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आचार्य मम्मट

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आचार्य मम्मट भट्ट
जन्म ११वीं शताब्दी
कश्मीर
राष्ट्रीयता भारतीय
उपनाम मम्मटाचार्य
जाति भारतीय
नागरिकता भारतीय
शिक्षा काश्यां, आचार्य:
पदवी आचार्य
प्रसिद्धि का कारण संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में गिनती
धर्म हिन्दू
माता-पिता जैयट: (पिता)
संबंधी कैयट: (भ्राता)

आचार्य मम्मट संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में से एक समझे जाते हैं। वे अपने शास्त्रग्रंथ काव्यप्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए।[1][2] कश्मीरी पंडितों की परंपरागत प्रसिद्धि के अनुसार वे नैषधीय चरित के रचयिता श्रीहर्ष के मामा थे।[3] उन दिनों कश्मीर विद्या और साहित्य के केंद्र था तथा सभी प्रमुख आचार्यों की शिक्षा एवं विकास इसी स्थान पर हुआ।[4][5] वे कश्मीरी थे, ऐसा उनके नाम से भी पता चलता है लेकिन इसके अतिरिक्त उनके विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। वे भोजराज के उत्तरवर्ती माने जाते है, इस हिसाब से उनका काल दसवीं शती का लगभग उत्तरार्ध है। ऐसा विवरण भी मिलता है कि उनकी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी में हुई।[6]

आचार्य मम्मट कश्मीर के एक पंडित परिवार में पैदा हुए थे। वे जैयट के पुत्र थे जिन्होंने ब्राह्मण काशीका के साथ व्याकरण ग्रंथ का संयुक्त लेखन किया था। और कैयट के भाई थे.[7] उव्वट वेदों पर भाष्य करने वाले पंडित थे , बाद में उनके इस काम को इनके द्वारा अधिग्रहित किया गया ,सयाण और माधव ने इसे आगे बढ़ाया था। आचार्य मम्मट ने अध्ययन के उद्देश्य के लिए बनारस की यात्रा की। आचार्य मम्मट के समय कश्मीर में साहित्य का अत्यधिक प्रचार प्रसार होने लगा था। जिससे बौद्ध साहित्य प्रेरित हुआ और फिर भारत के बाहर हिमालय में बौद्ध साहित्य के वर्तमान घर तिब्बत में इसका उत्थान हुआ और वो शीर्ष पर पंहुचा। इनके बाद ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में साहित्य कश्मीर से मिथिला तक और फिर बंगाल तक फैला वर्त्तमान में यह दक्षिण भारत में सिमट गया है। आचार्य मम्मट संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में से एक समझे जाते हैं। वे अपने शास्त्रग्रंथ काव्यप्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए। कश्मीरी पंडितों की परंपरागत प्रसिद्धि के अनुसार वे नैषधीय चरित के रचयिता श्रीहर्ष के मामा थे। उन दिनों कश्मीर विद्या और साहित्य के केंद्र था तथा सभी प्रमुख आचार्यों की शिक्षा एवं विकास इसी स्थान पर हुआ। वे कश्मीरी थे, ऐसा उनके नाम से भी पता चलता है लेकिन इसके अतिरिक्त उनके विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। वे भोजराज के उत्तरवर्ती माने जाते है, इस हिसाब से उनका काल दसवीं शती का लगभग उत्तरार्ध है। ऐसा विवरण भी मिलता है कि उनकी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी में हुई।

सन्दर्भ

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  1. "Five Millennia Old Culture & Literature of Kashmir". आईकश्मीरनेट. मूल से (एचटीएमएल) से 10 मई 2008 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 30 जनवरी 2008. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  2. द ए टु ज़ेड ऑफ़ हिन्दुइज़्म, सुलिवान, बी एम, विज़न बुक्स, पृ.१२४, ISBN 8170945216
  3. "Kashmir: The Fountainhead of Indian Culture". कोसा.ऑर्ग. मूल से (एचटीएमएल) से 15 दिसंबर 2007 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 30 जनवरी 2008. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= and |archive-date= (help)
  4. "Prof. Iqbal Krishna Sharga - A born Philosopher and original thinker" (एचटीएमएल). कश्मीर सेंटीनेल. 25 अक्तूबर 2007 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 30 जनवरी 2008. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= and |archive-date= (help)
  5. "Sanskrit speeches win big applause at NSKRI intellectuals' meet". उन्मेष. मूल से (एचटीएमएल) से 8 दिसंबर 2007 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 30 जनवरी 2008. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= and |archive-date= (help)
  6. आचार्य, विश्वेश्वर (1060). काव्यप्रकाश टीका. वाराणसी, भारत: ज्ञानमंडल लिमिटेड. p. 64. {{cite book}}: |access-date= requires |url= (help); Text "editor: डॉ॰ नगेंद्र" ignored (help)
  7. https://archive.org/stream/KavyaPrakash/kavyaprakash_djvu.txt

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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