सदस्य:Nivedita17/प्रयोगपृष्ठ

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भूमिका[संपादित करें]

मेरा नाम निवेदिता महेश है। मैं बंगलौर, कर्नाटक, में ऱेहती हूँ। मै क्राईस्ट विश्वविद्यालय से अपनी बी.ए. कर रही हूँ। मेरे माता क नाम गीता महेश और पिता का नाम सुकुमार महेश है। मेरा जन्म १७ नवम्बर १९९९ को हुआ ता। मेरे मातृभूमी केरल है। मैने अपने बचपन दुबई मे बिताया था और २०१४ मे मैं वापस भारत लौट आयी। मुझे नाचने, गाने और काविता लिखने का बहुत शौक है।

परिवार[संपादित करें]

मेरे पिता का नाम सुकुमार महेश है। वह विपणन प्रबन्धक के रूप मे काम करते है।वह ४५ साल का है और उनका मातृभूमी केरल है। मेरे माता का नाम गीता महेश है, वह् ग्रहणी है।मेऱी बहन्, पूजा महेश, सातवी कक्षा मे पढ रही है। मै अपनी परिवार के साथ घनिष्ट स्ंबन्ध स्थापित किया है।

शिक्षां[संपादित करें]

मैने अपने प्राथमिक शिक्षा इन्डियन हाई स्कूल, दुबई से प्राप्त किया था। आटवीं कक्षा मे मै भारत वापस लौट आयी, और इस्लिए मुझे अपना विद्यालय बदलने पडा। मैने १०वीं कक्षा तक की पढाई युवाभार्ती पाब्लिक स्कूल मे किया था। मैने अपनी उच्च शिक्षा क्राईस्ट जुनियर कोलेज से प्राप्त किया था। वर्तामान मे,मै क्राईस्ट विश्वविद्यालय मे मीडिया, मनोविज्ञान और साहित्य पढती हूँ।

रुचियाँ[संपादित करें]

मुझे कविता पढने का बहुत शौक है। मुझे सराह के की कवितायएँ बहुत अच्छा लागता है। मुझे नाचने का भी बहुत शौक है। मै बचपन से ही भरतनाट्यम् सीखते आयी हूँ। मैने साल्सा (नृत्य) और हिप हॉप नृत्य जैसे नृत्य शैली भी सीखा हैं। इसके अलावा मैं गीत गाना भी पस्ंद् करती हूँ।

लक्ष्य[संपादित करें]

मेरे जीवन का लक्ष्य एक अच्छे पत्रकार बनने का है। मुझे समाज मै बदलाव लाना है और मै बेसहारा लोग के आवाज़ बनना चाहती हूँ। मेरे सपना है कि मै अपनी माता-पिता को गर्वित करूँ और एक अच्छे इंसान की तरह अपना इस छोटा स

देवी महालक्ष्मी की पूजा

माहालक्ष्मी व्रत[संपादित करें]

माहालक्ष्मी व्रत को श्रवण मास में पूर्णिमा के पहले आने वाले शुक्रवार को मनाया जाता हैं। आम तौर पर विवाहित महिलायएँ इस व्रत का पालन करते हैं।

भूमिका[संपादित करें]

माहालक्ष्मी व्रत को तमिल नाडू, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के लोग मनाते है। भगवान विष्णु के पत्नी, देवी माहालक्षमी की आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये पुरुषों और विवाहित स्त्रियों द्वारा यह पूजा की जाती है। हिन्दू संस्कृति में देवी माहालक्ष्मी को धन और सम्रृद्धि के प्रतीक माना जाता है। इस साल माहालक्ष्मी व्रत २९ अगस्त को मनाया गया था।

व्रत का इतिहास[संपादित करें]

अलग-अलग ग्रंथों में माहालक्ष्मी व्रत के अलग-अलग कथाओं क वर्णन किया गया है। उनमें से एक किंवदंती है जो कहते है कि भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को धन और समृद्धि हासिल करने के लिये यह व्रत सिफारिश किया था। लोग यह भी मानते है कि चारुमाति नामक एक बहुत धार्मिक स्त्री ने अपने सपनों में भगवती वरालाक्ष्मी को देखा था, और उन्होंने चारुमति से अपने इच्छाओं को पूरे करने के लिए यह व्रत रखने को कहा था। चारुमति ने अपने ग्राम के अन्य महिलाओं के साथ यह व्रत रखा। उन्होंने भगवती को बहुत सारे व्यंजन भी समर्पित किया। व्रत के पूर्ण होने के बाद अन्होंने देखा की उनके शरीर महंगे गहने से सजे थे और अनके घर धन से भरा था। तब से, महिलाएँ अपने घरों मे धन और समृद्धी लाने के लिये यह व्रत रखना शुरू किया।

रसम रिवाज[संपादित करें]

माहालाक्ष्मी व्रत के दिन, महिलाएँ अपने घरों को साफ़ करते है और रंगोली लगाते है। फिर वह खुद को अच्छे वस्त्र और आभूषण से सजाते है। इसके बाद वह व्रत शुरू करने के लिये पवित्र कलश को चावल और पानी से भर देते है, और इससे समृद्धी का प्रतीक माना जाता है। फिर वह नारियल पर सिंदूर और हल्दी लगाते है और नए कपड़े से सजाते है। कुछ लोग कलश के सुंदरता को बढ़ाने के लिये असे गहने से भी अलंकृत करते है और इस कलश को चावल से भरा हुआ थाली पर रखते है।

पूजा[संपादित करें]

मुख्य पूजा भगवान गणेश के पूजा से शुरू होते है, ताकि सभी बाधाएँ और बुरी ताकतें दूर हो जाएँ। उसके बाद देवी महालक्ष्मी को कलश मे आहवान किया जाता है। फिर टोरम या नौ गांठ होने वाले नौ धागों का पूजा किया जाता है। एक टोरम को कलश में बांधा जाता है, और दूसरे टोरम पूजा करने वाली औरत के दाहिने हाथ के कलाई में बांधा जाता है। फिर वह लाक्ष्मी अषटोत्तारा शातानामम पढ़ते है और देवी को नौ तरह के मिठाई और अन्य स्वादिष्ट भोजन समर्पित करते है।

व्रत के समापन मे, लोग देवी वरालक्ष्मी के प्रशंसा मे भजन गाते है और अन्य विवाहित महिला को देवी वरालक्ष्मी मानकर अपने घर आमंत्रित करते है, और उसे मिठाई भी खिलाते है। उस शाम को वह सभी पड़ोसी महिलाओं को ताम्बूलम प्रस्तुत करते है जिसमें ताम्बूल के पत्ते, फल, सुपारी, हल्दी, पैसे और सिंदूर होते है। इसी तरह लोग रात भर देवी की गुणगान करते हुए बिताते है।

व्रत का लाभ[संपादित करें]

लोग विश्वास करते है कि महालक्ष्मी व्रत मनाने से धन-धान्य और समृध्दि की वृध्दी होगा।

सन्दर्भ[संपादित करें]

https://en.wikipedia.org/wiki/Mahalakshmi_Vrata

https://aajtak.intoday.in/story/dharma-mahalaxmi-vrat-katha-pujan-vidhi-significance-tdha-1-869931.html

मारग्रेट एटवुड[संपादित करें]

मारग्रेट एलीनोर एटवुड केनेडा के एक प्रसिद्ध कवयित्री, आलोचक, सहित्यक, निबंधकार, शिक्षक और पर्यायवरण कार्यकर्ता है। उन्होंने कविताओं के सत्तर किताबें, सोलह उपन्यास, गैर-कथाओं के दस किताबें और लघु कथओं के आठ संग्रह प्रकाशित किया है। उनके लेखन में भाषा, लिंग, पहचान, धर्म और जलवायु परिवर्तन जैसे अनेक विषय शामिल है। उनकी अधिकांश कविताएँ मिथकों और दंतकथाओं से प्रेरित है। एटवुड ग्रिफ्फिन कविता पुरस्कार के स्थापक और 'लाँगपेन' के आविष्कारक भी है।

मारग्रेट एटवुड


व्यक्तिग्त जीवन और शिक्षा[संपादित करें]

एटवुड का जन्म कनाडा के ओटावा में हुआ था। वह कार्ल एडमंड एटवुड और मारग्रेट डोरोथी का दूसरा बच्चा था। उन्होंने ६ साल की उम्र में नाटकों और कविताओं को लिखना शुरू किया था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा लीसाईड हाई सकूल में की थी। उनहोंने १९६१ में विक्टोरिया यूनिवर्सिटी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। इसके बाद उनहोने वूड्रो विल्सन छात्रवृति के साथ हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रेडक्लिफ कॉलेज में अपने स्नातक अध्ययन पूर्ती किया। १९६८ में एटवुड ने अमेरिकी लेखक [[जिम पॉलाक से विवाह किया था।

लेखन[संपादित करें]

एटवुड की पहली कविताओं के किताब, डबल पर्सेफोन, हाव्सकहेड प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था। लेखन के साथ, वह विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढाती थी। उन्होंने सर जोर्ज विलिएम्स यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटीऑफ एल्बर्टा और यॉर्क युनिवर्सिटी जैसे प्रसिद्ध विश्वविध्याल्यों में काम किया है। १९६९ में एटवुड ने अपना पहला उपन्यास 'दा एडिबल वुमन' लिखा जिसके दवारा वह उत्तरी अमेरिका के उपभोक्तावाद दर्शाना चाहते थे। १९७० के दशक में उन्होंने कविताओं के ६ संग्रह प्रकाशित किया जिनमे 'दा जर्न्लस ऑफ सूसाना मूडी', 'पॉवर पोलिटिक्स' और 'यू आर हैपी' भी शामिल था। २००० में एटवुड के दस्वी उपन्यास 'दा ब्लाइंड एसासिन' ने मैन बुकर पुरस्कार और हेम्लेट पुरस्कार को जीत लिया था। इस उपन्यास को गवर्नर जनरल के पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय डब्लिन लिटरेरी अवार्ड और ओरेंज प्राईस फोर फिक्शन के लिए भी नामांकित किया गया था। २०१६ में उन्होंने हास्य पुस्तक श्रृंखला 'ऐंजल केटबरड' लिखना शुरु किया। श्रृंखला के नायक, वैज्ञानिक स्ट्र्ग फेलेडियस एक दुर्घटना के शिकार है जो उसे बिल्ली और एक पक्षी के अंगो और शक्तियों के साथ छोड देता है। उन्के अनेक लेखन फिल्मों और टेलिविजन श्रंखलाओं में अनुकूलित किया गया है। उनकी पुस्तक 'दा हेंडमेडस टेल' के अनुकूलन ने २०१७ में १७ एमी पुरस्कार जीता था। इसके अलावा, उनके लेखन 'सरफेसिंग', 'अलियास ग्रेस' और 'दा इयर ऑफ दा फ्लाड' का भी अनुकूलन बनाया गया है।

समाज-कार्य[संपादित करें]

एटवुड हमेशा पर्यावरणविद और पशु अधिकार कार्यकर्ता रहा है। वह ग्राइमे गिब्सन के साथ बर्डलाइफ इंटरनाश्न्ल के भीतर दुर्लभ पक्षी सभा के संयुक्त मानद अध्यक्ष भी थे। उनके काम नारीवादी साहित्यिक आलोचकों के लिए विशेष रुचि रखते है। अपने पहले उपन्यास 'द एडिबल वुमन' के प्रकाशसन के बाद एटवुड ने कहा था कि मैं अपने लेखन को नारिवादी नही मानता, मैं उसे समाजिक यथार्थवाद मानता हूँ।

पुरस्कार[संपादित करें]

एटवुड ने अपने जीवनकाल में अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारें जीती हैं। उन्होंने २००० में अपने उपन्यास 'द ब्लाइंड असासिन' के लिए प्रसिद्ध बुकर पुरस्कार जीता था। वह विख्यात फ्रान्स काफका पुरस्कार, डेन डेविड पुरस्कार और अरतर सी क्लार्क अवॉर्ड के भी प्राप्तकर्ता है। एटवुड ने ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय जैसे प्रख्यात विश्वविद्यालयों में से अनेक मानद उपाधियों भी प्राप्त किया है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

https://www.poetryfoundation.org/poets/margaret-atwood

https://www.britannica.com/biography/Margaret-Atwood

https://literature.britishcouncil.org/writer/margaret-atwood

https://www.biblio.com/margaret-atwood/author/165