचे और वहां रखी एक शिला को अपने खंग से एक बार मे ही २ भागो में बांट दिया अर्थात स्वयंवर जीत गए।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]