सागरगत ज्वालामुखी

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सामोआ के पास स्थित लावा उगलता हुआ पश्चिम माता, जो विश्व के सबसे गहरे सागरगत ज्वालामुखियों में से एक है; मई 2009 में खींचा चित्र।[1]

सागरगत ज्वालामुखी (submarine volcanoes) सागर और महासागरों में पृथ्वी की सतह पर स्थित में चीर, दरार या मुख होते हैं जिनसे मैग्मा उगल सकता है। बहुत से सागरगत ज्वालामुखी भौगोलिक तख़्तों के हिलने वाले क्षेत्रों में होते हैं, जिन्हें मध्य-महासागर पर्वतमालाओं के रूप में देखा जाता है। अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी पर उगला जाने वाला 75% मैग्मा इन्हीं मध्य-महासागर पर्वतमालाओं में स्थित सागरगत ज्वालामुखियों से आता है।[2] हालांकि अधिकतर सागरगत ज्वालामुखी सागरों और महासागरों की गहराईयों में होते हैं, कुछ कम गहराई वाले पानी में भी मिलते हैं और इनके विस्फोटों में सामग्री वायुमंडल में उछाली जा सकती है। भूवैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि सागरगत ज्वालामुखियों की संख्या 10 लाख से अधिक है, जिनमें से लगभग 75,000 सागर-फ़र्श से 1 किमी अधिक ऊँचा उठते हैं।[2]

यह भी पाया जाता है कि सागर-फ़र्श पर स्थित जलतापीय छिद्र (hydrothermal vents), जिन से गरम जल बाहर निकलता रहता है और जो अपने इर्द-गिर्द जीवों के पनपने का स्थान देते हैं, अक्सर सागरगत ज्वालामुखियों के पास पाए जाते हैं।[3]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Scientists Discover and Image Explosive Deep-Ocean Volcano". NOAA. 2009-12-17. मूल से 9 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-12-19.
  2. Martin R. Speight, Peter A. Henderson, "Marine Ecology: Concepts and Applications", John Wiley & Sons, 2013. ISBN 978-1-4051-2699-1.
  3. Nybakken, James W. and Bertness, Mark D., 2005. Marine Biology: An Ecological Approach. Sixth Edition. Benjamin Cummings, San Francisco