वार्ता:स्वामी रामानन्दाचार्य

पृष्ठ की सामग्री दूसरी भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

यह पृष्ठ स्वामी रामानन्दाचार्य लेख के सुधार पर चर्चा करने के लिए वार्ता पन्ना है। यदि आप अपने संदेश पर जल्दी सबका ध्यान चाहते हैं, तो यहाँ संदेश लिखने के बाद चौपाल पर भी सूचना छोड़ दें।

लेखन संबंधी नीतियाँ


लेख के लिए पाठ

रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य ने हिंदू धर्म को संगठित और व्यवस्थित करने के अथक प्रयास किए। उन्होंने वैष्णव सम्प्रदाय को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। रामानंद वैष्णव भक्तिधारा के महान संत हैं। सोचें जिनके शिष्य संत कबीर और रविदास जैसे संत रहे हों तो वे कितने महान रहे होंगे।

बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिंदू जनता और साधुओं पर हर तरह की पाबंदी लगा रखी थी। हिंदुओं पर बेवजह के कई नियम तथा बंधन थोपे जाते थे। इन सबसे छुटकारा दिलाने के लिए रामानंद ने बादशाह को योगबल के माध्यम से मजबूर कर दिया। अंतत: बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंद कर उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने तथा हिंदू तरीके से रहने की छूट दे दी।

जीवन वृत्त[संपादित करें]

माघ माह की सप्तमी संवत 1356 अर्थात ईस्वी सन 1300 को कान्यकुब्ज ब्राह्मण के कुल में जन्मे श्री रामानंदजी के पिता का नाम पुण्य शर्मा तथा माता का नाम सुशीलादेवी था। वशिष्ठ गोत्र कुल के होने के कारण वाराणसी के एक कुलपुरोहित ने मान्यता अनुसार जन्म के तीन वर्ष तक उन्हें घर से बाहर नहीं निकालने और एक वर्ष तक आईना नहीं दिखाने को कहा था। आठ वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार होने के पश्चात उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्यजी से दीक्षा प्राप्त की। तपस्या तथा ज्ञानार्जन के बाद बड़े-बड़े साधु तथा विद्वानों पर उनके ज्ञान का प्रभाव दिखने लगा। इस कारण मुमुक्षु लोग अपनी तृष्णा शांत करने हेतु उनके पास आने लगे।
स्वामी रामानंदाचार्यजी के कुल 12 प्रमुख शिष्य थे: 1. संत अनंतानंद, 2. संत सुखानंद, 3. सुरासुरानंद , 4. नरहरीयानंद, 5. योगानंद, 6. पिपानंद, 7. संत कबीरदास, 8. संत सेजा न्हावी, 9. संत धन्ना, 10. संत रविदास, 11. पद्मावती और 12. संत सुरसरी। संवत्‌ 1532 अर्थात सन्‌ 1476 में आद्य जगद्गु रु रामानंदाचार्यजी ने अपनी देह छोड़ दी। उनके देह त्याग के बाद से वैष्ण्व पंथियों में जगद्गु7रु रामानंदाचार्य पद पर 'रामानंदाचार्य' की पदवी को आसीन किया जाने लगा। जैसे शंकराचार्य एक उपाधि है, उसी तरह रामानंदाचार्य की गादी पर बैठने वाले को इसी उपाधि से विभूषित किया जाता है।

वर्तमान में इस गादी पर स्वामी श्रीनरेंद्राचार्य महाराज को 21 अक्टूबर 2005 को अनंत विभूषित 'जगद्गु रु रामानंदाचार्य' इस पद पर नियुक्त किया गया है। दक्षिण भारत के लिए श्रीक्षेत्र नाणिज को वैष्णव पीठ रूप में घोषित कर इसका नाम 'जगद्गुिरु रामानंदाचार्य पीठ, नणिजधाम' रखा गया है।

वेबदुनिया पर