पानीपत का तृतीय युद्ध
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योद्धा | |||||||||
मराठा साम्राज्य | अफ़गान साम्राज्य | ||||||||
सेनानायक | |||||||||
सदाशिवराव भाऊ | अहमद शाह अब्दाली | ||||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||||
३०,००० | २०,००० | ||||||||
क़रीब ४०,००० से ६०,००० ग़ैर-लड़ाका लड़ाई के बाद निष्पादित किये गये क़रीब ५०,००० का ग़ुलामिकरण |
पानीपत का तृतीय युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 को वर्तमान पानीपत के मैदान मे हुआ जो वर्तमान समय में हरियाणा में है। इस युद्ध में गार्दी सेना प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया [1] तथा दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया।
पृष्ठभूमि
[संपादित करें]मुग़ल साम्राज्य का अंत (1737 - 1857) में शुरु हो गया था, जब मुगलों के ज्यादातर भू भागों पर मराठों का आधिपत्य हो गया था। 1739 में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया। 1757 ईस्वी में रघुनाथ राव ने दिल्ली पर आक्रमण कर दुर्रानी को वापस अफ़गानिस्तान लौटने के लिए विवश कर दिया तत्पश्चात उन्होंने अटक और पेशावर पर भी अपने थाने लगा दिए। अहमद शाह दुर्रानी को ही नहीं अपितु संपूर्ण उत्तर भारत की शक्तियों को मराठों से संकट पैदा हो गया जिसमें अवध के नवाब सुजाउद्दौला और रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दोला भी सम्मिलित थे।
अहमद शाह दुर्रानी जो कि दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक था और 1747 में राज्य का सुल्तान बना था। सभी ने अहमदशाह को भारत में आने का न्योता दिया। जब यह समाचार मराठों के पास पहुंंचा तो 1757 को पेशावर में दत्ताजी सिंधिया, जिन्हें पेशवा बालाजी बाजीराव ने वहाँ पर नियुक्त किया था उन्होंने कार्रवाई की परंतु अफगान सेना और शूजाउद्दौला आदि ने यह धोखे से मार दिया ।
उस वक्त सदाशिव राव भाऊ जो की पानीपत के युद्ध के नायक थे, उदगीर में थे जहाँ पर उन्होंने 1759 में निजाम की सेनाओं को हराया था जिसके बाद उनके ऐश्वर्य में काफी वृद्धि हुई और वह मराठा साम्राज्य की सबसे ताकतवर सेनापति में गिने जाने लगे। इसलिए बालाजी बाजी राव ने अहमदशाह से लड़ने के लिए भी उन्हें ही चुना।
अफ़गानों की कुंजपुरा में हार
[संपादित करें]सदाशिवराव भाऊ अपनी समस्त सेना को उदगीर से लेकर सीधे दिल्ली की ओर रवाना हो गए जहाँ वे लोग 1760 ईस्वी में दिल्ली पहुंचे। उस वक्त अहमद शाह अब्दाली दिल्ली पार करके अनूप शहर यानी दोआब में पहुँच चुका था और वहाँ पर उसने अवध के नवाब सुजाउदौला और रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दौला ने उसको रसद पहुंचाने का काम किया।
इधर जब मराठे दिल्ली में पहुंचे तो उन्होंने लाल किला जीत लिया जिसके बाद उन्होंने कुंजपुरा के किले पर हमला कर दिया । कुंजपुरा में अफगान को पूरी तरह तबाह करके उनसे सभी सामान और खाने-पीने की आपूर्ति मराठों को हो गई । मराठों ने लाल किले की चांदी की चादर को भी पिघला कर उससे भी धन अर्जित कर लिया ।
युद्ध
[संपादित करें]उस वक्त मराठों के पास उत्तर भारत में दिल्ली ही धनापूर्ति का एकमात्र साधन थी परंतु बाद में अब्दाली को रोकने के लिए यमुना नदी के पहले उन्होंने एक सेना तैयार की थी,परंतु अहमदशाह ने नदी पार कर ली । अक्टूबर के महीने में और किसी गद्दार की गद्दारी की वजह से मराठों कि वास्तविक जगह और स्तिथी का पता लगाने में सफल रहा ।
जब मराठों कि सेना वापिस मराठवाड़ा जा रही थी तो उन्हें पता चला कि अब्दाली उनका पीछा कर रहा है, तब उन्होंने युद्ध करने का निश्चय किया। अब्दाली ने दिल्ली और पुणे के बीच मराठों का संपर्क काट दिया । मराठों ने भी अब्दाली का संंपर्क काबुल से काट दिया। इस तरह तय हो गया था कि जिस भी सेना को पूर्ण रूप से अन्न जल की आपूर्ति होती रहेगी वह युद्ध जीत जाएगी ।
करीब डेढ़ महीने की मोर्चा बंदी के बाद 14 जनवरी सन् 1761 को बुधवार के दिन सुबह 8:00 बजे यह दोनों सेनाएं आमने-सामने युद्ध के लिए आ गई ।
मराठों को रसद की आमद हो नहीं रही थी और उनकी सेना में भुखमरी फैलती जा रही थी, परंतु अहमदशाह को अवध और रूहेलखंड से रसद की आपूर्ति हो रही थी ।
विश्वासराव को करीब 1:00 से 2:30 के बीच एक गोली शरीर पर लगी और वह गोली इतिहास को परिवर्तित करने वाली साबित हुई । जब सदाशिवराव भाऊ अपने हाथी से उतर कर विश्वासराव को देखने के लिए मैदान में पहुंचे तो उन्होंने विश्वासराव को मृत पाया ।
इधर जब बाकी मराठा सरदारों ने देखा कि सदाशिवराव भाऊ अपने हाथी पर नहीं है तो पूरी सेना में हड़कंप मच गया, जिससे सेना का कमान ना होने के कारण पूरी सेना में अफरा तफरी मच गई और सारे सैनिक भागने लगे । इसी भगदड़ में कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए परंतु भाऊ सदाशिवराव अपनी अंतिम श्वास तक लड़ते रहे ।
इस युद्ध में शाम तक आते-आते पूरी मराठा सेना खत्म हो गई । अब्दाली ने इस मौके को एक सबसे अच्छा मौका समझा और 15000 सैनिक जो कि आरक्षित थे उनको युद्ध के लिए भेज दिया और उन 15000 सैनिकों ने बचे-खुचे मराठा सैनिक जो सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में थे उनको खत्म कर दिया ।
मल्हारराव होळकर वहाँ से पेशवा के वचन के कारण साथ गई 20 मराठा स्त्रियों को युद्ध से सुरक्षित बडी ही कूटनीति से निकालकर लाए । सिंधिया और नाना फडणवीस भी यहाँ से भाग निकले । उनके अलावा और कई महान सरदार जैसे विश्वासराव पेशवा, सदाशिवराव भाऊ तथा जानकोजी सिंधिया भी इस युद्ध में मारे गए । इब्राहिम खान गार्दी जो कि मराठा तोपखाने की कमान संभाले हुए थे उनकी भी इस युद्ध में बहुत बुरी तरीके से मौत हो गई और कई दिनों बाद सदाशिवराव भाऊ और विश्वासराव का शरीर मिला ।
युद्ध के बाद हुआ नरसंहार
[संपादित करें]मराठा वास्तव में महान था।
इसके साथ 40000 तीर्थयात्रियों जो मराठा सेना के साथ उत्तर भारत यात्रा करने के लिए गये थे उनको पकड़ कर उनका कत्लेआम करवा दिया। पानी पिला पिला कर उनका वध कर दिया गया। एक लाख से ज्यादा लोग युद्ध में मारे गए ।
यह बात जब पुणे पहुंची तब बालाजी बाजीराव के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा और वह बहुत बड़ी सेना लेकर पानीपत की ओर चल पड़े । जब अहमद शाह दुर्रानी को यह खबर लगी तो उसने खुद को रोक लेना ही सही समझा क्योंकि उसकी सेना में भी हजारों का नुकसान हो चुका था, और वह सेना जो अभी नहीं लड सकती थी । इसलिए उसने 10 फरवरी,1761 को पेशवा को पत्र लिखा कि "मैं जीत गया हूँ लेकिन दिल्ली की गद्दी नहीं लूगा, आप ही दिल्ली पर राज करें मैं वापस जा रहा हूँ।"
अब्दााली का भेजा पत्र बालाजी बाजीराव ने पत्र पढ़ा और वापस पुणे लौट गए । परंतु थोड़े में ही 23 जून 1761 को मानसिक अवसाद के कारण उनकी मृत्यु हो गई, क्योंकि इस युद्ध में उन्होंने अपना पुत्र और अपने कई मराठा सरदारों को खो दिया था ।
मराठों का पुनरुत्थान
[संपादित करें]1761 में माधवराव द्वितीय पेशवा बने और उन्होंने महादाजी सिंधिया और नाना फडणवीस की सहायता से उत्तर भारत में अपना प्रभाव फिर से जमा लिया । 1761 से 1772 तक उन्होंने वापस रोहिलखंड पर आक्रमण किया और नजीबउद्दौला के पुत्र को भयानक रूप से पराजित किया ।
इस युद्ध में मराठी ने पूरे रोहिल्लखंड को ध्वस्त कर दिया तथा नजीबउद्दौला कब्र को भी तोड़ दिया । संपूर्ण भारत पर एक बार फिर मराठा परचम फैल गया और उन्होंने दिल्ली में फिर से मुगल सम्राट शाह आलम को राजगद्दी पर बैठाया और पूरे भारत पर शासन करना फिर से प्रारंभ कर दिया ।
महादाजी सिंधिया और नाना फडणवीस का मराठा पुनरुत्थान में बहुत बड़ा योगदान है और माधवराव पेशवा की वजह से ही यह सब हो सका । इस प्रकार मराठा साम्राज्य का पुनरुत्थान हुआ और कालांतर में मराठों ने ब्रिटिश को भी पराजित किया और सालाबाई की संधि की ।
आधुनिक इतिहास की दृष्टि से
[संपादित करें]पानीपत का युद्ध भारत के इतिहास का सबसे काला दिन रहा। और इसमें कई सारे महान सरदार मारे गए जिस देश के लिए लड़ रहे थे और अपने देश के लिए लड़ते हुए सभी श्रद्धालुओं की मौत हो गई इसमें सदाशिवराव भाऊ, शमशेर बहादुर, इब्राहिम खान गार्दी, विश्वासराव, जानकोजी सिंधिया की भी मृत्यु हो गई।इस युद्ध के बाद खुद अहमद शाह दुर्रानी ने मराठों की वीरता को लेकर उनकी काफी तारीफ की और मराठों को सच्चा देशभक्त भी बताया।
इस युद्ध में मराठा के लगभग सभी छोटे-बड़े सरदार मारे गए इस संग्राम पर टिप्पणी करते हुए जे.एन.सरकार जादुनाथ सरकार ने लिखा है इस देशव्यापी विपत्ति में संम्भवत महाराष्ट्र का कोई ऐसा परिवार ने होगा जिसका कोई न कोई सदस्य इस युद्ध में मारा न गया हो ।
मराठों की पराजय के कारण
[संपादित करें]मराठों की पराजय का एक कारण तो यही माना जाता है कि पेशवा बालाजी बाजीराव ने रघुनाथ राव, महादजी सिंधिया अथवा मल्हार राव होलकर के बदले भाऊ सदाशिवराव को सेनापति बना कर भेजा । जबकि उपरोक्त तीनों ही उस समय उत्तर भारत में मराठा सेना का नेतृत्व करने में सक्षम थे,
प्रभाव
[संपादित करें]- मराठों की दुर्गति
- अहमदशाह की अन्तिम विजय
- नानासाहेब की मृत्यु
- मुगलों की दुर्दशा
- अंग्रेजों के प्रभाव में वृद्धि
- सिख सत्ता की स्थापना
- हैदर अली का उदय
- माधवरा
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Appachu, Bollachettira Dhyan (2020). Arya Dharma: The Noble Dharma (अंग्रेज़ी में). Notion Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-64678-786-9. अभिगमन तिथि 7 फरवरी 2023.
पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली व मराठों के बीच 14जनवरी1761को सुबह 8:00बजे लङा गया जिसमे अहमद शाह अब्दाली की जीत हुई।