"तत्त्वमीमांसा": अवतरणों में अंतर

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एक स्पष्टीकरण
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2. अंतिम सत्ता का स्वरूप क्या है? वह एक प्रकार की है, या एक से अधिक प्रकार की?
2. अंतिम सत्ता का स्वरूप क्या है? वह एक प्रकार की है, या एक से अधिक प्रकार की?

तत्व का तात्पर्य दो तरह का है: एक तो यह कि वस्तु का निर्माण जिन घटकों से हुआ है और दूसरा यह कि वस्तु की आत्यन्तिकता क्या है। एक तात्पर्य वस्तु को तोड़ते हुए उसके सबसे सूक्ष्म तक पहुचने को कहता है तो दूसरा उसका विलय करते हुए सबसे व्यापक विलायक को तत्व की संज्ञा देता है। कुछ मनीषी ( उपनिषद्, हीगेल, लाइब्नित्ज, आदि......कुछ हद तक) तो इस तरह के भेद को शून्य करते हुए अणिमा - और महिमा - तत्व की अनन्यता का प्रतिपादन करते हैं।


<ref>tatva mimansa</ref>== इन्हें भी देखें ==
<ref>tatva mimansa</ref>== इन्हें भी देखें ==

13:19, 11 मई 2013 का अवतरण

तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), दर्शन की वह शाखा है जो किसी ज्ञान की शाखा के वास्तविकता (reality) का अध्ययन करती है। परम्परागत रूप से इसकी दो शाखाएँ हैं - ब्रह्माण्ड विद्या (Cosmology) तथा आन्टोलॉजी (ontology)।

तत्वमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ये हैं-

1. ज्ञान के अतिरिक्त ज्ञाता और ज्ञेय का भी अस्तित्व है या नहीं?

2. अंतिम सत्ता का स्वरूप क्या है? वह एक प्रकार की है, या एक से अधिक प्रकार की?

तत्व का तात्पर्य दो तरह का है: एक तो यह कि वस्तु का निर्माण जिन घटकों से हुआ है और दूसरा यह कि वस्तु की आत्यन्तिकता क्या है। एक तात्पर्य वस्तु को तोड़ते हुए उसके सबसे सूक्ष्म तक पहुचने को कहता है तो दूसरा उसका विलय करते हुए सबसे व्यापक विलायक को तत्व की संज्ञा देता है। कुछ मनीषी ( उपनिषद्, हीगेल, लाइब्नित्ज, आदि......कुछ हद तक) तो इस तरह के भेद को शून्य करते हुए अणिमा - और महिमा - तत्व की अनन्यता का प्रतिपादन करते हैं।


[1]== इन्हें भी देखें ==

बाहरी कड़ियाँ

  1. tatva mimansa