नहपान

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नहपान प्राचीन भारत के क्षहरातवंश (सहरावत) का प्रतापी राजा था। इसके शासनकाल का निर्धारण विवादास्पद है। इसके सिक्कों पर कोई तिथि अंकित नहीं है।

कुछ अभिलेखों से ऐसा ज्ञात होता है कि इसने किसी अज्ञात संवत् के इकतालीसवें और छियालीसवें वर्ष में शासन किया। डुब्रेल के अनुसार इसमें विक्रमी संवत् निर्दिष्ट है। दिनेशचंद्र सरकार इस नहपान के अभिलेखों के संवत् का प्रारंभ ७८ ई. में मानते हैं। इस प्रकार नहपान के शासनकाल की ज्ञात तिथियाँ ११९ ई. और १२५ ई. निर्धारित की जा सकती है। नहपान के बहुत से चाँदी और ताँबे के सिक्के मिले हैं। जोगलथंबी (नासिक के पास) से प्राप्त एक जखीरे के ९२७० सिक्कों को, जो कि नहपान के हैं, गौतमीपुत्र शातकर्णि ने पुन: टंकित किया था। इससे यह पता चलता है कि नहपान गौतमीपुत्र शातकर्णि का समकालीन था।

नहपान शक था। इस वंश का मूलस्थान पश्चिमोत्तर भारत प्रतीत होता है। संभवत: इसी कारण नहपान के सिक्कों पर खरोष्ठी अक्षरों का अंकन हुआ है। नहपान के पूर्वज कुषाणों, या पहलवें ( पहल) के प्रांतीय शासक के रूप में पश्चिम भारत का शासन करते थे और 'क्षत्रप' की उपाधि धारण करते थे। क्षहरातवंश का प्रथम ज्ञात राजा, भूमिक, क्षत्रप मात्र था और राजा की उपाधि नहीं धारण करता था। 'राजा' की उपाधि सर्वप्रथम नहपान के ही सिक्कों पर मिलती है जो उसी स्वंतत्र सत्ता और राजत्व का परिचायक है। नहपान की पूर्ण उपाधि 'रंखाोखरातस खतपस' थी।

लगभग ११९ ई. से लगभग १२५ ई. के बीच नहपान ने अपने राज्य का अत्यधिक विस्तार कर लिया था। उसकी बेटी दक्षमित्रा का विवाह दीनकसुत उषवदात (शक) के साथ हुआ था। नहपान का जामाता उषवदात नहपान के साम्राज्यविस्तार और शासनसंचालन में बड़ा सहायक हुआ था। नहपान ने उसे मालवों के विरुद्ध उत्तमभद्रों की सहायता के लिए भेजा था। मालवों को पराजित करके उषवदात पुष्करक्षेत्र (अजमेर) तक गया था और संभवत: यहाँ तक नहपान की राजसत्ता का विस्तार किया था। नहपान के अमात्य अर्यमन् ( मान) के एक अभिलेख से नहपान के साम्राज्य का अच्छा परिचय मिलता है। इस तथा अन्य अभिलेखों से ऐसा अनुमान होता है कि नहपान का शासन गोवर्धन आहार (नासिक), मामाल आहार (पूना), दक्षिण और उत्तरी गुजरात, कोंकण, भड़ौंच से सोपारा तक, कायूर आहार (बड़ौदा के पास), प्रभास (दक्षिणी काठियावाड़), दशपुर (मालवा में) तथा पुष्कर (अजमेर) क्षेत्रों पर था। अभिलेखों के प्राप्तिस्थान से ऐसा लगता है कि इसके प्रभावक्षेत्र में ताप्ती, बनास और चंबल की घाटियाँ भी थीं।

किंतु १२५ ई. के लगभग नहपान का राजनीतिक प्रभाव घटने लगा। जोगलथंबी के उन सिक्कों से, जिन्हें गौतमीपुत्र शातकर्णि ने पुन: टंकित किया था, ऐसा विश्वास किया जाता है कि १२५ के लगभग, अर्थात्, अज्ञात तिथि ४६ के लगभग, नहपान गौतमीपुत्र शातकर्णि के द्वारा पराजित कर दिया गया होगा। संभव है कि नहपान के शासन का अंत भी इसी समय हो गया हो, क्योंकि इसके बाद नहपान के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं मिलता। इस तथ्य की पुष्टि गौतमीपुत्र शातकर्णि की माता बलश्री के नासिक अभिलेख से भी होती है। इस अभिलेख के पटृट में कहा गया है कि (गौतमीपुत्र) ने खखरातों की सत्ता का विनाश कर दिया। (खखरातवसनिर्विशेषकरस)। इसी अभिलेख में उन प्रांतों का भी उल्लेख है, जो कभी नहपान के अधीन थे किंतु इस विजय के बाद गौतमीपुत्र शातकर्णि के हाथों लगे।