कुसुमावती देशपांडे

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कुसुमावती देशपांडे (1904-1961) महाराष्ट्र, भारत की मराठी लेखिका थीं। उनका जन्म 10 नवंबर 1904 को अमरावती, महाराष्ट्र में हुआ था। वह मराठी में लेखिका और टिप्पणीकार थी। उन्होंने मराठी लघु कथाओं को नया रूप और चेतना दी। मराठी साहित्य के क्षेत्र में उनका लेखन बहुत मूल्यवान है।

1921 में पुणे के हुजुरपागा (एचएचसीपी) गर्ल्स स्कूल में हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने नागपुर जाने से पहले चार साल तक फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे में भी पढ़ाई की। बी.ए. 1926 में नागपुर जाकर नागपुर विश्वविद्यालय से ली। वह 1929 में अंग्रेज़ी साहित्य में बी. ए. करने के लिये वह लंदन के वेस्टफील्ड कॉलेज गई। उसी वर्ष उन्होंने आत्माराम रावजी देशपांडे उर्फ ​​कवि अनिल से शादी की और कुसुमावती देशपांडे नाम ले लिया।[1]

1931 से 25 वर्षों तक, कुसुमावती ने नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ाया। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में मुख्य निर्माता, महिला और बाल कार्यक्रम और मराठी साहित्य पर साहित्य अकादमी के सलाहकार बोर्ड के संयोजक के रूप में भी काम किया।[2]

साहित्यिक कार्य[संपादित करें]

मराठी साहित्य पर कुसुमावती के आलोचनात्मक निबंध दो खंडों में 1954 में मराठी कादंबरीचे पहिले शतक के रूप में साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित किए गए थे।

उनके लघु निबंधों और लघु कथाओं के चार संग्रह प्रकाशित हुए हैं:

  • दीपाकली (1934)
  • दीपदान (1940)
  • मोळी (1945)
  • पासंग (1954)

कुसुमावती और उनके पति के बीच पत्रों का एक संग्रह कुसुमानिल शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया है।

कुसुमावती ने 1961 में ग्वालियर में मराठी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की (उनके पति ने 1958 में इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी।) वह 1878 में उसकी स्थापना के बाद से वार्षिक सम्मेलन की पहली महिला अध्यक्ष थीं। (उनके बाद, चार और महिला अध्यक्ष रह चुकी हैं।)

निधन[संपादित करें]

कवि अनिल किसी कार्यक्रम में गये हुए थे। घर लौटने के बाद, दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। दरवाजे को तोड़ने और अंदर जाने के बाद, कुसुमावती का मृत शरीर पाया गया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Kusum Anil Website". मूल से 13 मई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 January 2010.
  2. Rajadhyaksha, M. V. (1962-01-01). "Shrimati Kusumavati Deshpande: An Obituary". Indian Literature. 5 (1): 22–24. JSTOR 23328560.