खड्गविलास प्रेस

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खड्गविलास छापाखाना, पटना का प्रसिद्ध प्रेस था। उन्नीसवीं सदी के उतरार्ध में पटना का वह प्रेस बिहार का गौरव था। उस प्रेस और प्रकाशन संस्था पर शोध करके डाक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाले डॉ॰ धीरेंद्र नाथ सिंह लिखते हैं, ‘आधुनिक हिंदी साहित्य को उजागर करने में इस प्रेस के योगदान का ऐतिहासिक मूल्य है।’ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा विरचित नाटक सत्य हरिश्चन्द्र इसी प्रेस से छपा था। इसी नाटक को पढ़कर गांधीजी के जीवन में निर्णायक मोड़ आया था। अब वह प्रेस तो नहीं है, पर आधुनिक हिंदी को उस प्रेस का योगदान अद्भुत है।

उत्तर प्रदेश के बलिया निवासी महाराजकुमार राम दीन सिंह ने सन् 1880 में पटना के बांकीपुर में खड्ग विलास प्रेस की स्थापना की थी। उन्होंने अपना जीवन शिक्षक के रूप में आरम्भ किया था तथा पाठ्य पुस्तकों और हिंदी पुस्तकों के अभाव ने उन्हें प्रकाशन व्यवसाय के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने स्वयं पाठ्यपुस्तकें तैयार कीं और अन्य लोगों से पुस्तकें लिखवाईं। इन कृतियों का प्रकाशन खड्ग विलास प्रेस ने किया। भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र और उनके युग के लेखक यदि आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता हैं तो निश्चय ही खड्ग विलास प्रेस और उसके संस्थापक को उनका एकमात्र प्रकाशक माना जाना उचित होगा। यदि महाराज कुमार राम दीन सिंह का सद्भाव और सहयोग न मिला होता तो भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनके समकालीन साहित्यकारों को अपनी रचनाओं के व्यवस्थित प्रकाशन का इतना अच्छा सुयोग नहीं मिला होता।

इस प्रकाशन संस्थान ने भारतेंदु हरिश्चंद्र, पंडित प्रताप नारायण मिश्र, पंडित अम्बिका दत्त व्यास, पंडित शीतला प्रसाद त्रिपाठी, भारतीय सिविल सेवा में हिंदी के प्रतिष्ठापक फ्रेडरिक पिंकाट, आधुनिक हिंदी खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य प्रियप्रवास के प्रणेता पंडित अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', पंडित दामोदर शास्त्री सप्रे, लाल खड्ग बहादुर मल्ल, शिवनंदन सहाय प्रभृति साहित्यकारों को प्रकाशकीय संरक्षण प्रदान किया और उनकी कृतियों के प्रकाशन पर मुक्तहस्त से व्यय किया।

हिंदी भाषी प्रदेशों में सबसे पहले बिहार प्रदेश में सन् 1835 में हिन्दी आन्दोलन शुरू हुआ था। इस अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1875 में बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिंदी प्रतिष्ठित हुई, किन्तु पाठ्यपुस्तकों का सर्वथा अभाव था। खड्ग विलास प्रेस ने विभिन्न विषयों में पाठ्य पुस्तकें तैयार करा कर इनका प्रकाशन किया। साहब प्रसाद सिंह, उमानाथ मिश्र, चण्डी प्रसाद सिंह, काली प्रसाद मिश्र, प्रेमन पाण्डेय प्रभृति लेखकों ने इस दिशा में सक्रिय रूप से सहयोग किया था। साहब प्रसाद सिंह की ‘भाषा सार’ नामक पुस्तक सन् 1884 से 1936 तक बिहार के स्कूलों और कालेजों में पढाई जाती रही।

राम दीन सिंह का बचपन पटना जिले के तारणपुर गांव में बीता जहां उनके मामा का घर था। राम दीन सिंह के पुत्र सारंगधर सिंह भी एक बुद्धिजीवी राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे सन् 1937 में डॉ॰ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बने मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव थे। बाद में वे बिहार से संविधान सभा के सदस्य बने। उन्होंने 1952 से 1962 तक पटना को लोक सभा में प्रतिनिधित्व किया।

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