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एके47

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एके-४७ (द्वितीय प्रतिरूप)
ए के ४७ का द्वितीय प्रतिरूप। यह प्रथम मशीनीकृत रिसीवर अंतरण है।
ए के ४७ का द्वितीय प्रतिरूप, प्रथम मशीनीकृत रिसीवर अंतरण
प्रकार आक्रमण राइफल
उत्पत्ति का मूल स्थान  Soviet Union
सेवा इतिहास
सेवा में 1949–वर्तमान
द्वारा प्रयोग किया देखें प्रयोगकर्ता
उत्पादन इतिहास
डिज़ाइनर मिखाइल कलाशनिकोव
डिज़ाइन किया 1944–1946
निर्माता इज़्माश, कलाश्निकोव कन्सर्न
उत्पादन तिथि 1948–present
निर्माणित संख्या 7.5 करोण एके47, १०० करोण से ज्यादा कलश्निकोव श्रेणी के हथियार।
संस्करण देखें अंतरण
निर्दिष्टीकरण
वजन 4.3 kg (9.5 lb) रिक्त मैगज़ीन सहित
लंबाई 870 mm (34.3 in) लकड़ी के पुट्ठे सहित
875 मि॰मी॰ (2.9 फीट) folding stock extended
645 मि॰मी॰ (2.1 फीट) stock folded
बैरल लंबाई 415 मि॰मी॰ (1.4 फीट)

कारतूस 7.62x39mm एम४३
कार्रवाई गैस चलित, घूमता बोल्ट
आग की दर 600 राउंड/मिनट
थूथन वेग 715 मी/से (2,346 फुट/सेकंड)
दूरी जहाँ तक अस्त्र मार कर सके 100–800 दृश्यता समायोजन मी०
फ़ीड करने के लिए प्रणाली 30-राउंड अलग हो सकने वाला बॉक्स मैगज़ीन, 40-राउंड बॉक्स के साथ भी चल सकने लायक या आरपीके की 75-राउंड वाली ड्रम मैगज़ीन के साथ समायोज्य होने लायक भी।
आकर्षण समायोज्य लौह दृष्टि छिद्र, 378 मि॰मी॰ (1.2 फीट) दृश्य त्रिज्या

एके ४७ दुनिया की सबसे पहली और शायद सबसे अच्छी अस्सौल्ट राइफल मानी जाती है। इसका विकास सोवियत संघ के मिखाइल कलाशनिकोव ने किया था, इसी कारण इसे कभी कभी कलाशनिकोव राइफल भी कहा जाता है। और इसे किया जाता है

डिजाइनिंग का इतिहास

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द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मन सेना ने असाल्ट राइफल की संकल्पना विकसित की, उन्होंने देखा की ज्यादातर मुठभेडे ३०० मीटर के दायरे के भीतर ही होती थी, जबकि उस जमाने में जो राइफले और कारतूस मिलते थे उनकी शक्ति इतनी कम दूरी की लड़ाई के हिसाब से ज्यादा होती थी। इस लिए सेना ने इस प्रकार की राइफल और कारतूस की मांग की जिसमे सबमशीन के गुण (बड़ी मैगजीन और कई मोड़ पे गोली चलाने की सुविधा हो) भी हो और यह ३०० मीटर के दायरे में काम करती हो। इसके परिणाम स्वरूप जर्मन सेना की एस टी जी ४४ राइफल सामने आयी हालांकि ये इस प्रकार की पहली राइफल नहीं थी। इटली की सेना भी सेई-रिगोटी और सोवियत सेना की फेदारोव एव्तामोट राइफल भी इसी श्रेणी की थी। लेकिन जर्मन सेना ने ये राइफले बड़े पैमाने पर प्रयोग की थी जिससे उन्हें इसका मूल्यांकन करने का मौका मिल गया। सोवियत सेना भी जर्मन सेना के सिद्धान्तो और दर्शन से प्रभावित हुई और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इनका पालन शुरू कर दिया। मिखाइल क्लाशिनिकोव ने अपना हथियार डिजाइनर का कैरियर हास्पिटल में जख्मी मरीज के रूप में भर्ती होने के बाद शुरू किया था। उनके द्वारा विकसित किए गए पहले कार्बाइन डिजाइन को अस्वीकार कर दिया गया, लेकिन उन्होंने १९४५ में हुए असाल्ट राइफल डिजाइन प्रतियोगिता में भाग लिया। उनका माडल ३० गोलियो वाला गैस बेस डिजाइन था। इसे एके१ और एके२ का कोड नाम दिया गया था।

1946 में उनके एक सहायक अलेक्जेंडर जाय्स्तेव ने इसमे कई सुधर सुझाए जो उन्होंने आनाकानी के बाद मान लिए। अंत में उनके 1947 माडल में सादगी, भरोसेमंदी और हर हाल में काम करने की विशेषता थी, 1949 में उनके इस माडल को सोवियत सेना ने 7.62 कलाश्निकोव राइफल के रूप में स्वीकार कर लिया।

प्रारूप संकल्पना

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नया प्रतिरूप

कलाश्निकोव राइफल की खासियते ये रही है सरल डिजाइन, काफी छोटा साइज तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में आसानी, मिखाइल कलाश्निकोव ने इस बात से हमेशा इनकार किया है कि उनकी राइफल जर्मन एस.टी.जी 44 की नक़ल है, हालांकि सारे सबूत उनके ख़िलाफ़ है, हम इस राइफल को पहले की समस्त राइफल तकनीको का मिश्रण मान सकते है, इसके लोकिंग डिजाइन को एम 1 ग्रांड राइफल से लिया गया है, इसका ट्रिगर और सेफ्टी लोक रेमिंगटन राइफल माडल 8 से लिया गया है, जबकि गैस सिस्टम और बाहरी डिजाइन एस.टी.जी.44 से लिया गया है, कलाश्निकोव की टीम की पहुँच इन सभी हथियारों तक थी और इस प्रकार उसे पहिये का पुन आविष्कार करने की जरूरत नहीं थी, ख़ुद उन्होने माना था कि किसी चीज का आविष्कार करने से पहले उस क्षेत्र में मौजूद हर चीज का अध्ययन कर लेना चाहिए और मैंने ख़ुद इस चीज को अनुभव किया है।

ग्राहक विकास इतिहास

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उत्पादन के प्रारम्भिक चरण में इस राइफल को काफी समस्याओ का सामना करना पडा, पहले पहल इसके जो माडल सामने आए थे उनमे स्टाम्पड धातु शीट के रीसीवर लगे हुए थे, इसके गाइड और इजेकटर ट्रेल को वेल्ड करने में भी दिक्कत आती थी जिसके चलते इसे बड़े पैमाने पे अस्वीकार करना होता था, लेकिन उत्पादन रोकने के स्थान पर इसमे एक भारी मकिनिकल रीसीवर लगा दिया गया। यह एक मंहगा उपाय था लेकिन इसको करने के बाद उत्पादन की गति बढ़ गयी थी फ़िर कोई नए मकेनिकल रीसेवर नहीं लगाए जा रहे थे पहले की मोसिन नगाट राइफल के रीसीवर ही प्रयोग किए जा रहे थे, इस समस्या के चलते ही 1956 तक सोवियत सेना में ये राइफलें बड़े पैमाने पर वितरित नहीं की जा सकी, तथा इस दौरान एस के एस राइफले ही सेना को दी जाती रही, एक बार उत्पादन से जुडी दिक्कते सुलझते ही के नया माडल एकेएम् [एम् का अर्थ माडर्न ] सेना में दिया जाना शुरू किया गया। इस नए माडल में स्तामप्द शीट मेटल रीसीवर लगा था इसके बैरल के अंत में के मजाल ब्रेक लगा था जिससे रीकोइल के समय मजल ऊपर नहीं उठे, इसके अलावा इसमे हैमर रीतर्दर भी लगा हुआ था ताकि आटोमेटिक गोली चलाने के समय सीमित सख्या में ही राऊंड चले और हथियार को कोई नुक्सान नहीं हो, यह राऊंड रीड्योसरभी कहलाता है।

ये नया माडल पुराने माडल से १/३ कम भारी था यही माडल आज सबसे ज्यादा प्रचलन में है तथा इसका ही उत्पादन आज तक सबसे ज्यादा हुआ है, यधपि आम तौर पर ये भेद किस्सी को ज्ञात नहीं है। सभी राइफलों को एके47 कहना ठीक नहीं है इनमे से कुछ एकेएम् भी है इनका अन्तर आप साथ दिए चित्र में कर सकते है। एके 47 के कुल चार भेद इस प्रकार है:

टाइप 1 a/b एके ४७ का मूल माडल, 1 b को फोल्डिंग हेतु बदला गया था, इनके दोनों तरफ एक बड़ा छेद रहता था
टाइप 2A/B इसमे स्टील फोर्जिंग की गयी थी
टाइप 3A/B दूसरे माडल का अन्तिम रूप
टाइप 4A/B सबसे ज्यादा प्रयोग आने वाला माडल इसमे उन्नत किया गया रीसीवर लगाया गया था

विशेषता

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इस राइफ़ल की खासयित है इसका सरल डिजाइन, छोटा आकार और बहुत कम लागत में बड़ी संख्या में निर्माण करने की सुविधा, इसकी कठोरता और भरोसेमंदी मिथक बन चुकी है, इसे आर्कटिक जैसी सर्दी पड़ने वाले इलाके को ध्यान में रखकर बनाया गया था इसमे बहुत ज्यादा कचरा फसने के बाद भी ये काम कर सकती है, लेकिन इसके चलते इसके निशाने उतने अच्छे नहीं रह जाते है, सोवियत लाल सेना इसे समूह में प्रयोग करने वाला हथियार मानती थी, इस का सामान्य जीवन काल २० से ४० साल माना जाता है जो इसके रखरखाव पे निर्भर करता है, कुछ एके ४७ के साथ संगीन भी लागा के दी जाती है

इस राइफल में निशाने लेने में आसानी हेतु एक लोहे का गेज पीछे की तरफ लगा होता है, राइफल के अगले सिरे पे भी निश्हना लगाने में सहोलियत देने के लिए गेज लगा होता है, इनको समायोजित करने के उपरांत प्रयोगकर्ता २५० मीटर तक निशाना आसानी से लगा सकता है इसके अंदरूनी भागो जैसे गैस चेम्बर, बोर आदी पर क्रोमियम की प्लेटिंग की जाती है जिस से इस राइफल की जिन्दगी बढ़ जाती है और इसमे जंग नहीं लगती है, आधुनिक काल के ज्यादातर कारतूसों के प्राइमर में पारे के अंश रहते हैं जो किसी हथियार को जंग लागाने और गलने में सहयोग देते है

आपरेटिंग चक्र

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इस राइफल को ब्रस्ट और आटोमेटिक दोनों तरीकों से चलाया जा सकता है इस गैस आप्रेताद राइफल में रीकोइल तकनीक से पुराने कार्तोस गिरते जाते अहि और इसके झटके से नए कारतूस आ जाते है

विघटित करना

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इस राइफल को बड़ी सरलता से विघटित किया जा सकता है इसके संचालन और विघटन करने की तकनी आप संधर्ब में दिए गए मैन्युअल में देख सकते है

इस राइफल में 7.62×39 मिलीमीटर के कारतूस आते है जो 710 मीटर प्रति स्कैन्ड की गति से जाते है ये अधिकतम ४०० मीटर की दूरी पर जाते है।

टिप्पणियां

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बाहरी कडियाँ

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  • कटशॉ, चार्ली; शीलिन, वैलेरी. Legends and Reality of the AK: A Behind-the-Scenes Look at the History, Design, and Impact of the Kalashnikov Family of Weapons. बॉल्डर, कम्पनी: पैलाडिन प्रेस, 2000 (पेपरबैक, ISBN 1-58160-069-0).
  • ईज़ेल, एडवर्ड क्लिन्टन (1986). The AK-47 Story: Evolution of the Kalashnikov Weapons (अंग्रेज़ी में). मेकैनिक्सबर्ग, पेन्सिलवेनिया: स्टैकपोल बुक्स. ISBN 0-8117-0916-7. (ईज़ेल अपनी मृत्यु से पूर्व स्मिथसोनियन संग्रहालय में सैन्य इतिहास विभाग के अध्यक्ष थे।)
  • ईज़ेल, एडवर्ड क्लिन्टन; आर. ब्लेक स्टीवन्स (2001). Kalashnikov: The Arms and the Man (अंग्रेज़ी में). कोबोर्ग, ओन्टारियो: कलेटर ग्रेड पब्लिकेशन्स. ISBN 0-88935-267-4.
  • गीनिज़ विश्व कीर्तिमान 2005. ISBN 1-892051-22-2.
  • होज़ेज़, माइकल. AK47: the Story of the People's Gun. लन्दन: स्केपटर, 2007 (हार्डकवर, ISBN 0-340-92104-8).
  • कैहेनेर, लैरी. AK-47: The Weapon that Changed the Face of War. होबोकेन, न्यू जर्सी: विली पब्लिकेशन्स, 2006 (हार्डकवर, ISBN 0-471-72641-9).
  • कलाश्निकोव, मिखाइल. The Gun that Changed the World. कैम्ब्रिज़: पोलिटी प्रेस, 2006 (हार्डकवर, ISBN 0-7456-3691-8; पेपरबैक, ISBN 0-7456-3692-6).
  • पोयर, जो (2004). The AK-47 and AK-74 Kalashnikov Rifles and Their Variations (Paperback). टस्टिन, कैलिफोर्निया: नोर्था केप प्रकाशन. ISBN 1-882391-33-0.
  • Small Arms of the World. ISBN 0-88029-601-1.
  • वाल्टर, जॉन. कलाश्निकोव (ग्रीनहिल मिलिट्री मैनुअल्स). लन्दन: ग्रीनहिल बुक्स, 1999 (हार्डकवर, ISBN 1-85367-364-1).

बाहरी कड़ियाँ

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नियमावली

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