कालामाल का स्थल

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काल भैरव अर्थात काळामाळ जी भगवान, झोंपड़ा गांव के नारेड़ा गोत्र के कुल देवता

कालामाल जी (Kalamal Ji) मीणा समाज के नारेड़ा गोत्र का प्रमुख पौराणिक आस्था स्थल है। सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में स्थित झोंपड़ा गांव में कालभैरव अर्थात कालामाल जी भगवान का पौराणिक स्थल है। जो काल भैरव का ही स्वरूप है। यह स्थान झोंपड़ा गांव के गरीबनाथ योगी पीठ के बाद दूसरा सबसे पौराणिक स्थल माना जाता है। झोंपड़ा गांव के नारेड़ा गोत्र का धराड़ी प्रथा के अनुसार भगवान कालामाल जी को कुल देवता माना गया है। इनकी सवारी काला श्वान बताया गया है।

नामकरण[संपादित करें]

झोंपड़ा गांव के पास बनास नदी के किनारे प्राचीन समय में सघन वनक्षेत्र हुआ करता था। कहा जाता है कि झोंपड़ा गांव के गरीबनाथ योगी के दक्षिण-पूर्व में स्थित वन क्षेत्र को कालामाला के नाम से तब जाना जाता रहा है। इसी के चलते नारेड़ा गोत्र के मीणों ने गांव के आगमन के कई वर्षों बाद इस क्षेत्र में अपने कुल देवता काल भैरव की स्थापना की। जो कालामाल क्षेत्रीय नाम प्रचलन के कारण कालामाल जी के नाम से जाना जाने लगा।

बसावट[संपादित करें]

इतिहास[संपादित करें]

जल जमीन की तलाश में वर्तमान बंधा गांव के खरण नामक भैरूजी स्थान से भगवतगढ़ की तरफ दोनों भाई (आशाराम एवं जगराम नारेड़ा) अपने परिवार सहित निकल गए। वर्तमान भगवतगढ़ से होते हुए गलवा नाला (वर्तमान गळोव नदी) के पास दोनों भाईयों ने पड़ाव डाला। कुछ दिनों तक गलवा नाला के पास रहने के बाद आशाराम एवं जगराम नारेड़ाओं ने बाबा गरीबनाथ की धरती पर रहना शुरू कर दिया। झोंपड़ा गांव में मीणा समाज के आने की पहली शुरूआत इन्हीं दो भाईयों से हुई। आशाराम एवं जगराम नारेड़ा नाथ सम्प्रदाय के लोगों के साथ मिलकर बाबा गरीबनाथ की सेवा करने लगे एवं यही पर जीवन व्यतीत करने लगे। नारेड़ाओ ने गरीबनाथ जी महाराज के आशिर्वाद से 12 वीं सदी के प्रारम्भ में कुल देवता काल भैरव के नाम का भोग गांव के दक्षिण नाके पर पूर्व दिशा (उगेणी) की देखते तरफ हुए लगवाया । कहां जाता है कि वर्षों बाद काल भैरव की स्थापना इसी जगह पर नानका पटेल के पूर्वजों ने की थी। बनास नदी के पानी से मंत्रित कालभैरव की यह सप्त गोल खुरदरे पत्थरों की मूर्तिया सात नारेड़ा सगे भाई बहन की आस्था का प्रतीक है। इस स्थान को वर्तमान में कालामाल जी के नाम से जाना जाता है। यह स्थान गांव का सबसे चमत्कारी एवं गांव का दूसरा (गरीबनाथ के बाद) सबसे प्राचीन धार्मिक स्थल है। तब से लेकर आज तक इस स्थान पर कालामाल जी को मदिरा चढ़ाई जाती है एवं पूवा- पापड़ी का भोग लगाया जाता है। कालामाल जी देव का विशेष दिन रविवार को माना जाता है। कहां जाता है कि नारेड़ा गोत्र के कुल 'देवता कालभैरव (कालामाल जी) कि सच्चे दिल से जो पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। कालामाल जी की सवारी काले रंग के कुत्तें की मानी जाती है। पूर्वजों द्वारा बच्चों का मुंडन संस्कार कालामाल जी के स्थान पर किया जाता था। आज भी रविवार के दिन टापरीवालें योग ( मोहल्ला) में जन्मे बच्चे के जडुलें इसी जगह पर उतारे जाते है। जडूलें को हिन्दी भाषा में मुंडन संस्कार कहते है । कालामाल जी भाव रूप में किसी को भी नही आते है। वर्तमान में यह गांव के टापरीवाले योग में स्थित है। धराड़ी प्रथा के अनुसार गंधर्वराज नारेड़ा के सात बेटा बेटी की आस्था से जुड़ा झोंपड़ा गांव में मीणा समाज के नारेड़ाओं का यह पहला कुल स्थल है। गंधर्वराज नारेड़ा के छ: बेटे और एक बेटी थी जिनके नाम इस प्रकार थे शेषमल, सेडू, करमसी बाई, जन्सी, आशाराम, उदय और जगराम यह सातों भाई बहन काल भैरव के उपासक थे। इन्हीं सात- भाई बहनों की याद में यह नारेड़ाओं का कालामाल मंदिर या स्थल है। कहां जाता है कि कालभैरव की स्थापना रविवार के दिन की गई थी। धराड़ी प्रथा के अनुसार कालामाल के खेजड़ा वृक्ष और जाल को झोंपड़ा गांव के नारेड़ा गोत्र के मीणा कुल वृक्ष रूप में पूजते है।

पौराणिकता[संपादित करें]

विशेष दिन[संपादित करें]

भगवान काळ भैरव का विशेष दिन नारेड़ा गोत्र के मीणाओं में रविवार को माना जाता है। झोंपड़ा गांव में स्थित भगवान काळामाळ जी को झोंपड़ा गांव के नारेड़ा रविवार के दिन पूजते है। इस दिन कालामाल जी के शराब भी चढ़ाई जाती है।

पूजा[संपादित करें]

चालीसा[संपादित करें]

भजन[संपादित करें]