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विषुव (खगोलीय निर्देशांक)

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विषुव के दौरान पृथ्वी बिजली

खगोलशास्त्र में विषुव (equinox) समय के उस क्षण को कहते हैं जिसके आधार पर किसी खगोलीय निर्देशांक प्रणाली (celestial coordinate system) के तत्वों की परिभाषा की जाती है। उदाहरण के लिए भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली ऐसी एक प्रकार की पद्धति है और इसमें खगोलीय मध्य रेखा, खगोलीय ध्रुव और बसंत विषुव की दिशा को पहले से तय करके किसी भी वस्तु का स्थान इनके हिसाब से लगाया जाता है। ध्यान रहे कि समय के साथ यह सभी बदलते रहते हैं इसलिए किसी खगोलीय निर्देशांक प्रणाली में एक समय को मानक मानकर उसी के आधार पर निर्देशांक बताये जाते हैं। 'विषुव' युग से अलग चीज़ है क्योंकि युग वह समय होता है कि जब किसी खगोलीय वस्तु की स्थिति मापी गई हो।

तुलना के ज़रिये 'विषुव' और 'युग' का विश्लेषण

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'विषुव' और 'युग' को समझने के लिए एक सरल तुलना दी जा सकती है। फ़र्ज़ कीजिये की एक अनंत विस्तृत मैदान पर व्यक्ति 'अमित' खड़ा है लेकिन वह निरंतर चल रहा है। यह भी कल्पना कीजिये कि बहुत से अन्य व्यक्ति 'क', 'ख', 'ग', 'घ', इत्यादि भी उस मैदान पर है और वे भी निरंतर जगह-से-जगह चल रहे हैं। अब अगर हम चाहें तो 'अमित' पर आधारित एक आसान-सी निर्देशांक पद्धति बना सकते हैं। हम यह कह सकते हैं कि १५ मार्च २०१२ को ठीक पाँच बजे जहाँ 'अमित' था, वही हमारी निर्देशांक प्रणाली का केंद्र है। यह क्षण 'विषुव' कहलाएगा। अब हम किसी भी अन्य क्षण पर अन्य वस्तुओं के स्थान को बता सकते हैं। हम कह सकते हैं कि २० मार्च २०१२ को ठीक नौ बजे व्यक्ति 'ख' अमित के विषुव वाले स्थान से १० मीटर मुख की ओर और ८ मीटर दाई ओर था। यह समय 'युग' कहलाएगा। ध्यान दें कि 'युग' के क्षण में 'अमित' वहाँ से हिल चुका था जहाँ से निर्देशांक बताए जा रहें हैं लेकिन स्पष्टता से स्थिति बताने के लिए 'अमित' के 'विषुव' के क्षण वाले स्थान को ही मूल केंद्र बनाकर सभी स्थितियाँ बताई जा रहीं हैं।

खगोलशास्त्र में वस्तुओं की स्थितियाँ इसी तरह बताई जाती हैं। काफ़ी समय तक यह स्थितियाँ बिलकुल ठीक तो नहीं लेकिन काफ़ी हद तक ठीक होती हैं। लेकिन कई सालों के बाद यह इतनी अलग हो जाती हैं कि खगोलशास्त्री नए विषुव और युग का चुनाव करके अपनी स्थानीय तालिकाओं का अद्यतन कर लेते हैं। आमतौर पर नए चुने जाने वाले विषुव और युग के क्षणों को नाम दिए जाते हैं।

खगोलशास्त्रियों द्वारा वर्तमान में इस्तेमाल होने वाले विषुव का नाम J2000.0 है और यह १ जनवरी २००० के दोपहर के १२ बजे का क्षण है। इस से पहले प्रयोग होने वाले मानक विषुव का नाम B1950.0 था।[1]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Astronomy on the Personal Computer, Oliver Montenbruck, Thomas Pfleger, pp. 20, Springer, 2009, ISBN 978-3-540-67221-0.