अहिल्याबाई होल्कर

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महारानी अहिल्याबाई होळकर
महाराणी अहिल्याबाई होळकर
पुण्यश्लोक
मालवा साम्राज्य, इन्दौर की महाराणी अहिल्याबाई होळकर की दिल्ली के महाराष्ट्र सदन स्थित मुख प्रतिमा
मालवा राज्य की महारानी
शासनावधि1 दिसंबर 1767 - 13 अगस्त 1795)
राज्याभिषेक11 दिसम्बर, 1767
पूर्ववर्तीमाळेराव होल्कर
उत्तरवर्तीतुकोजीराव होल्कर - 1
जन्म31 मई 1725
ग्राम चौंढी, जामखेड , अहमदनगर, महाराष्ट्र, भारत
निधन13 अगस्त 1795
जीवनसंगीखण्डेराव होळकर
पूरा नाम
अहिल्याबाई खण्डेराव होलकर
घरानाहोल्कर
राजवंशमराठा साम्राज्य
पितामान्कोजी शिन्दे
धर्महिन्दू

अहिल्याबाई होळकर (31 मई 1725 - 13 अगस्त 1795), मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध महारानी तथा इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खण्डेराव की धर्मपत्नी थीं। उन्होने माहेश्वर को राजधानी बनाकर शासन किया।

अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मन्दिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-काशी विश्वनाथ में शिवलिंग को स्थापित किया, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु की।

जीवन परिचय[संपादित करें]

महारानी अहिल्याबाई होलकर

अहिल्याबाई होळकर का जन्म चौंडी नामक गाँव में हुआ था जो आजकल महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड में पड़ता है। दस-बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं। पति का स्वभाव चंचल और उग्र था। वह सब उन्होंने सहा। फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहान्त हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, दौहित्र नत्थू चल बसा। चार वर्ष पीछे दामाद यशवन्तराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई। दूर के सम्बन्धी तुकोजीराव के पुत्र मल्हारराव पर उनका स्नेह था; सोचती थीं कि आगे चलकर यही शासन, व्यवस्था, न्याय और प्रजारंजन की डोर सँभालेगा; पर वह अन्त-अन्त तक उन्हें दुःख देता रहा।[1]

योगदान[संपादित करें]

माहेश्वर का शाही महल
अहिल्या घाट, वाराणसी

अहिल्याबाई होळकर ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मन्दिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परम्परा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था। जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यन्त हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अन्धविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया। वह चिरस्मरणीय है।

इन्दौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव होता चला आता है। अहिल्याबाई होळकर जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम उबदी के पास स्थित कस्बे अकावल्या के पाटीदार को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई होळकर ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह माँगा कि महेश्वर में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये।

मतभेद[संपादित करें]

उनके मन्दिर-निर्माण और अन्य धर्म-कार्यों के महत्त्व के विषय में मतभेद है।[2] इन कार्यों में अहिल्याबाई ने अन्धाधुन्ध खर्च किया और सेना नए ढंग पर संगठित नहीं की। तुकोजी होलकर की सेना को उत्तरी अभियानों में अर्थसंकट सहना पड़ा, कहीं-कहीं यह आरोप भी है।[3] इन मन्दिरों को हिन्दू धर्म की बाहरी चौंकियाँ बतलाया है।[4] तुकोजीराव होळकर के पास बारह लाख रुपए थे जब वह अहिल्याबाई होळकर से रुपए की माँग पर माँग कर रहा था और संसार को दिखलाता था कि रुपए-पैसे से तंग हूँ। फिर इसमें अहिल्याबाई का दोष क्या था ?[5] हिन्दुओं के लिए धर्म की भावना सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति रही है; अहिल्याबाई होळकर ने उसी का उपयोग किया। तत्कालीन अंधविश्वासों और रुढ़ियों का वर्णन उपन्यास में आया है। इनमें से एक विश्वास था मांधता के निकट नर्मदा तीर स्थित खडी पहाड़ी से कूदकर मोक्ष-प्राप्ति के लिए प्राणत्याग-आत्महत्या कर डालना।

विचारधाराएँ[संपादित करें]

अहिल्याबाई होळकर के सम्बन्ध में दो प्रकार की विचारधाराएँ रही हैं। एक में उनको देवी के अवतार की पदवी दी गई है, दूसरी में उनके अति उत्कृष्ट गुणों के साथ अन्धविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति श्रद्धा को भी प्रकट किया है। वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अँधेरा बार-बार ग्रसने की चेष्टा करता रहा। अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्हें देवी का दर्जा मिला।

सेनापति के रूप में[संपादित करें]

मल्हारराव के भाई-बन्दों में तुकोजीराव होल्कर एक विश्वासपात्र युवक थे। मल्हारराव ने उन्हें भी सदा अपने साथ में रखा था और राजकाज के लिए तैयार कर लिया था। अहिल्याबाई होळकर ने इन्हें अपना सेनापति बनाया और चौथ वसूल करने का काम उन्हें सौंप दिया। वैसे तो उम्र में तुकोजीराव होल्कर अहिल्याबाई से बड़े थे, परन्तु तुकोजी उन्हें अपनी माता के समान ही मानते थे और राज्य का काम पूरी लगन ओर सच्चाई के साथ करते थे। अहिल्याबाई का उन पर इतना प्रेम और विश्वास था कि वह भी उन्हें पुत्र जैसा मानती थीं। राज्य के कागजों में जहाँ कहीं उनका उल्लेख आता है वहाँ तथा मुहरों में भी 'खण्डोजी सुत तुकोजी होळकर इस प्रकार कहा गया है।

मृत्यु[संपादित करें]

राज्य की चिन्ता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग। इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका। और 13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। अहिल्याबाई के निधन के बाद महाराजा तुकोजी राव ने राज्य की शासन व्यवस्था को संभाला।

देश में स्‍थान[संपादित करें]

औरंगाबाद, महाराष्ट्र में अहिल्याबाई का पुतला

स्‍वतन्त्र भारत में अहिल्‍याबाई होळकर का नाम बहुत ही सम्‍मान के साथ लिया जाता है। इनके बारे में अलग अलग राज्‍यों की पाठ्य पुस्‍तकों में अध्‍याय मौजूद हैं।

चूँकि अहिल्‍याबाई होळकर एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्‍होंनें भारत के अलग अलग राज्‍यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्‍न राज्‍यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमाएँ बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्‍याणकारी योजनाओं भी चलाया जा रहा है।

ऐसी ही एक योजना उत्तराखण्ड सरकार की ओर से भी चलाई जा रही है। जो अहिल्‍याबाई होळकर को पूर्णं सम्‍मान देती है। इस योजना का नाम ‘अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी विकास योजना है। अहिल्‍याबाई होळकर भेड़ बकरी पालन योजना के तहत उत्तराखणवड के बेरोजगार, बीपीएल राशनकार्ड धारकों, महिलाओं व आर्थि[6] के रूप से कमजोर लोगों को बकरी पालन यूनिट के निर्माण के लिये भारी अनुदान राशि प्रदान की जाती है। लगभग 1,00,000 रूपये की इस युनिट के निर्मांण के लिये सरकार की ओर से 91,770 रूपये सरकारी सहायता रूप में अहिल्‍याबाई होळकर के लाभार्थी को प्राप्‍त होते हैं।

टिप्पणियाँ[संपादित करें]

  1. जोशी, गोविन्दराम केशवराम (1916). अहिल्याबाई होलकर. पृ॰ 23-31 – वाया विकिस्रोत. [स्कैन विकिस्रोत कड़ी]
  2. श्री सरदेसाई ने अपने ग्रन्थ ‘New History of the Marathas’, Vol.।।। p. 211 पर लिखा है कि इन कार्यों में अहिल्याबाई ने अन्धाधुन्ध खर्च किया और सेना नए ढँग पर संगठित नहीं की। तुकोजी होलकर की सेना को उत्तरी अभियानों में अर्थसंकट सहना पड़ा
  3. श्री सरदेसाई ने अपनी नवीनतम पुस्तक ‘The main Currents of Maratha History’ में इन मंदिरों को Out-Posts of Hindu religion (हिंदू धर्म की बाहरी चौंकियाँ) बतलाया है।
  4. V.V. Thakur की ‘Life & Life-Work of Shri Devi Ahilya Bai Holkar’, p. 155 पर सप्रमाण लिखा है कि
  5. इतिहास लेखकों का कहना है कि Religion has been the greatest motive power for the Hindus
  6. आजमी, जमशेद (11 नवम्बर 2018). "भेड़ बकरी पालन उत्तराखंड". Kanafusi. मूल से पुरालेखित 12 नवंबर 2018. अभिगमन तिथि 11 नवंबर 2018.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)

स्रोत[संपादित करें]

  • मल्हार (तुकोजी का पुत्र) विषयक घटनाओं के आधार-
  • ‘इतिहासाचीं साधनें’ में, पत्र क्र. 260, ता. 8-12-1789
  • तुकोजी का पत्र अहिल्याबाई को क्र. 168, ता. 3-2-1790
  • रुक्माबाई का पत्र अहिल्याबाई को, क्र. 268, ता. 3-2-1790
  • अहिल्याबाई का पत्र तुकोजी को, क्र. 273, ता. 1-4-1790 [जिसमें उन्होंने मल्हार के अत्याचारों का वर्णन किया है।]
  • यशवंतराव गंगाधर का पत्र अहिल्याबाई को, ता. 2-4-1790
  • रुक्मबाई का पत्र अहिल्याबाई को, क्र. 277, ता. 16-4-1790
  • मल्हार का पत्र अहिल्याबाई को, क्र. 279, ता. 5-5-1790 तथा पत्र क्र. 295, 301, 303, 315, 317, 332, 339, 347, 391, 399, 402, 403 इत्यादि और सरदेसाई की ‘New History of the Marathas’, Vol.।।। का सातवाँ और आठवाँ परिच्छेद; जहाँ नाना फडनीस का महादजी सिंधिया के प्रति वैर और मल्हार इत्यादि के चरित्रों का पूरा वर्णन है। मल्हार कहाँ और कैसे पकड़ा गया, इसका वर्णन यशवंतराव गंगाधर के पत्र में मिलेगा; जो होलकर सरकार पुस्तकमाला की 16वीं पुस्तक के पृ. 158-159 पर छपा है। पत्र मराठी में है।
  • लखेरी का युद्ध 1-6-1793 के दिन हुआ था। दूसरे दिन भोर, मल्हार एक तालाब किनारे शराब पिए अचेत पड़ा पाया गया।-सरदेसाई की ‘New History of the Marathas’, Vol. lll, P.248।
  • अहिल्याबाई का न्याय, शासन-व्यवस्था, दानशीलता और उनकी विनयशीलता इत्यादि का आधार है-‘इतिहासाचीं साधनें’, पहला भाग के पत्र। ‘महेश्वर दरबारचीं वातमीं पत्रें’; इंदौर गजीटियर; ‘होलकर शाहीचा इतिहास’; V.V. Thakur कृत ‘Life and Life-work of Shri Ahilya Bai’; डॉक्टर उदयभानु कृत ‘देवी अहिल्याबाई’, (हिंदी); ‘देवी श्री अहिल्याबाई होलकर’ (मराठी), ‘पुण्यश्लोक देवी श्री अहिल्याबाई’ (मराठी), ‘होलकरांची कैफियक’; सरदेसाई कृत ‘New History of the Marathas’, Vol.।।। और ‘The Main currents of Maratha History’। अंतिम पुस्तक में रुढ़िगत विश्वासों की आलोचना भी मिलेगी।
  • गौतमापुर में अपराधियों को छोड़ छुट्टी- इंदौर गजीटियर, पृ. 275
  • गनपतराव और जामघाट पर भवन-निर्माण गजीटियर, पृ. 285 मराठी पुस्तक ‘देवी श्री अहिल्याबाई होलकर’ इत्यादि।
  • उस समय के अंधविश्वास और खरगोन के चबूतरे, खंबे और फरसे की पूजा, ‘नव दुर्गामाता’ के मंदिर में जीभ का बलिदान, राजा बल्लाल की ‘ऊन’ वाली कहानी इत्यादि-
  • इंदौर गजीटियर इत्यादि
  • अहिल्याबाई, तुकोजीराव होलकर-
  • ऊपर लिखी सभी पुस्तकों में वृत्तांत मिलेगा।
  • अहिल्याबाई और महादजी सिंधिया तथा उत्तरी क्षेत्र के प्रसंग-‘New History of the Marathas’, Vol.।।।; इसी पुस्तक के पृ. 213 पर अहिल्याबाई का क्षुब्ध होना और महादजी को शाप देना लिखा है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]