एंजियोग्राफी
एंजियोग्राफी (अंग्रेजी: Angiography), वाहिकाचित्रण अथवा वाहिकालेख रक्त वाहिनी नलिकाओं धमनी व शिराओं का एक प्रकार का एक्सरे जैसा चिकित्सकीय अध्ययन है, जिसका प्रयोग हृदय रोग, किडनी संक्रमण, ट्यूमर एवं खून का थक्का जमने आदि की जाँच करने में किया जाता है। एंजियोग्राफ में रेडियोधर्मी तत्व या डाई का प्रयोग किया जाता है, ताकि रक्त वाहिनी नलिकाओं को एक्स रे द्वारा साफ साफ देखा जा सके। डिजिटल सबस्ट्रेक्शन एंजियोग्राफी नामक एक नयी तकनीक में कंप्यूटर धमनियों की पृष्ठभूमि को गायब कर देता है जिससे चित्र ज्यादा साफ दिखने लगते हैं।[1] यह तकनीक रक्त वाहिकाओं में अवरोध होने की स्थिति में ही की जाती है। इससे हृदय की धमनी में रुकावट एवं सिकुड़न की जानकारी का तत्काल पता चल जाता है। एंजियोग्राफी के बाद बीमारी से ग्रस्त धमनियों को एंजियोप्लास्टी द्वारा खोला जाता है।
इस उपचार के बाद रोगी के हृदय की रक्तविहीन मांसपेशियों में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और उसे तत्काल आराम मिल जाता है। यही नहीं, हृदयाघात की सम्भावना में भी भारी कमी आ जाती है।[2] एंजियोग्राफी दो यूनानी शब्दों ‘एंजियॉन’ यानी वाहिकाओं और ‘ग्रेफियन’ यानी रिकॉर्ड करने से मिलकर बना है। यह तकनीक १९२७ में पहली बार एक पुर्तगाली फिज़ीशियन व न्यूरोलॉजिस्ट इगास मोनिज ने खोजी थी। इगास मोनिज को१९४९ में इस उल्लेखनीय कार्य के लिये नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था!
कितने प्रकार की एंजियोग्राफी
[संपादित करें]एंजियोग्राफी कई तरह की होती है। इसके कुछ प्रकार निम्नवत हैं:
- सेरेब्रेल एंजियोग्राफी में खून के थक्के और मस्तिष्क सम्बन्धी समस्याओं के बारे में पता लगाया जाता है।
- एंजियोग्राफी की मदद से फेफड़ों में खून के प्रवाह का आकलन करने की कोशिश की जाती है।
- फ्लोरोसीन एंजियोग्राफी का प्रयोग आँखों के रेटिना से सम्बन्धित समस्याओं का उपचार करने के लिये किया जाता है।
- इसके अलावा किडनी और कोरोनरी आदि की भी एंजियोग्राफी की जाती है।
- जाँघ के अलावा हाथ से भी एंजियोग्राफी की जाती है।
एंजियोग्राफी कैसे की जाती है
[संपादित करें]लोकल एनेस्थीसिया देकर रोगी की बाँह या जाँघ के पास से कैथेटर और तार डालकर उसकी धमनियों में आये अवरोधों की एंजियोग्राफी की जाती है। इससे पता चल जाता है कि अवरोध कहाँ और कितने बड़े हैं। एंजियोग्राफी के साथ ही सीधे मॉनीटर पर देखते हुए अवरोध को बैलून डालकर खोल भी दिया जाता है।[3] सामान्यतः एंजियोग्राफी जाँघ के पास से ही की जाती है। इसे फेमोरल एंजियोग्राफी कहते हैं। इसमें रोगी को छह से बारह घण्टे तक अपने पैर को बिना हिलाये कैथ लैब में लेटे रहना पड़ता है क्योंकि इस प्रक्रिया में खून के रिसाव की सम्भावना काफी अधिक रहती है। एक दूसरे प्रकार की एंजियोग्राफी भी होती है जिसे रेडियल एंजियोग्राफी कहते हैं। इसमें धमनी की एंजियोग्राफी बाँह के पास से की जाती है। इस तकनीक से न तो खून के रिसाव का डर रहता है और न ही रोगी को लम्बे समय के लिये लेटना ही पड़ता है। इस एंजियोग्राफी के बाद रोगी जल्द ही अपने घर जा सकता है और अपने पैरों पर चल भी सकता है।[2] सामान्यत: इसे करने से पहले रोगी को सलाह दी जाती है कि वह सात-आठ घण्टे पूर्व कुछ न खाने के बाद ही एंजियोग्राफी करवाने के लिये हॉस्पिटल आये। एक्सरे किरणों के प्रभाव से बचाने के लिये गर्भवती महिलाओं को यह परीक्षण न कराने की हिदायत दी जाती है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ कैसे खुद पहचानें कैंसर को : कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है- जल्द पहचान Archived 2011-08-13 at the वेबैक मशीन रेनबो २९ अप्रैल, २००९
- ↑ अ आ हाथ से एंजियोग्राफी की सुविधा राजधानी में[मृत कड़ियाँ] याहू जागरण सितंबर, २००८
- ↑ एंजियोग्राफ़ी और एंजियोप्लास्टी[मृत कड़ियाँ] डॉ॰ गिरीश कवठेकर (वेब दुनिया)