कर्नाला दुर्ग
कर्नाला दुर्ग | |
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कर्नाळा किल्ला | |
कर्नाला, महाराष्ट्र | |
निर्देशांक | 18°52′54″N 73°07′05″E / 18.88167°N 73.11806°E |
प्रकार | पहाड़ी दुर्ग |
ऊँचाई | 439 मी॰ (1,440 फीट) ASL |
स्थल जानकारी | |
स्वामित्व | भारत सरकार |
नियंत्रक | अहमदनगर सल्तनत, पूर्तगाली, मराठा, ब्रितानी ईस्ट इंडिया कंपनी |
जनप्रवेश | हाँ, सुबह 6 बजे से सायं 6 बजे तक |
दशा | खंडहर |
स्थल इतिहास | |
सामग्री | पत्थर |
कर्नाला दुर्ग अथवा कर्नाला किला (जिसे चिमनी पहाड़ी अथवा फनल हिल भी कहा जाता है[1]) भारतीय राज्य महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित एक पहाड़ी दुर्ग है। यह पनवेल नगर से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित है। वर्तमान में यह कर्नाला पक्षी अभ्यारण्य के अंतर्गत एक संरक्षित स्थान है। यह रणनीतिक महत्व का स्थान था क्योंकि यह बोर दर्रे की निगरानी करने में सक्षम था। यह दर्रा कोंकण तट को महाराष्ट्र के आंतरिक भाग (दक्कन पठार) से जोड़ने वाला मुख्य व्यापार मार्ग था।[1]
इतिहास
[संपादित करें]दुर्ग का निर्माण संभवतः वर्ष 1400 से पहले देवगिरी यादवों (1248-1318) और तुगलक शासकों (1318-1347) द्वारा किया गया था। कर्नाला उनके संबंधित साम्राज्यों के उत्तरी कोंकण जिलों की राजधानी था।[2] बाद में यह गुजरात सल्तनत के अधीन आ गया था लेकिन वर्ष 1540 में अहमदनगर के निज़ाम शाह ने इस पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद गुजरात के सुल्तानों ने इसे वापस जीतने के लिए बासीन (आधुनिक वसई) में पुर्तगालियों के कमांडिंग ऑफिसर डोम फ्रांसिस्को डी मेनेंजेस से मदद का अनुरोध किया। उन्होंने अपने 500 सैनिकों को कर्नाला दुर्ग पर जाने का आदेश दिया और वो उस पर कब्ज़ा करने में सफल रहे। किले को पुर्तगाली सैनिकों की देखरेख में गुजरात सल्तनत के अधीन छोड़ दिया गया था।[3]
गुजरात के सुल्तान ने दुर्ग पुर्तगालियों को सौंपा और वसई भाग गए। कर्नाला की हार से निज़ाम शाह क्रोधित हो गए और उन्होंने किले और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने के लिए 5,000 सैनिक भेजे।[3] यह प्रयास असफल रहा और पुर्तगालियों का दुर्ग पर कब्ज़ा जारी रहा। हालाँकि, सांगली और कर्नाला के दुर्ग रणनीतिक महत्त्व के होते हुये भी पूर्तगाली वायसराय ने 17,500 रुपये (अथव 5,000 स्वर्ण मुद्राओं) के वार्षिक भुगतान के बदले यह निज़ाम शाह को वापस कर दिया।[3][4]
वर्ष 1670 में छत्रपति शिवाजी ने यह दुर्ग मुगलों से जीत लिया और इसमें आवक्षभीत्ति का निर्माण करवाया।[2] वर्ष 1680 में शिवाजी के निधन के पश्चात् औरंगजेब ने इसपर पुनः कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद कुछ समय बाद तक इस पर मुगलों का कब्जा रहा जिसे बाद में वर्ष 1740 में पुणे के पेशवाओं अपने अधिकार में ले लिया। यह वर्ष 1818 में कर्नल प्रोथर के जीतने तक किलर (गैरीसन कमांडर) अनंतराव के अधीन रहा।[5] कर्नल प्रोथर के जीतने के बाद इसका अधिकार ब्रिटिश इंडिया कंपनी के अधीन हो गया।
किले तक ट्रैकिंग
[संपादित करें]आज दुर्ग के खंडहर लंबी पैदल यात्रा और पर्यटन के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य हैं।[6] दुर्ग तक जाने के लिए दो रास्ते हैं जिनमें पहला कर्नाल दुर्ग का रास्ता और दूसरा प्राकृतिक रास्ता है।[7] करनाला दुर्ग ट्रेल ट्रेक पहाड़ी के नीचे से 1 घंटे/2.69 किलोमीटर का है।[8] वन विभाग द्वारा बनाए गए मार्ग पर 5 विश्राम स्थल हैं। किले के प्रवेश द्वार के पास अंतिम चढ़ाई वाली सीढ़ियों को लोहे की रेलिंग द्वारा सुरक्षित बनाया गया है। शिखर के नीचे खाना पकाना उचित नहीं है, क्योंकि धुएं की गंध से मधु मक्खियाँ परेशान हो सकती हैं। सबसे दक्षिणी चट्टान पर बने पानी के कुंड का पानी पीने योग्य है। वन गेस्ट हाउस में प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध है। प्राकृतिक पथ छोटा (1.20 किलोमीटर) है और दुर्ग तक पहुंचने का रास्ता अधिक खड़ा है।[9]
मानसून के दौरान ट्रैकिंग करना वास्तव में एक रोमांचक अनुभव है। [10]
प्रमुख विशेषताएं
[संपादित करें]भवानी मंदिर
किले की छवियाँ
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दुर्ग के अंदर का खंडहर
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कर्नाला टावर
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किराना दुर्ग की दीवारें
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गोधूलि बेला में शिखर
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दुर्ग का पैनोरमा दृश्य
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बारिश के मौसम में कर्नाला किला
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दुर्ग के अवशेष
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कर्नाला टावर का पार्श्व दृश्य
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कर्नाला दुर्ग में उगे पेड़
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ हंटर, विलियम विल्सन (1908). इम्पिरियल गजेटियर ऑफ़ इंडिया. क्लेरेंडन प्रेस. पपृ॰ 59. अभिगमन तिथि 2009-02-16.
karnala fort.
- ↑ अ आ "Kolaba District Gazetteer". अभिगमन तिथि 2009-02-16. सन्दर्भ त्रुटि:
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अमान्य टैग है; "gazette" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है - ↑ अ आ इ डेनवर, फ्रेडरिक चार्ल्स (1894). The Portuguese in India : A.D. 1481-1571. डब्ल्यू.एच. और एलन. पपृ॰ 452–453. अभिगमन तिथि 2009-02-16. सन्दर्भ त्रुटि:
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अमान्य टैग है; "port" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है - ↑ Gazetteer of the Bombay Presidency. गवर्नमेंट सेंट्रल प्रेस. 1883. पपृ॰ 387.
- ↑ शास्त्रि जोशी, वेंकटेश (1959). Vasudeo Balvant Phadke. डीएस मराठे.
- ↑ "Karnala Bird Sanctuary - How to go, what is there to see". अभिगमन तिथि 2014-07-14.
- ↑ सिंह, भरत (18 जुलाई 2015). "Karnala Fort and Bird sanctuary near Mumbai (Maharashtra) monsoon trek". inditramp. अभिगमन तिथि 11 दिसम्बर 2023.
- ↑ inditramp (July 17, 2015). "Karnala Fort Trail". Wikiloc. अभिगमन तिथि July 29, 2020.
- ↑ inditramp (July 18, 2015). "Nature Trail to Karnala Fort". Wikiloc. अभिगमन तिथि July 29, 2020.
- ↑ "Passions Primitive: Karnala Bird Sanctuary and Fort". passionsprimitive.blogspot.co.uk.