सदस्य वार्ता:दिलीप कश्यप कलमकार

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{{साँचा:सहायता|realName=|name=दिलीप कश्यप कलमकारकला,साहित्य और संगीत की त्रिवेणी बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य ओमप्रकाश मिश्र 'कंचन' से मेरी पहली भेंट अभिंव्यंजना द्वारा आयोजित एक काव्य गोष्ठी में हुई थी वहाँ उनका आशीर्वाद पाकर मैंने खुद को कृतकृत्य महसूस किया ।

मृदुभाषी स्वभाव के श्री कंचन हर किसी को बराबर स्नेह देने वालो में से थे । चहरे पर झुर्रियाँ,आंखों में चश्मा,गले में मोतियों का हार, फ्रेंचकट सफेद दाढ़ी हल्की मूंछें हाथों में रत्नों की अगूंठी पहनावे में शर्ट के ऊपर सदरी और मर्दाना धोती उनकी पहचान थी। वह मुख्यतः इसी लिवास में कार्यक्रमों में जाया करते थे। संगीत,साहित्य,कला अथवा चित्रकला जैसी विभिन्न विधाओं में निपुण श्री कंचन ने मुझे अपना नम्बर दिया और घर आने को कहा इसके बाद लगातर उनके संपर्क में रहा घर जाने पर मैंने जब उन्हें बताया कि मेरे गुरु श्री रामअवतार शर्मा 'इन्दु' है तो उन्होंने मुझसे विशेष स्नेह प्रकट किया । उन्होंने बताया कि 'इन्दु'-जी उनके प्रिय शिष्य है तो मुझे और अधिक गर्व हुआ । इस तरह से उनसे अनेकों बार भेंट हुई लगातर उनका आशीष मिलता रहा । एक दिन उन्होंने मुझे अपने आवास पर बुलाकर जानकारी दी कि साहित्यकारों के लिए नटराज भवन तैयार किया जा रहा है जिसका निर्माण शुरू हो गया है जिसमें उन्होंने अपनी एक वर्ष की पेंशन सहयोग के रूप में दी है जिस समाचार को प्रमुख रूप से प्रकशित किया । इसके बाद वह मुम्बई चले गए और बापस आने पर अस्वस्थ हो गए फिर पता चला कि अचानक वह हम सब को रोते हुए अलविदा कह गए माता के निधन के बाद उनका स्वास्थ्य अक्सर ठीक नहीं रहता था अंतिम समय मे उन्होंने युवा पीढ़ी और नगर के वरिष्ठ जनों के साथ कवि सम्मेलन करने का वादा किया था अपने अंतिम साक्षात्कार में मुझसे कुछ बातें बताई थी जिन्हें आप सब के बीच सांझा कर रहा हूँ ।


आचार्य ओमप्रकाश मिश्र 'कंचन' का जन्म वर्ष 1936 में नगर के महादेव प्रसाद स्ट्रीट में हुआ था । कंचन जी ने अपने अंतिम साक्षात्कार में बताया था कि उनका शुरुआती दौर में जीवन बेहद कष्टकारी रहा । वह महज 18 माह के थे तब उनकी माता फूलमती का निधन हो गया इसके बाद 7 वर्ष की अवस्था मे पिता पण्डित छेदालाल का भी निधन हो गया । उनका लालन पालन दूसरी माँ श्याम प्यारी ने किया । अपनी तंगी हालात में उन्होंने ट्यूशन पढ़ाकर परिवार का भरण पोषण किया । एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि साहित्य के प्रति उनकी रुचि हमेशा से ही रही संगीत से उनका लगाव होने के कारण लेखन को गति मिलती रही । वर्ष 19 62 में डाॅक्टर रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी बद्री विशाल महाविद्यालय में हिन्दी के प्रवक्ता के रूप में नियुक्त होकर आए थे वह स्वयं एक प्रसिध्द कवि थे उनके द्वारा ही मुझको कंचन उपनाम दिया गया था ।उन्ही के सम्पर्क में आने के बाद कविता के स्वापान को जाना और साहित्य के प्रति निस्वार्थ काव्य लेखन में निरन्तर रुचि बढ़ती गई । फिर धीरे धीरे काव्य पाठ करने के लिए राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों का हिस्सा बनने लगे । एक सवाल में उन्होंने बताया कि युवा पीढ़ी के प्रति उनका बेहद लगाव रहा उन्होंने सदैव नए रचनाकारों को प्रोत्साहन दिया जिसके फलस्वरूप निर्माणाधीन नटराज भवन युवा पीढ़ी को ही समर्पित है । नए रचनाकार इसी में अपनी गोष्ठियां व कवि सम्मेलन किया कर सकेंगे। नए रचनाकारों को संदेश देते हुए कहा कि वह अध्ययन कर कविता के मर्म को समझे हिन्दी साहित्य में कविता के व्याकरण पर विशेष ध्यान दे । अपने से बड़ो का परामर्श लेकर काव्य यात्रा का प्रारम्भ करें। फर्रुखाबाद के नवोदित रचनाकारों में साहित्य को आगे ले जाने की बड़ी सम्भावनाये जुड़ी है यह उन पर अहम जिम्मेदारी है । साहित्य के वटबृक्ष श्री कंचन ने बताया था कि उन्होंने 1960 से 1965 तक नगर के रामानन्द इण्टर कालेज में शिक्षण कार्य किया इसके बाद वह वर्ष 1972 में भारतीय पाठशाला इण्टर कालेज में नागरिक शास्त्र के प्रवक्ता के रूप में सेवा दी इसी के साथ ही वह उपप्राधानाचार्य कार्यवाहक प्राचार्य भारतीय महाविधालय में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता के रूप में वर्ष 1998 में सेवानिवृत्त हुए। 8वी कक्षा तक उर्दू भाषा का अध्ययन किया साथ ही एलिमेंट्री हिंदी का ज्ञान प्राप्त किया। वे सामान्य हिन्दी भाषा के अच्छे जानकार थे । तत्कालीन हरियाणा अकादमी द्वारा उन्हें आचार्य और राष्ट्रभाषा रत्न की की उपाधि से सम्मानित किया गया था जो कि उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही । वह एक श्रेष्ठ समीक्षक कुशल सम्पादक और पत्रकारिता में रुचि रखते थे साथ ही विभिन्न पत्र पत्रिकाओं पर लधु शोध किये ।उनके प्रयासों से ही ललन पिया ठुमरी सम्राट और हाजी बिलायत अली पुनः प्रकाश में आये सोनम गुप्ता को ललन पिया पर पीएचडी कराई ललन पिया हाजी विलायत अली संगीत अकादमी की स्थापना की जिसके उपलक्ष्य में हर वर्ष ललन पिया महोत्सव मनाया जाता है । अपने जीवनकाल में उन्होंने गोष्ठियों के माध्यम से साहित्यिक क्रांति ही नही लाये बल्कि नव युवाओं के प्रवर्तक बनकर साधनहीन प्रतिभाशाली रचनाकारों को प्रवाह में लाये उन्होंने कनउजी बोली को संरक्षित और सुरक्षित करने हेतु अथक प्रयास किया,कनउजी बोली के उत्थान हेतु दिवंगत गिरजेश त्रिपाठी के बाद उनकी पुस्तक जा दिन बजिहै ढोल नगाड़े;कनउजी बोली लोक गीत पुस्तक खूब चर्चा में रही जिसका प्रकाशन वर्ष 1981 में हुआ था । श्री कंचन ने एमए राजनीत शास्त्र तक शिक्षा ग्रहण की थी उनकी संगीत, कविता लेखन,अध्ययन चित्रकला, नाट्य में विशेष रुचि थी। एक संस्मरण में उन्होंने बताया था कि वर्ष 1960 के दशक में मशहूर अभिनेता पृथ्वी राज कपूर फर्रुखाबाद आये थे उन्होंने जनपद में पृथ्वी थिएटर की नींव रखी थी जिसका मंचन नाट्य के माध्यम से एक सप्ताह तक चला था जिसमें उनके साथ दीनानाथ सक्सेना ज्योतिस्वरूप अग्निहोत्री ,दादा चन्द्र शेखर शुक्ल व प्रसिध्द लेखक डॉक्टर राम कुमार वर्मा के साथ काम करने का अवसर मिला था । उन्होंने जनपद में साहित्यकारों के हितों के लिए साहित्यकार संसद की भी स्थापना की थी । वहीं आचार्य ओमप्रकाश मिश्र 'कंचन' फर्रुखाबाद जनपद में कला एवं साहित्य अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती के प्रांतीय संरक्षक एवं संस्थापक थे । कला, साहित्य ,संगीत ,नाटक चित्रकला के विद्वान पंडित थे उन्होंने अपने जीवन में हजारों छात्र एवं छात्राओं को निशुल्क शिक्षा कार्यशालाओं के माध्यम से प्रशिक्षण ,अखिल भारतीय स्तर पर कला साधकों को संवाद प्रशिक्षण एवं भारतीय संस्कृति का उद्घोष किया कला विधाओं की खोज करना युवा पीढ़ी को प्रशिक्षण के माध्यम से जागृत करना उनका मुख्य उद्देश्य था अब इतिहास बन गए ऐसे महापुरुष को शत-शत नमन।

                       दिलीप कश्यप क़लमकार

विकिपीडिया पर अपने रचनात्मक लेखन का मेरा मूल उद्देश्य हमारी ऐतिहासिक, पौराणिक धरोहरों को संरक्षित कर अपने देश की कला , संस्कृति को बढ़ाबा देकर राष्ट्र के निर्माण में छोटी सी भूमिका अदा करना मात्र है । धन्यवाद विकिपीडिया आपके इस प्यार के लिए दिलीप कश्यप कलमकार[संपादित करें]

विकिपीडिया पर अपने रचनात्मक लेखन का मेरा मूल उद्देश्य हमारी ऐतिहासिक, पौराणिक धरोहरों को संरक्षित कर अपने देश की कला , संस्कृति को बढ़ाबा देकर राष्ट्र के निर्माण में छोटी सी भूमिका अदा करना मात्र है भारत में छिपी किसी भी विशेष जानकारी को जन-जन तक पहुचाना है । धन्यवाद विकिपीडिया आपके इस प्यार के लिए दिलीप कश्यप कलमकार 9026692199 दिलीप कश्यप कलमकार (वार्ता) 19:30, 6 जनवरी 2021 (UTC)उत्तर दें