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क्रियाप्रसूत अनुकूल कक्ष द्वारा प्रयोगकर्ता व्यवहार अनुकूलन का अध्ययन करते है। यह अध्ययन करने के लिये वे पशुओं को विषय बनाते है और उन्हें [https://en.wikipedia.org/wiki/Stimulus उत्तेजनाओं] (जैसे कि प्रकाश य ध्वनी संकेत) के लिये प्रतिक्रिया होकर कुछ चाल (जैसे कि लिवर दबाना) सिखाते है। जब विषय यह यह सही ढंग से करता है तब उसे कक्ष द्वारा भोजन या अन्य इनाम प्रदान किया जाता है। कुछ स्थितियों में गलत या लापता प्रतिक्रियाओं के लिये सज़ा दिया जाता है। उदाहरण के लिये, मक्खियों जैसे अकशेरुकीयों के क्रियाप्रसूत अनुकूलन का परीक्षण करने के लिए [https://en.wikipedia.org/wiki/Psychologist मनोवैग्यनिक] एक उपकरण का प्रयोग करते है जिसे "हीट बॉक्स" के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार के उपकरण द्वारा प्रयोगकर्ता सज़ा और इनाम के तंत्र के माध्यम से अनुकूलन और प्रशिक्षण में अध्ययन कर पाते है। <ref></ref> |
क्रियाप्रसूत अनुकूल कक्ष द्वारा प्रयोगकर्ता व्यवहार अनुकूलन का अध्ययन करते है। यह अध्ययन करने के लिये वे पशुओं को विषय बनाते है और उन्हें [https://en.wikipedia.org/wiki/Stimulus उत्तेजनाओं] (जैसे कि प्रकाश य ध्वनी संकेत) के लिये प्रतिक्रिया होकर कुछ चाल (जैसे कि लिवर दबाना) सिखाते है। जब विषय यह यह सही ढंग से करता है तब उसे कक्ष द्वारा भोजन या अन्य इनाम प्रदान किया जाता है। कुछ स्थितियों में गलत या लापता प्रतिक्रियाओं के लिये सज़ा दिया जाता है। उदाहरण के लिये, मक्खियों जैसे अकशेरुकीयों के क्रियाप्रसूत अनुकूलन का परीक्षण करने के लिए [https://en.wikipedia.org/wiki/Psychologist मनोवैग्यनिक] एक उपकरण का प्रयोग करते है जिसे "हीट बॉक्स" के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार के उपकरण द्वारा प्रयोगकर्ता सज़ा और इनाम के तंत्र के माध्यम से अनुकूलन और प्रशिक्षण में अध्ययन कर पाते है। <ref>https://www.verywellmind.com/what-is-a-skinner-box-2795875</ref> |
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14:25, 15 फ़रवरी 2019 का अवतरण
पृष्ठभूमिका
मेरा नाम श्रव्या नायर है। मैं बैंगलोर में रेहती हूँ। मेरा जन्म २४ अगस्त,१९९९ में केरल के तृश्शूर ज़िला में हुआ था। मैंने अपनी आधी से ज़्याद ज़िंदगी उत्तर भारत और पूर्व भारत में बिताई और फिर अपने माध्यमिक शिक्षा के लिए केरल चली गयी। मैं एक सैनिक परिपवार में पैदा हुई थी। मुझे यह कहने में गर्व है कि मैं एक सेना अधिकारी की बेटी हूँ।
परिवार
मेरी माँ एक अध्यापिका है और चिन्मय मिशन नामक विद्यालय में पढाती है। मेरे पिता,लेफ्टिनेंट कर्नल सुनिल कुमार, एक सेना अधिकारी है।पिता के फौज में होने के कारण उनसे साल में केवल तीन या चार बार मुलाकात हो पाती है। मेरी एक बहन है जो मुझसे तीन साल बडी है। वे भी बैंगलोर में रहती है। वे क्राइस्ट विश्वविद्यालय में अपनी स्नातकोत्तर उपाधी प्राप्त कर रही है।
शिक्षा
पिता के फौज में होने के कारण मुझे राज्य के विभिन्न भागों में रहने और उन जगहों में पढने का अवसर मिला। मैंने मुंबई के फ़ोर्ट कॉन्वेंट, टेंगा घाटी के आर्मी स्कूल, दिल्ली के आर्मी पब्लिक स्कूल, धौला कुआं, और तृश्शूर के चिन्मय मिशन स्कूल में पढ़ी हूँ। मैं अभि क्राइस्ट विश्वविद्यालय में मीडिया अध्ययन, अंगरेज़ी और मनोविज्ञान पढ़ रही हूँ। मुझे हमेशा से मानव के मन के पीछे छिपा हुआ सच्चाई जानना चाहती थी।
रुचियाँ
मुझे रोमांचक और काल्पनिक उपन्यास पढ़ना पसंद है। मुझे बास्केटबॉल जैसे खेल पसंद है जो टीमों में खेला जा सकता है। मैं अच्छे से स्ंवाद करती हूँ और दूसरों के साथ जुड जाती हूँ। मुझे लोगों को जानने-पहचानने और् उनके किस्से सुनने में मुझे बहुत मज़ा आता है। मैं एक प्रशिक्षित भरतनाट्यम नर्तकी हूँ और मैंने सात सल भरतनतट्यम सीखी है। मुझे ट्रेकिंग का बहुत शौक है। मैं २०१५ में अपने परिवार और दोस्तों के साथ एक ट्रेक पर स्पीति घाटी और [धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश]] गई। वह मेरे ज़िंदगी की सबसे मनोहर और रोमांचक यात्रा रही है। मुझे हर बार कुछ नया और अनोखा करने में मज़ा आता है।
उपलब्धियाँ
अपने कलाओं को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त करना मैं सबसे बडी उपलब्धी मानती हूँ। मैं हिन्दी और अंग्रेज़ी सस्वरपाठ, वक्तृता और वाद विवाद में ज़िला स्तर विजेता हूँ, तथा हिन्दी वक्तृता में राज्य स्तर विजेता हूँ। २०१६ में मुझे ए.सी.वी नामक चैनल के साथ काम करने का अवसर मिला। इस अनुभव से मुझे मीडिया और रिपोर्टिंग के बारे में बहुत सीख मिली।
चविट्टु नाडकं
चविट्टु नाडकं भारत के एरनाकुलम जिले उत्पन्न हुआ था। यह नृत्य रूप अत्यधिक रंगीन लैटिन ईसाई शास्त्रिय कला का रूप है। यह नृत्य रूप कथापत्र के आकर्षक सिंगार, विस्तृत वेश्भूषा और अच्छी तरह से परिभाषित शरीर की चाल और इशारों के लिये जाना जाता है। यह कला रूप यूरोपीय ओपेरा से अत्यधिक मिलता-झुलता है। माना जाता है कि १६वीं शताब्दी के दौरान चविट्टु नाडकं उत्पन्न हुआ था। इस प्रकार का नाटक केरल के आलपुज़हा, एरुनाकुलम और त्रिशूर जिलों में लैटिन ईसाई समुदाय के बीच प्रचलित है। चविट्टु नाडकं में शान्दार मध्यकालीन पोशाक में बहुत सारे पात्र है। यह पारंपरिक संगीत नृत्य नाटक का रूप है, जो केरल लाटिन ईसाई के मार्शल परंपरा का प्रतीक है। चविट्टु नाडकं आमतौर पर खुले मंच पार किया जाता है। कभी-कभी एक चर्च की भीतरी भी एक स्थल होता है। कलाकार चमकदार यूरोपीय दवेशभूषा पहनते है। नाटक को प्रस्तुत करने से पहले कलाकारों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। मास्टर को अण्णावी के नाम से जाना जाता है। पूरा नाटक संगीत के माध्यम से किया जाता है। नृत्य और वाद्य संगीत इस कला के रूप में एक महत्त्व्पूर्ण हिस्सा है। घंटी और ड्र्म को पृष्ठभूमी के रूप में इस्तमाल किए जाने वाले दो उपकरण है। कलाकार खुद गाते और अभिनय करते है। इस कला की मुख्य विशेषता नांटकीय परिस्थितियों को बल देने के लिये नर्तक ध्वनियों के निर्माण में मंच पर पैर मारकर आवाज़ करता है। अभिनेता ज़ोर अपने आलपों को अतिर्ंजित इशारों के सहारे पेश करता है और लकडी के मंच पर अधिक शक्ती से पैर से कदम रखकर आवाज़ करता है। इस कदम पर महान तनाव रखी गई है जो गाने के अनुरूप है। ज़ोर से आवाज़ करते हुए कदम रखते हुए नाचना, पटेबाज़ी और युद्ध चविट्टु नाडकं का महत्त्वपूर्ण अंग है। शाही कपडे और सजावटी वेशभूषा आवश्यक है। चविट्टु नाडकं द्वारा प्रदर्शित कहानियाँ ज़्यादातर बाईबल या महान ईसाई योद्धाओं के वीरता के प्रकरण है। इस नाटक को सफल माना जाता है अगर अंत में भारी कदम रखने के कारण मंच पर गुफा जैसा बन जाये।
पी टी उषा
पृष्ठभूमिका
पी टी उषा एक सेवानिवृत्त भारतीय एथलीट है। उनका जन्म २७ जून, १९६४ में हुआ था। उनका जनम एक मुहताज परिवार में हुआ था।
बचपन
परिवार कि आर्थिक स्थिती और स्वास्थ्य खराब होने के कारण उषा का बचपन् सुविधापूर्ण नहीं था। बचपन से ही उषा को एथलेटिक्स और खेल में काफी दिलचस्पी थी। उनमें हमेशा से एक अविश्वसनीय जुनून था। केरल सर्कार ने उन्हें २५० रुपये की छात्रावृत्ति दी जब उन्हें मान्यता कि सबसे अधिक आवश्यकता थी। इन पैसों से उनहोंने अपने जिला के प्रतिनिधित्व महिलाओं के लिये विशेषित रूप से खुले गये स्पोर्ट्स स्कूल में किया। नेशनल स्कूल के खेल पुरस्कार समारोह के दौरान एथलेटिक्स कोच ओ एम नंबियार ने उषा कि प्रतिभा देखी, और वह उषा के दुबले शरीर और तेज़ चलने के शैली से प्रभावित हुए।
करियर और उपलब्धियाँ
हलांकि १९८० के मास्को ओलंपिक में भारत कि गोल्डन गर्ल ने अपना अंतरराष्ट्रिय करियर शुरु किया, परंतु वह केवल २ साल बाद महिमा में आई जब १९८२ में नई दिल्ली में एशियाई खेलों का आयोजन किया गया। उन्होंने १०० मीटर और २०० मीटर में रजत पदक जीतकर देश को गर्व बनाया। पी टी उषा को "इन्डियन ट्रैक एन्ड फील्ड की रानी" के नाम से जानने लगे। उन्होंने उस साल जकार्ता में आयोजित किये गये एशियाई मीट में पाँच स्वर्ण पदक जीते। अपने करियर के सबसे सर्वोच्च पहर था जब वह लॉस एंजिल्स में ४०० मीटर हर्डल में चौथे स्थान पर रहीं। पदक जीतने के सबसे निकटतम पहुँचने वली भारतीय महिला एथ्लीट है। वह केवल एक सेकंड के १/१००वें से चौथे स्थान पर पहुँची। पी टी उषा ने एशियाई खेलों और एशियाई चैंपियनशिप में १३ स्वर्ण पदक सहित १०१ राष्ट्रिय और अंतरराष्ट्रिय जीतें हैं।
पुरस्कार
पी टी उषा को १९८४ में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। और उसी साल उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। १९८५ में जकार्ता एशियाई एथ्लेटिक मीट् में सर्वश्रेष्ठ एथलीट का पुरस्कार उषा ने पाया। १९८६ में सोल एशियाई खेल में सर्वश्रेष्ठ एथ्लीट के पुरस्कार से सम्मनित की ग ग्ई थी। उन्होंने १९८५ और १९८६ में सर्वश्रेष्ठ एथ्लीट के लिये वर्ल्ड ट्रॉफी जीती है। [1]
व्यक्तिगत जीवन
उषा का विवाह वी श्रीनिवासन से हुआ, जो केन्द्रिय औद्योगिक सुरक्षा बल में इंस्पेक्टर के पद पर है। वर्तमान में पी टी उषा दक्षिणी रेलवे में एक अधिकारी के रूप में काम करती है। वह केरल के कोझिकोड के पास कोयिलांदी में सफलतापूर्वक एथ्लेटिक्स के लिये स्कूल चला रही है।[2]
क्रियाप्रसूत अनुकूलन कक्ष
क्रियाप्रसूत अनुकूलन कक्ष एक प्रकार का प्रयोगशाला उपकरण है जो पशु व्यवहार के जाँच के लिये प्रयोग किया जाता है। क्रियाप्रसूत अनुकूलन कक्ष की खोज बी एफ स्किनर ने की थी जब वे हर्वर्ड विश्वविद्यालय में स्नातक की पढाई कर रहे थे। यह उपकरण जेर्ज़ी कोनोरस्की से प्रेरित हो सकता है। इसका प्रयोग क्रियाप्रसूत अनुकूलन एवं क्रियाप्रसूत अनुकूलन दोनों का अध्ययन करने के लिये किया जाता है। स्किनर ने एडवर्ड थोरेंडाइक द्वारा बनाए गए पहेली बॉक्स के विवेधता के रूप में क्रियाप्रसूत अनुकूलन कक्ष बनाया था।
उद्देश्य
क्रियाप्रसूत अनुकूल कक्ष द्वारा प्रयोगकर्ता व्यवहार अनुकूलन का अध्ययन करते है। यह अध्ययन करने के लिये वे पशुओं को विषय बनाते है और उन्हें उत्तेजनाओं (जैसे कि प्रकाश य ध्वनी संकेत) के लिये प्रतिक्रिया होकर कुछ चाल (जैसे कि लिवर दबाना) सिखाते है। जब विषय यह यह सही ढंग से करता है तब उसे कक्ष द्वारा भोजन या अन्य इनाम प्रदान किया जाता है। कुछ स्थितियों में गलत या लापता प्रतिक्रियाओं के लिये सज़ा दिया जाता है। उदाहरण के लिये, मक्खियों जैसे अकशेरुकीयों के क्रियाप्रसूत अनुकूलन का परीक्षण करने के लिए मनोवैग्यनिक एक उपकरण का प्रयोग करते है जिसे "हीट बॉक्स" के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार के उपकरण द्वारा प्रयोगकर्ता सज़ा और इनाम के तंत्र के माध्यम से अनुकूलन और प्रशिक्षण में अध्ययन कर पाते है। [3]
संरचना
इस कक्ष की संरचना एक डिब्बे के रूप में की गई है। यह डिब्बा पशुओं को बैठाने लायक बडा होता है। साधारण तौर पर मूषक, चूहा और कबूतर जैसे पशुओं को विषय बनाया जाता है। अन्य उत्तेजनाओं से विचलित न हि इसलिए कक्ष को ध्वनिरोधी और प्रकाशरोधी बनया जाता है। क्रियप्रसूत कक्ष में कम से कम एक ऑपरेंडम होता है, और अक्सर दो या दो से अधिक, जो स्वचालित रूप से व्यवहार संबंधी प्रतिक्रिया य क्रिया की घटना का पता लगा सकता है। कुछ क्रियाप्रसूत अनुकूलन कक्षों कें विद्युतिकृतजाल या फर्श भी हो सकते है, ताकी जानवरों को झटके दिये जा सकें, या विभिन्न रंगों की रिशनी जो भोजन उपलब्ध होने के बारे में जानकारी देती है। यद्यपी सद्मे का उपयोग अनसुना नहीं है, परंतु जानवरों पर इसका प्रयोग नियंत्रित करने वाले देशों में अनुमोदन की अवश्यकता हो सकती है। [4]
अनुसंधान प्रभाव
क्रियाप्रसूत अनुकूलन कक्ष का प्रयोग विभिन्न् प्रकार के शोध विषयों में किया जाता है, जैसे व्यवहारिक औषधशास्त्र। इन प्रयोगों के परिणाम मनोविग्यान के बाहर अन्य विषयों को सूचित करती है, जैसे कि व्यवहारवादी अर्थशास्त्र।
वाणिज्यिक आवेदन
स्टॉल मशीनों और ऑनलाईन गेम को कभी-कभी मानव उपकरणों के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है जो दोहराव वाले कार्यों को पुरस्कृत करने के लिए सुदृधीकरण के परिष्कृत क्रियाप्रसूत अनुसूची का उपयोग करते है।
स्किनर बॉक्स
स्किनर ने कहा था कि वे एक उपनाम नहीं बनना चाहते थे। उनका यह मानना था कि क्लार्क हुल और उनके येल के छत्रों ने इस परिभाषित शब्द क प्रयोग किया। स्किनर ने स्वयम इस शब्द का उपयोग नहीं किया। उन्होंने हवर्ड हंट को एक प्रकाशित दस्तावेज़ में "स्किनर बॉक्स" के बजाय "लिवर बॉक्स" शब्द का उपयोग करने को कहा।