"हरिजन सेवक संघ": अवतरणों में अंतर

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# - साथ ही उपरोक्त दोनों कार्यों के लिए जोर.जबरदस्ती का प्रयोग न किया जाय बल्कि केवल शान्तिपूर्वक समझाते. बुझाते हुए यह प्रयास किया जाय।
# - साथ ही उपरोक्त दोनों कार्यों के लिए जोर.जबरदस्ती का प्रयोग न किया जाय बल्कि केवल शान्तिपूर्वक समझाते. बुझाते हुए यह प्रयास किया जाय।
इन्ही विनिश्चयन के अनुसार अश्पृश्यता विरोधी मंडल नाम की अखिल भारतीय संस्था बनाई गयी जिसका मूल संविधान महात्मा गांधी ने अपनी हस्तलिपि में तैयार किया।
इन्ही विनिश्चयन के अनुसार अश्पृश्यता विरोधी मंडल नाम की अखिल भारतीय संस्था बनाई गयी जिसका मूल संविधान महात्मा गांधी ने अपनी हस्तलिपि में तैयार किया।
यही संस्था आगे चलकर ष्हरिजन सेवक संघष् कहलाई जिसका मुख्यालय किंग्सवे कैम्प दिल्ली में स्थापित है।
यही संस्था आगे चलकर [[हरिजन सेवक संघ]] कहलाई जिसका मुख्यालय किंग्सवे कैम्प दिल्ली में स्थापित है।
इस संघ का प्रथम प्रमुख श्री घनश्यामदास जी बिरला को नियुक्त किया गया तथा इसके पहले मंत्री बने श्री अमृतलाल बिट्टालदास ठक्कर जी ठक्कर बाबा के नाम से जाने जाते हैं।
इस संघ का प्रथम प्रमुख [[श्री घनश्यामदास बिड़ला]] को नियुक्त किया गया तथा इसके पहले मंत्री बने श्री अमृतलाल बिट्टालदास ठक्कर जी ठक्कर बाबा के नाम से जाने जाते हैं।
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== हरिजन शब्द ==
== हरिजन शब्द ==

10:29, 17 जुलाई 2021 का अवतरण

हरिजन सेवक संघ की स्थापना 30 सितम्बर 1932 को एक अखिल भारतीय संगठन के रूप में हुई थी। पहले इस संगठन का नाम अस्पृश्यता निवारण संघ रखा गया था, जिसे 13 सितम्बर 1933 को हरिजन सेवक संघ नाम दिया गया| इसके प्रथम अध्यक्ष प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्यामदास बिड़ला तथा सचिव अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर[1] हुए| संघ का मुख्यालय गाँधी आश्रम, किंग्सवे कैम्प, दिल्ली में है। इसकी शाखाएँ भारत में लगभग सभी राज्यों में हैं। वर्तमान में इसके अध्यक्ष शंकर कुमार सान्याल हैं।[2]

इतिहास

महात्मा गाँधी ने पुणे की यरवदा जेल में रहते हुए ब्रिटिश सरकार द्वारा दलितों के लिए पृथक निर्वाचन की पद्धति स्वीकृत किये जाने के विरुद्ध 20 सितम्बर 1932 को उपवास शुरू किया|[3] महात्मा गाँधी तथा ब्रिटिश सरकार के बीच हुए पत्र-व्यवहार के प्रकाशित होते ही उनके 20 सितम्बर से उपवास शुरू होने की खबर अख़बारों में आ गयी, जिसकी देशभर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई| 15 सितम्बर को बम्बई सरकार को भेजे अपने वक्तव्य में महात्मा गाँधी ने कहा, " उपवास का निर्णय ईश्वर के नाम पर, उसके काम से और जैसा मैं नम्रतापूर्वक मानता हूँ उसके आदेशानुसार किया गया है| इस उपवास का मुख्य हेतु सच्चा धार्मिक कार्य करने के लिए हिन्दूओं की आत्मा को सतेज बनाना है| अस्पृश्य वर्गों का सवाल मुख्यतः धार्मिक होने के करण मै इसे खास अपना प्रश्न मानता हूँ|" एक ओर उस सरकारी निर्णय को बदलने की देशव्यापी माँग सामने आयी तो दूसरी ओर अस्पृश्यता को समाप्त करने की भावना जागृत हुई| इसका हल निकालने के लिए राष्ट्रीय नेताओं की कई बैठकें हुई, जिसका परिणाम यरवदा करार, जिसे पूना पैक्ट भी कहते हैं, के रूप में सामने आया| इस करार पर 24 सितम्बर 1932 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर और एम. सी. राजा ने दलितों की ओर से तथा पं. मदन मोहन मालवीय ने सवर्ण हिन्दुओं की ओर से हस्ताक्षर किए| इस समझौते के साथ ही हरिजन सेवक संघ अस्तित्व में आया तथा दलितों को हरिजन जैसा पवित्र नाम मिला|[4]

यरवदा करार

24 सितम्बर 1932 को यरवडा जेल में बन्द गांधी के सामने भारत के दलितों की ओर से डॉ भीमराव अम्बेडकर और एम सी राजा द्वारा तथा सवर्ण हिन्दुओं की ओर से मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर कर ऐक करार किया जिसके अंतरगत सांप्रदायिक अधिनिर्णय में संशोधन के साथ दलित वर्ग के लिये प्रथक निर्वाचन मंडल को त्याग कर प्रान्तीय विधान मंडलों में 71 के स्थान पर 147 स्थान और केन्द्रीय विधायिका में कुल सीटों की 18 प्रतिशत सीटें दी गयी। तदोपरान्त 26 सितम्बर 1932 को रवीन्द्रनाथ ठाकुर की उपस्थिति में गांधी जी ने यह कहते हुये अपना उपवास तोडा उचित समय के अन्दर अस्पृश्यता निवारण सम्बन्धी सुधार यदि नेकनीयती के साथ न पूरा किया गया तो मुझे निश्चय ही फिर नये सिरे से उपवास करना पडेगा। परन्तु इस विषय पर गांधी जी को पुनः उपवास करने की आवश्यकता नहीं पडी क्योकि चौथे दिन 30 सितंबर 1932 को बम्बई में मदन मोहन मालवीय जी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें देश के सभी हिन्दू नेताओं ने निश्चय किया कि अस्पृश्यता निवारण के लिए एक अखिल भारतीय अस्पृश्यता विरोधी मंडल एंटी अनटचेनिलिटी लीग स्थापित किया जाय जिनका प्रधान कार्यालय दिल्ली में हो तथा जिसकी शाखायें विभिन्न प्रांतों में स्थापित हों साथ ही जो अस्पृश्यता उन्मूलन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए निम्न कार्यक्रम चलाये.

  1. - सभी सार्वजनिक कुएँ धर्मशालाओ सड़कों स्कूल शमशान घाट इत्यादि दलित वर्ग के लिए खुले घोषित किये जायें।
  2. - सार्वजनिक मंदिर उनके लिए खोल दिए जायँ।
  3. - साथ ही उपरोक्त दोनों कार्यों के लिए जोर.जबरदस्ती का प्रयोग न किया जाय बल्कि केवल शान्तिपूर्वक समझाते. बुझाते हुए यह प्रयास किया जाय।

इन्ही विनिश्चयन के अनुसार अश्पृश्यता विरोधी मंडल नाम की अखिल भारतीय संस्था बनाई गयी जिसका मूल संविधान महात्मा गांधी ने अपनी हस्तलिपि में तैयार किया। यही संस्था आगे चलकर हरिजन सेवक संघ कहलाई जिसका मुख्यालय किंग्सवे कैम्प दिल्ली में स्थापित है। इस संघ का प्रथम प्रमुख श्री घनश्यामदास बिड़ला को नियुक्त किया गया तथा इसके पहले मंत्री बने श्री अमृतलाल बिट्टालदास ठक्कर जी ठक्कर बाबा के नाम से जाने जाते हैं। [5]

हरिजन शब्द

महात्मा गाँधी ने अपने वक्तव्य में हरिजन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया तथा लिखा, " हिन्दुस्तान में जो सबसे सबसे अधिक दुःख में पड़े हुए हैं, उन्हें हरिजन कहना यथार्थ है| हरिजन का अर्थ है, ईश्वर का भक्त, ईश्वर का प्यारा| अपने एक भजन में भक्तकवि नरसी मेहता ने अस्पृश्य भाइयों का उल्लेख हरिजन पद से किया है| इस दृष्टि से अस्पृश्य भाइयों के लिए हरिजन शब्द उपयुक्त है, ऐसा मैं मानता हूँ|" मोरोपंत-ग्रंथावली के सम्पादक-प्रकाशक आर. डी. पराड़कर ने भी मोरोपंत के एक प्रमाणिक पद्य में हरिजन पद को देखा तथा महात्मा गाँधी को बताया| उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा कि नरसी मेहता जैसे ही प्रमाण अन्य संतों की रचनाओं में पाए जाते हैं| हरिजन नाम अस्पृश्य, अंत्यज आदि नामों की घृणाभाव से मुक्त था, इसलिए इस नाम को तुरन्त सामाजिक स्वीकृति भी मिल गई|

अध्यक्ष

हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष

  1. घनश्याम दास बिड़ला सितम्बर 1932 से अप्रैल, 1959 तक
  2. रामेश्वरी नेहरुअप्रैल,1959 से नवम्बर , 1965 तक
  3. वियोगी हरि नवम्बर 1965 से मई , 1975 तक
  4. श्यामलाल जून , 1975 से अक्टूबर , 1978 तक
  5. आर. के. यार्डे दिसम्बर , 1978 से अप्रैल, 1983 तक
  6. निर्मला देशपांडे जून , 1983 से मई , 2008 तक
  7. राधाकृष्ण मालवीय मई , 2008 से फरवरी , 2013 तक
  8. शंकर कुमार सान्याल[6] अप्रैल, 2013 से अबतक

सचिव

हरिजन सेवक संघ के सचिव

  1. अमृतलाल बिट्टालदास ठक्कर सितम्बर 1932 से जनवरी , 1951 तक
  2. वियोगी हरि जनवरी , 1951 से अप्रैल, 1959 तक
  3. के ऐस श्रीवाम अप्रैल,1959 से अप्रैल, 1962 तक
  4. जीवन लाल जैरामदास अप्रैल,1962 से अप्रैल, 1973 तक
  5. शंकरलाल जोशी अप्रैल,1973 से जुलाई , 1980 तक
  6. मानक चन्द कटारिया जून, 1976 से अक्टूबर,1977 तक
  7. चितरन्जन देव अक्टूबर, 1980 से जुलाई,1982 तक
  8. बसन्तराव ईग्ले मार्च ,1982 से अगस्त, 1983 तक
  9. बलराम दास जुलाई , 1983 से अक्टूबर,1985 तक
  10. लक्ष्मी दास अगस्त.,1983 से दिसम्बर,1988 तक
  11. ऐ अवैयान नवम्बर,1985 से दिसम्बर,1988 तक
  12. आनन्दी भाई मई , 1988 से दिसम्बर,1991 तक
  13. प्रशान्त मोहन्ती दिसम्बर,1988 से जुलाई ,1991 तक
  14. जटा शंकर फरवरी,19 91 से मई ,1993 तक
  15. डीऐन बैनर्जी जुलाई ,1992 से जनवरी,1998 तक
  16. रमेश भाई जून,1993 से मई ,2008 तक
  17. ऐम ऐम जोशी जनवरी . 1998 से अप्रैल,1999 तक
  18. ऐन वासुदेवन दिसम्बर, 1999 से जनवरी ,2004 तक
  19. हीरापौल गंगनेगी फरवरी, 2004 से ....तक
  20. लक्ष्मीदास अगस्त, 2008 से ....तक
  21. रजनीश कुमार मई २०१६ से अबतक
  22. डॉ.रमेश कुमार जून २०१९ से अबतक

प्रान्तीय व अन्य इकाइयां

  1. हरिजन सेवक संध की महिला संभाग की अध्यक्षा सुश्री उर्मिला श्रीवास्तव है। [7]
  2. संपादक श्री लक्ष्मी दास जी द्वारा संघ की पत्रिका हरिजन सेवा का नियमित प्रकाशन किया जाता है। [8]
  3. उत्तर प्रदेश राज्य सहित देश के 26 राज्यों में हरिजन सेवक संघ की प्रादेशिक इकाइयां स्थापित हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश इकाई की अध्यक्षा सुश्री कुसुम जौहरी तथा उपाध्यक्ष अशोक कुमार शुक्ला हैं। उत्तर प्रदेश इकाई का अधिकारिक प्रादेशिक फेसबुक हैन्डिल है।[9]
  4. हरिजन सेवक संघ के रचनात्मक कार्यों को व्यापक आयाम देने हेतु विश्व भर के रचनात्मक संगठनों तथा रचनात्मक कार्यकर्त्ताओं से संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से 17 जून 2017 को माइक्रो नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर हरिजन सेवक संघ का आधिकारिक हैंडल प्रारम्भ हुआ।[10]

सन्दर्भ

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2017.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 मई 2017.
  3. [1]
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2017.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2017.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 जून 2017.
  7. [2]
  8. [3]
  9. [4]
  10. [5]

इन्हें भी देखें