बैजू बावरा (1952 फ़िल्म)
बैजू बावरा | |
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बैजू बावरा का पोस्टर | |
निर्देशक | विजय भट्ट |
लेखक |
हरीश चंद्र ठाकुर (कहानी) आर. एस. चौधरी (संशोधित संस्करण एवं पटकथा) ज़िया सरहदी (संवाद) |
निर्माता | प्रकाश पिक्चर्स |
अभिनेता |
भारत भूषण, मीना कुमारी |
छायाकार | वी. एन. रेड्डी |
संपादक | प्रताप दवे |
संगीतकार |
नौशाद (संगीतकार) शकील बदायूँनी (गीतकार) |
प्रदर्शन तिथि |
1952 |
लम्बाई |
165 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
बैजू बावरा हिन्दी भाषा की एक फ़िल्म है जो 1952 में प्रदर्शित हुई। यह प्रसिद्ध संगीतज्ञ बैजू बावरा के जीवन पर आधारित है हालांकि फ़िल्म की कहानी और बैजू बावरा पर प्रचलित दन्तकथाओं में काफ़ी असमानताएं हैं। फ़िल्म के निर्देशक हैं विजय भट्ट और मुख्य कलाकार हैं भारत भूषण और मीना कुमारी।[1] फ़िल्म का काल सम्राट अकबर के समय का है और बैजू बावरा अपने पिता की मृत्यु का बदला संगीत सम्राट तानसेन से लेना चाहता है। तानसेन अकबर के दरबार के नव रत्नों में से एक था।
संक्षेप
[संपादित करें]बादशाह अकबर का यह आदेश था कि कोई भी तानसेन के महल के इर्द-गिर्द नहीं गायेगा क्योंकि इससे तानसेन की साधना भंग होती है और यदि किसी ने ऐसी ग़ुस्ताख़ी की तो यह समझा जायेगा कि वह तानसेन को प्रतियोगिता के लिए ललकार रहा है और उसे मजबूरन तानसेन से संगीत का मुक़ाबला करना पड़ेगा। इस मुक़ाबले में हारने वाले को मृत्युदण्ड दिया जायेगा। बैजू (रतन कुमार) तब बच्चा ही होता है, जब तानसेन के संतरी बैजू के पिता को गाने से रोकने की कोशिश करते हैं और हाथापाई में उसके पिता की मृत्यु हो जाती है। मरने से पहले बैजू के पिता उससे वादा लेते हैं कि वह उनकी मौत का बदला लेगा। बदले की आग में बालक बैजू सिपाहियों के खेमे से एक तलवार चुरा लेता है और जब सिपाही उसका पीछा करते हैं तो गांव के एक पण्डित शंकरानन्द मनमोहन कृष्णा उसकी जान बचाते हैं और वह उनके साथ रहने लगता है जहाँ उसकी दोस्ती एक मल्लाह की लड़की गौरी (बेबी तबस्सुम) से हो जाती है। बड़े होते-होते यह दोस्ती प्यार में बदल जाती है और बैजू भारत भूषण और गौरी मीना कुमारी एक साथ काफ़ी समय बिताने लग जाते हैं जो गांव वालों को अच्छा नहीं लगता है। गौरी के प्यार में बैजू अपने पिता को दिया हुआ वचन भी भूल जाता है।
एक दिन गांव में डाकू आ जाते हैं और बैजू अपने गीत के ज़रिए गांव वालों को उन डाकुओं के हाथों लुटने से बचा लेता है लेकिन दस्यु सरदारनी बैजू से इसके ऐवज़ में अपने साथ चलने को कहती है। गांव को बचाने की ख़ातिर बैजू गौरी को बिलखता हुआ छोड़ डाकुओं के साथ हो लेता है। डाकुओं के अड्डे में सरदारनी बैजू को बताती है कि वह दरअसल एक जागीरदार की लड़की है और उसका नाम है रूपमती। वह गांव जिसमें बैजू रहता है उसके पिता का था जिसे राजा मान सिंह (फ़िल्म में तो नहीं बताया है लेकिन राजा मान सिंह ग्वालियर के राजा थे जिनके दरबार में बैजू गायक था।) ने छीन लिया था और उसके पिता को मरवा दिया था। अब वह इसी बात का बदला उस गांव में डाका डाल कर ले रही है। बदला शब्द सुनते ही बैजू को अपने पिता को दिया हुआ वचन याद आ जाता है और वह तानसेन से बदला लेने के लिए उस राजकुमारी की तलवार लेकर निकल पड़ता है।
तानसेन के महल पहुँचकर जब वह तानसेन को मारने के लिए तलवार उठाता है तो तानसेन का आलाप सुनकर उसके हाथ से तलवार गिर जाती है। वह फिर तलवार उठाकर तानसेन के तानपुरे पर वार कर देता है। जब तानसेन उससे पूछता है कि बैजू ने तानसेन की गर्दन के बजाय तानपुरे को निशाना क्यों बनाया तो बैजू जवाब देता है कि तानपुरे के सुर उसको ऐसा करने से रोक रहे थे। तानसेन कहता है कि बैजू कोई सुरों का ज्ञानी प्रतीत होता है और यह भी कहता है कि वह किसी तलवार से मरने वाला नहीं है और यदि बैजू सुरों में लिप्त कोई बहुत ही भावुक गीत पेश करेगा तो तानसेन ख़ुद ब ख़ुद मर जायेगा। यह सुनकर बैजू असली संगीत सीखने के लिए वहाँ से स्वामी हरिदास की शरण में चला जाता है और उनसे निवेदन करता है कि वे उसे अपना शिष्य बना लें ताकि संगीत सीख कर वह तानसेन से बदला ले सके। स्वामी हरिदास उससे कहते हैं कि मन में क्रोध से नहीं बल्कि प्रेम से संगीत साधना सफल होती है और उसे एक वीणा देते हैं ताकि वह संगीत साधना शुरु कर सके और उसे अपना शिष्य स्वीकार कर लेते हैं। बैजू के मन से बदले की आग तो नहीं जाती है लेकिन वह एक शिव मंदिर में जाकर पूरे मन से रिआज़ शुरु कर देता है और स्वामी हरिदास पर उसकी अपार श्रद्धा बन जाती है। एक दिन वह स्वामी हरिदास से मिलने आता है तो उसे पता चलता है कि वे इतने बीमार हैं कि चल-फिर नहीं पा रहे हैं। वह उनके आश्रम के मन्दिर में ऐसा गीत गाता है कि स्वामी हरिदास चारपाई छोड़ मन्दिर की ओर चल पड़ते हैं। मन्दिर पहुँचकर वे बैजू को आशीर्वाद देते हैं और उसे संगीत सिखाने का बीड़ा उठाते हैं।
इधर बैजू के ग़म में गौरी ज़हर खाने जा रही होती है तभी राजकुमारी रूपमती आकर उससे बैजू से मिलने के लिए चलने को कहती है। गौरी बैजू से मिलती है और वापस गांव चलने को कहती है लेकिन बैजू यह कह कर मना कर देता है कि उसे तानसेन से अपने पिता की मौत का बदला लेना है और गौरी को पीछे छोड़ शिव मंदिर से बाहर निकल जाता है। तभी स्वामी हरिदास आते हैं और बैजू को आख़िरी गुरुमंत्र यह कह कर देते हैं कि सच्चा संगीतज्ञ बनने के लिए उसे सच्चे दर्द का ऐहसास होना ज़रूरी है और उसके लिए उसे सच्चा प्रेम और उसके दुःख का ऐहसास करना होगा। गौरी यह सुन लेती है और अपने को सांप से कटवा कर बैजू से यह कहती है कि अब वह बैजू और उसकी साधना के बीच कभी आड़े नहीं आयेगी। गौरी को मरा हुआ जान बैजू बदहवास सा हो जाता है और बावरा बन जाता है, जिसके कारण फ़िल्म को उसका नाम मिला है। वह भगवान को कोसता हुआ एक दर्द भरा गीत गाता हुआ तानसेन के महल के बाहर पहुँच जाता है और बन्दी बना लिया जाता है। राजकुमारी रूपमती उसे कारागार से छुड़ाने आती है लेकिन ख़ुद भी पकड़ी जाती है। अब बैजू के पास तानसेन से मुक़ाबला करने के सिवा और कोई चारा नहीं बचता है।
मुक़ाबला शुरु होता है लेकिन हार-जीत का फ़ैसला नहीं हो पाता है। तब बादशाह अकबर यह ऐलान करता है कि जो संगेमर्मर के पत्थर को पिघला देगा वह विजयी घोषित किया जायेगा। बैजू मुक़ाबला जीत जाता है और बदले में तीन चीज़ें मांगता है कि संगीत से पाबन्दी हटा दी जाये, राजकुमारी रूपमती को रिहा कर दिया जाये और उसकी जाग़ीर लौटा दी जाये और अंत में तानसेन की जान बक़्श दी जाये। फिर वह अकबर के दरबार से अपने गांव के लिए निकल पड़ता है।
यमुना के इस पार पहुँचकर उसे पता चलता है कि गौरी की शादी हो रही है। वह मल्लाह से उसे उस पार पहुँचाने का अनुरोध करता है लेकिन यमुना में बाढ़ आई होती है और मल्लाह उसे मना कर देता है। तब बैजू स्वयं ही नाव में सवार हो उसे खेने की कोशिश करता है। यह देख दूसरे किनारे से गौरी, जिसे तैरना आता है, बैजू को बचाने के लिए नदी में कूद पड़ती है। उसी समय बैजू की नाव पलट जाती है और गौरी बैजू के पास पहुँच जाती है। बैजू गौरी से किनारे वापस जाने को कहता है क्योंकि तैरना आते हुये भी गौरी इतने तेज़ बहाव में बैजू को नहीं बचा पायेगी। गौरी साफ़ इन्कार कर देती है और दोनों डूब जाते हैं।
चरित्र
[संपादित करें]- भारत भूषण - बैजू बावरा
- मीना कुमारी - गौरी
- सुरेंद्र - संगीत सम्राट तानसेन
- बिपिन गुप्ता - शहंशाह अकबर
- मनमोहन कृष्णा - पंडित शंकरानन्द
- कुलदीप कौर - डाकू रूपमती
- बी एम व्यास - मोहन
- मिश्रा - नरपत
- राय मोहन - स्वामी हरिदास
- भगवानजी - बैजू के पिता
- नादिर - हाथी सिंह
- रमेश - सोहेल खाँ
- कृष्ण कुमारी - वासंती
- सीताराम टीकाराम - आठवले
- रतन कुमार - बालक बैजू
- बेबी तबस्सुम - बालिका गौरी
मुख्य कलाकार
[संपादित करें]संगीत
[संपादित करें]बैजू बावरा | ||||
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ध्वनि मुद्रण नौशाद द्वारा | ||||
जारी | १९५२ | |||
संगीत शैली | फ़िल्मी संगीत | |||
नौशाद कालक्रम | ||||
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शास्त्रीय संगीत प्रधान फ़िल्म होने के कारण इसमें एक गाने को छोड़ बाकी सभी गाने रागों पर आधारित हैं।
सभी गीत शकील बदायूँनी द्वारा लिखित; सारा संगीत नौशाद द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "तू गंगा की मौज" (राग भैरवी) | मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर | |
2. | "आज गावत मन मेरो झूमके" (राग देसी) | उस्ताद आमीर खाँ, डी वी पलुस्कर | |
3. | "ओ दुनिया के रखवाले" (रागदरबारी) | मोहम्मद रफ़ी | |
4. | "दूर कोई गाए" (राग देस) | लता मंगेशकर, शमशाद बेगम व समूह | |
5. | "मोहे भूल गए साँवरिया" (राग भैरव, कलिंगदा के साथ) | लता मंगेशकर | |
6. | "झूले में पवन के आई बहार" (राग पीलू) | मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर | |
7. | "मन तडपत हरी दरशन को आज" (राग मालकौंस) | मोहम्मद रफ़ी | |
8. | "बचपन की मुहब्बत को" (राग मंद आधारित) | लता मंगेशकर | |
9. | "इंसान बनो" (राग तोडी) | मोहम्मद रफ़ी | |
10. | "तोरी जय जय करतार" (राग पूरीय धनश्री) | उस्ताद आमीर खाँ | |
11. | "लंगर कंकरिया जी न मारो" (राग तोडी) | उस्ताद आमीर खाँ, डी वी पलुस्कर | |
12. | "घनन घनन घन गरजो रे" (राग मेघ) | उस्ताद आमीर खाँ | |
13. | "सरगम" (रागदरबारी) | उस्ताद आमीर खाँ |
नामांकन और पुरस्कार
[संपादित करें]पुरस्कार व विभाग | कलाकार | स्थिति | टिप्पणी | |
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सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री | मीना कुमारी | जीत | ||
सर्वश्रेष्ठ संगीतकार | नौशाद | जीत | गीत तू गंगा की मौज के लिए |
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Sixty Years of Baiju Bawra" [बैजू बावरा के साठ वर्ष]. 21 अप्रैल 2012. मूल से 4 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 सितम्बर 2013.
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]यह फ़िल्म-सम्बन्धी लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |