अधिनीतिशास्त्र

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अधिनीतिशास्त्र (meta-ethics) नीतिशास्त्र की वह शाखा है जो नीतियों के गुणों, दावों, मनोदृष्टि और निर्णयों को समझने का प्रयास करती है। दर्शनशास्त्री अक्सर नीतिशास्त्र की तीन शाखाओं का अध्ययन करते हैं: अधिनीतिशास्त्र, मानदण्डक नीतिशास्त्र (normative ethics) और अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र (applied ethics)।[1][2]

जहाँ मानदण्डक नीतिशास्त्र "मुझे क्या करना चाहिये?" जैसे प्रशनों का उत्तर देने की चेष्टा करते हुए कई विकल्पों में से एक चुनने में सहायता करने का प्रयास करता है, वहाँ अधिनीतिशात्र का प्रयास "अच्छाई क्या है?" और "हम अच्छे और बुरे में अंतर कैसे समझ सकते हैं?" जैसे गूढ़ प्रशनों से जूझता है। अधिनीतिशास्त्र पर बल देने वाले नीतिशास्त्री यह मानते हैं कि किसी नैतिक सिद्धांत को अच्छा या बुरा बताने से पहले यह तत्त्वमीमांसिक स्तर पर समझना आवश्यक है कि अच्छाई और बुराई की परिभाषा क्या है। इसके विपरीत अन्यों का मानना है कि विश्व में अच्छे और बुरे निर्णयों को देखकर हम यह समझ सकते हैं कि अच्छा नैतिक सिद्धांत क्या है और बुरा क्या है।[3][4]


इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Metaethics Archived 2018-04-10 at the Wayback Machine - entry in the Internet Encyclopedia of Philosophy.
  2. "नीतिशास्त्र के मूल सिद्धांत," वेद प्रकाश वर्मा, ऐलाइड पब्लिशर्स, ISBN 9788170234005, "... अधि नीतिशास्त्र के अंतर्गत जिन मुख्य प्रश्नों पर विचार किया जाता है, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं: 'शुभ', 'उचित', 'कर्तव्य' आदि ..."
  3. The Language of Morals Archived 2018-04-05 at the Wayback Machine (1952) by R.M. Hare.
  4. Groundwork of the Metaphysics of Morals Archived 2009-09-24 at the Wayback Machine by Immanuel Kant.