स्वेन एंडर्स हेडिन

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स्वेन हेडिन
१८८६ से १९३५ तक की हिडेन की यात्राएँ; इसमें १९२७-३५ के बीच उसकी चीनी-स्वीडिश यात्रा का पथ नहीं दर्शाया गया है।

स्वेन एंडर्स हेडिन (Sven Anders Hedin ; 19 फ़रवरी 1865 – 26 नवम्बर 1952) स्वीडेन का भूगोलशास्त्री, खोज-यात्री, फोटोग्राफर तथा यात्रा-वृतान्त लेखक था।

परिचय[संपादित करें]

स्वेन एंडर्स हेडिन का जन्म १९ फ़रवरी १८६५ ई. को स्टाकहोम में हुआ और मृत्यु १९५२ ई. में हुई। उपसाला विश्वविद्यालय में उसकी शिक्षा हुई और तदनंतर बर्लिन तथा हाल (Halle) में शिक्षा ग्रहण की। १८८५-५६ ई. में वह फारस और मेसोपोटामिया गया और १८९० ई. में फारस के शाह से संबंधित औस्कर राजा के दूतावास में नियुक्त हुआ। उसी वर्ष उसने खुरासान और तुर्किस्तान की यात्राएँ की ओर १८९१ में काशगर पहुँच गया। उसकी तिब्बत की यात्राओं ने उसे एशिया के आधुनिक यात्रियों में प्रथम स्थान प्राप्त कराया। १८९३ और १८९७ ई. के बीच उसने एशिया महाद्वीप के आरपार यात्रा की। ओरेनबर्ग से चलकर यूराल पार किया और पामीर तथा तिब्बत के पठार से होते हुए पेकिंग पहुँचा। दो अन्य यात्राओं में इन मार्गों के ज्ञान में विशेष जानकारी की तथा सतलज, सिंधु और ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्थानों की खोज की। सन् १९०२ में वह स्वेडेन का नोबुल बना दिया गया और सन् १९०९ में भारत सरकार ने के. सी. आई. ई. की उपाधि दी। सन् १९०७ में उसने चीनी-स्वेडेन यात्रा का चीन को मार्गदर्शन किया और इसके परिणामों के प्रकाशित करने के लिए कई वर्ष परिश्रम किया।

स्वेन हेडन ने कई पुस्तकें लिखी जिनमें से ये उल्लेखनीय हैं -

  • 'फारस, मेसोपोटामिया और काकेशय की यात्रा' (१८८७),
  • 'एशिया से होकर' (१८९८),
  • 'मध्य एशिया की यात्रा का वैज्ञानिक परिणाम' (१९०४-१९०७) ८ खंडों में,
  • 'हिमालय के पार' (१९०९-१९१२) ३ खंडों में
  • 'स्थलीय यात्रा से भारत' (१९१०) दो खंडों में,
  • 'दक्षिणी तिब्बत' (१९१७-१९२२) १२ खंडों में,
  • 'चीनी-स्वेडेन यात्रा के वैज्ञानिक परिणाम' (१९३७-१९४२) ३० खंडों में।