सरसदास

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सरसदास सरसदास हरिदासी सम्प्रदाय के भक्त कवि एवं पंचम आचार्य थे।

परिचय[संपादित करें]

सरसदास[1] नागरीदास के छोटे भाई तथा बंगाल के राजा के मंत्री कमलापति के दूसरे पुत्र थे। इनका जन्म वि ० सं ० १६११ में गौड़ ब्राह्मण कुल में हुआ था।ये स्वभाव से विरक्त थे अतः अपने बड़े भाई नागरीदास के साथ ही वृन्दावन आ गए और बिहारिनदेव से दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के उपरान्त शेष जीवन वृन्दावन में ही व्यतीत हुआ। वि ० सं ० १६७० में अपने बड़े भाई नागरीदास के परलोक-गमन के उपरान्त ये टट्टी संस्थान की गद्दी पर बैठे। वि ० सं ० १६८३ में इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ[संपादित करें]

इनके पद ,कवित्त और सवैये स्फुट रूप में उपलब्ध हैं। इनकी समस्त वाणी सिद्धांत के पद और शृंगार के पद दो भागों में विभक्त है।

माधुर्य भक्ति का वर्णन[संपादित करें]

सरसदास के उपास्य श्यामा-श्याम आनंदनिधि ,सुखनिधि गुणनिधि और लावण्य-निधि हैं। ये सदा प्रेम में मत्त में लीन रहते हैं। राधा-कृष्ण के इसी विहार का ध्यान सरसदास की उपासना है। किन्तु यह उपासना सभी को सुलभ नहीं है। स्वामी हरिदास जिस पर कृपा करें वही प्राप्त कर सकता है।

  • राधा-कृष्ण विविध लीलाओं में से सरसदास ने झूलन ,नृत्य ,जल-विहार ,रति आदि सभी वर्णन किया है किया है। अपनी प्रिया को प्रसन्न करने के लिए उसका शृंगार करते हुए कृष्ण का यह वर्णन भाव और भाषा की दृष्टि से उत्तम :
लाल प्रीया को सिंगार बनावत।
कोमल कर कुसुमनि कच गुंथत मृग मद आडर चित सचुपावत।।
अंजन मनरंजन नख वरकर चित्र बनाइ बनाइ रिझावत।
लेत वलाइ भाई अति उपजत रीझि रसाल माल पहिरावत।।
अति आतुर आसक्त दीन भये चितवत कुँवर कुँवरी मन भावत।
नैननि में में मुसक्याति जानि प्रिय प्रेम विवस हसि कंठ लगावत।
रूपरंग सीवाँ ग्रीवाँ भुज हसत परस्पर मदन लड़ावत।
सरसदास सुख निरखि निहाल भये गई निसा नव नव गुण गावत।।

इसी प्रकार राधा-कृष्ण के जल-विहार का निम्न सरस वर्णन:

विहरत जमुना जल सुखदाई।
गौर स्याम अंग अंग मनोहर चीरि चिकुर छवि छाई।।
कबहुँक रहसि वरसि हसि धावत प्रीतम लेत मिलाई।
छिरकत छैल परस्पर छवि सौं कर अंजुली छुटकाई।।
महामत्त जुगवर सुखदायक रहत कंठ लपटाई।
क्रीडति कुँवरि कुँवर जल थल मिलि रंग अनंग बढ़ाई।।
हाव भाव आलिंगन चुंबन करत केलि सुखदाई।
भीजे वसन सहचरी नऊ तन चित्र बनाई।।
रचे दुकूल फूल अति अंग अंग सरसदास बलि जाई।।

बाह्य स्रोत[संपादित करें]

  • ब्रजभाषा के कृष्ण-काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण :हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७(1962)

सन्दर्भ[संपादित करें]