केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला

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केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला(CSMRS) भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय का संबद्ध कार्यालय है। नई दिल्ली स्थित भारत का यह प्रमुख संस्थान क्षेत्र तथा प्रयोगशाला अन्वेषण, भूयांत्रिकी, कंक्रीट प्रौद्योगिकी, निर्माण सामग्री की समस्याओं पर आधारभूत तथा प्रायोगिक अनुसंधान, तथा पर्यावरण मुद्दों के संबंध में कार्य करता है जिसका देश में सिंचाई संबंधित तथा ऊर्जा के विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यह कार्यालय भारत तथा विदेश में विभिन्न परियोजनाओं तथा संगठनों के लिए उपर्युक्त क्षेत्रों में सलाहकार तथा परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है।

कार्यक्षेत्र[संपादित करें]

मौटे तौर पर इस कार्यालय के कार्यक्षेत्र में निम्नलिखित विषय आते हैं:-

  • मृदा गतिकी, भूतांतकी, मृदा रसायन और रॉकफिल प्रौद्योगिकी सहित मृदा यांत्रिकी एवं नींव अभियांत्रिकी (मृदा)
  • अधस्तलीय लक्षण-वर्णन और निर्माण सामग्रियों के लिए कंक्रीट प्रौद्योगिकी, ड्रीलिंग प्रौद्योगिकी (कंक्रीट)
  • मापयंत्रण, अभियांत्रिकी भू-भौतिकी और संख्यात्मक प्रतिरूपण सहित शिलायांत्रिकी (शि.यां.)
  • कंक्रीट रसायन, इलैक्ट्रानिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी (सीसीडी)

कार्य[संपादित करें]

अन्वेषण[संपादित करें]

  • आदि प्ररूप संरचनाओं के व्यवहार की मानीटरिंग के लिए प्रतिबल मापन, मापयंत्रण व अन्य मापन के साथ-साथ स्थल अभिलक्षण, प्रयोगशाला एवं क्षेत्र अन्वेषण करना तथा जल संसाधन परियोजनाओं और अन्य जटिल सिविल अभियांत्रिकी संरचनाओं के लिए गुणवत्ता नियंत्रण।
  • निर्माण सामग्री का सर्वेक्षण करना, स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का मितव्ययिता से उपयोग करने के लिए परियोजनाओं में प्रयोग हेतु गारा, कंक्रीट शॉटक्रीट इत्यादि के मिश्रित डिजाइन को तैयार करना।
  • ग्राउटिंग प्रौद्योगिकी सहित रासायनिक अन्वेषण करना।

परामर्श[संपादित करें]

  • मुख्यत: केन्द्र तथा राज्य सरकार के संगठनों जैसे केन्द्रीय जल आयोग, केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, भारत सरकार के मंत्रालयों/विभागों, राज्य सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि के लिए भूयांत्रिकी तथा सामग्री विज्ञान के क्षेत्र में समस्याओं के लिए परामर्शदाता के रूप में कार्य करना। इसी प्रकार की सेवाएं उस सीमा तक निजी उद्योगों को भी उपलब्ध कराई जाती है जिस सीमा तक ये उक्त प्राथमिक दायित्वों को निभाने में हानिकारक नहीं होती है।
  • जल एवं विद्युत परामर्शी सेवायें (वैप्कास) तथा अन्य देशों में कार्यरत ऐसे सरकारी संगठनों के माध्यम से इन देशों को भूयांत्रिकी एवं निर्माण सामग्री के क्षेत्र में परामर्श देना।
  • अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्र के अंग, एशियाई विकास बैंक इत्यादि के लिए भूयांत्रिकीय अन्वेषण तथा अनुसंधान करना।

अनुसंधान[संपादित करें]

  • भूयांत्रिकी, सामग्री विज्ञान, कंक्रीट प्रौद्योगिकी तथा सम्बद्व क्षेत्रों, जो देश की सिंचाई तथा ऊर्जा विकास से महत्वपूर्ण रूप से जुड़े हुए है, में आधारभूत तथा प्रायोगिक अनुसंधान करना।
  • उपर्युक्त क्षेत्रों में गुणवत्ता नियंत्रण की विधियों का विकास करना।
  • हिमालय क्षेत्र, जहां जल संसाधन परियोजनाओं हेतु जटिल समस्याएं हैं, की भूयांत्रिकी तथा सम्बद्व पर्यावरण मुद्दों पर विस्तृत अध्ययन करना।

सूचना प्रसार[संपादित करें]

  • डाटा बेस तैयार करना तथा भूयांत्रिकी, कंक्रीट प्रौद्योगिकी एवं निर्माण सामग्री में समस्याओं के समाधान हेतु अपने पुस्तकालय व प्रलेखन केन्द्र तथा अपनी सूचना प्रसार की गतिविधियां, जैसे कार्यशालाएं, सम्मेलनों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन और साहित्य प्रकाशन के माध्यम से सूचना केन्द्र के रूप में कार्य करना।

संपर्क[संपादित करें]

  • उपर्युक्त कार्यों को करने के लिए राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, राज्य एवं अन्य प्रयोगशालाओं/अनुसंधानशालाओं, विश्वविद्यालयों/भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण इत्यादि के साथ मजबूत संपर्क स्थापित करना।

प्रशिक्षण[संपादित करें]

  • भूयांत्रिकी, निर्माण सामग्री तथा कंक्रीट प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अन्वेषण और परीक्षण के लिए अपने देश तथा बाहरी देशों के इंजीनियरों को प्रशिक्षण प्रदान करना।

विविध[संपादित करें]

  • आवश्यकता पड़ने पर भारत सरकार की ओर से विशेष कार्य करना।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]