आल्ह-खण्ड
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आल्ह-खण्ड भोजपुरी और बघेली जैसी अन्य क्षेत्रिय भाषा में लिखित एक वीर रस प्रधान गाथागीत है जिसमें आल्हा और ऊदल की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है।[1] ये दोनों वीर बनाफर वंश से संबंधित बताये जाते हैं। 12 वीं शताब्दी के दो बनाफर नायकों, आल्हा और उदल, महोबा के चक्रवर्ती सम्राट परमर्दीदेव (परमाल) (1165-1202 सीई) के लिए काम करने वाले सेनापतियों के बहादुर कृत्यों का वर्णन करने वाले कई गाथागीत शामिल हैं, जो दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान (1149-1192 ईस्वी) के खिलाफ थे।
- "यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। ये प्राय: १२वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और १३वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए इनमे से ऊदल वीरगति को प्राप्त हो गये। वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है और उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से गाते हम लोग चले आते हैं। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था।"[2]
सन्दर्भ
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- मिश्र, पं० ललिता प्रसाद (2007). आल्हखण्ड (15 ed.). पोस्ट बॉक्स 85 लखनऊ 226001: तेजकुमार बुक डिपो (प्रा०) लि०. p. 614.
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