"रामचरित उपाध्याय": अवतरणों में अंतर
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श्री रामचरित उपाध्याय का जन्म सन् १८७२ में [[उत्तर प्रदेश]] के [[गाजीपुर]] जिले में हुआ था। प्रारंभ में ये [[ब्रजभाषा]] में [[कविता]] करते थे। आचार्य [[महावीरप्रसाद द्विवेदी]] जी के प्रोत्साहन से इन्होंने [[खड़ी बोली]] में रचना प्रारंभ की और इनकी रचनाएँ '[[सरस्वती]]' तथा हिंदी की अन्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं। यह राष्ट्रीय जागरण का युग था। इन्होंने '[[भारत भक्ति]] ', '[[भव्य भारत]] ' तथा '[[राष्ट्रभारती]] ' जैसी युगानुरूप रचनाएँ करके राष्ट्रीय जागरण में योगदान दिया। |
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इन्होंने '[[रामचरित चिंतामणि]] ' नामक प्रबंध काव्य की भी रचना की। युग की चेतनना से स्पंदित होकर राम के लोकोत्तर रूप का चित्रण न करके मानवीय रूप की प्रतिष्ठा की। इस प्रकार इस काव्य के पौराणिक पात्र अतीत काल के प्राणी न रहकर आधुनिक विचारधारा और विकासोन्मुख जीवन से ओतप्रोत हैं। इन्होंने [[सूक्ति]] एवं नीति के पद्य भी लिखे, जिनका संग्रह '[[सूक्ति मुक्तावली]]' नामक पुस्तक में हुआ है। इन्होंने [[महाभारत]] की कथा के आधार पर एक महिलोपयोगी उपन्यास '[[देवी द्रौपदी]]' की भी रचना की। अपनी बहुमुखी साहित्यसेवा के कारण द्विवेदी युग के साहित्यकारों में इनका विशिष्ट साहित्य सेवा के कारण में इनका विशिष्ट स्थान है। |
इन्होंने '[[रामचरित चिंतामणि]] ' नामक प्रबंध काव्य की भी रचना की। युग की चेतनना से स्पंदित होकर राम के लोकोत्तर रूप का चित्रण न करके मानवीय रूप की प्रतिष्ठा की। इस प्रकार इस काव्य के पौराणिक पात्र अतीत काल के प्राणी न रहकर आधुनिक विचारधारा और विकासोन्मुख जीवन से ओतप्रोत हैं। इन्होंने [[सूक्ति]] एवं नीति के पद्य भी लिखे, जिनका संग्रह '[[सूक्ति मुक्तावली]]' नामक पुस्तक में हुआ है। इन्होंने [[महाभारत]] की कथा के आधार पर एक महिलोपयोगी उपन्यास '[[देवी द्रौपदी]]' की भी रचना की। अपनी बहुमुखी साहित्यसेवा के कारण द्विवेदी युग के साहित्यकारों में इनका विशिष्ट साहित्य सेवा के कारण द्विवेदी युग के साहित्यकारों में इनका विशिष्ट स्थान है। |
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== कविताएँ == |
== कविताएँ == |
13:41, 5 अक्टूबर 2019 का अवतरण
रामचरित उपाध्याय हिन्दी कवि एवं साहित्यकार थे।
श्री रामचरित उपाध्याय का जन्म सन् १८७२ में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ था। प्रारंभ में ये ब्रजभाषा में कविता करते थे। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के प्रोत्साहन से इन्होंने खड़ी बोली में रचना प्रारंभ की और इनकी रचनाएँ 'सरस्वती' तथा हिंदी की अन्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं। यह राष्ट्रीय जागरण का युग था। इन्होंने 'भारत भक्ति ', 'भव्य भारत ' तथा 'राष्ट्रभारती ' जैसी युगानुरूप रचनाएँ करके राष्ट्रीय जागरण में योगदान दिया।
इन्होंने 'रामचरित चिंतामणि ' नामक प्रबंध काव्य की भी रचना की। युग की चेतनना से स्पंदित होकर राम के लोकोत्तर रूप का चित्रण न करके मानवीय रूप की प्रतिष्ठा की। इस प्रकार इस काव्य के पौराणिक पात्र अतीत काल के प्राणी न रहकर आधुनिक विचारधारा और विकासोन्मुख जीवन से ओतप्रोत हैं। इन्होंने सूक्ति एवं नीति के पद्य भी लिखे, जिनका संग्रह 'सूक्ति मुक्तावली' नामक पुस्तक में हुआ है। इन्होंने महाभारत की कथा के आधार पर एक महिलोपयोगी उपन्यास 'देवी द्रौपदी' की भी रचना की। अपनी बहुमुखी साहित्यसेवा के कारण द्विवेदी युग के साहित्यकारों में इनका विशिष्ट साहित्य सेवा के कारण द्विवेदी युग के साहित्यकारों में इनका विशिष्ट स्थान है।
कविताएँ
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