"नवाब मिर्ज़ा खान दाग़": अवतरणों में अंतर

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'''नवाब मिर्जा खाँ 'दाग़' ''', [[उर्दू]] के प्रसिद्ध कवि थे। इनका जन्म सन् 1831 में [[दिल्ली]] में हुआ। इनके पिता शम्सुद्दीन खाँ नवाब लोहारू के भाई थे। जब दास पाँच छह वर्ष के थे तभी इनके पिता मर गए। इनकी माता ने बहादुर शाह "ज़फर" के पुत्र मिर्जा फखरू से [[विवाह]] कर लिया, तब यह भी दिल्ली में [[लाल किला|लाल किले]] में रहने लगे। यहाँ दाग को हर प्रकार की अच्छी शिक्षा मिली। यहाँ यह कविता करने लगे और [[जौक़]] को [[गुरु]] बनाया। सन् 1856 में मिर्जा फखरू की मृत्यु हो गई और दूसरे ही वर्ष बलवा आरंभ हो गया, जिससे यह [[रामपुर]] चले गए। वहाँ युवराज नवाब कलब अली खाँ के आश्रय में रहने लगे। सन् 1887 ई. में नवाब की मृत्यु हो जाने पर यह रामपुर से दिल्ली चले आए। घूमते हुए दूसरे वर्ष [[हैदराबाद]] पहुँचे। पुन: निमंत्रित हो सन् 1890 ई. में यह हैदराबाद गए और निज़ाम के कवितागुरु नियत हो गए। इन्हें यहाँ धन तथा सम्मान दोनों मिला और यहीं सन् 1905 ई. में फालिज से इनकी मृत्यु हुई। यह शीलवान, विनम्र, विनोदी तथा स्पष्टवादी थे और सबसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करते थे।
'''नवाब मिर्जा खाँ 'दाग़' ''', [[उर्दू]] के प्रसिद्ध कवि थे। इनका जन्म सन् 1831 में [[दिल्ली]] में हुआ। इनके पिता शम्सुद्दीन खाँ नवाब लोहारू के भाई थे। जब दाग़ पाँच-छह वर्ष के थे तभी इनके पिता मर गए। इनकी माता ने बहादुर शाह "ज़फर" के पुत्र मिर्जा फखरू से [[विवाह]] कर लिया, तब यह भी दिल्ली में [[लाल किला|लाल किले]] में रहने लगे। यहाँ दाग़ को हर प्रकार की अच्छी शिक्षा मिली। यहाँ ये कविता करने लगे और [[जौक़]] को [[गुरु]] बनाया। सन् 1856 में मिर्जा फखरू की मृत्यु हो गई और दूसरे ही वर्ष बलवा आरंभ हो गया, जिससे यह [[रामपुर]] चले गए। वहाँ युवराज नवाब कल्ब अली खाँ के आश्रय में रहने लगे। सन् 1887 ई. में नवाब की मृत्यु हो जाने पर ये रामपुर से दिल्ली चले आए। घूमते हुए दूसरे वर्ष [[हैदराबाद]] पहुँचे। पुन: निमंत्रित हो सन् 1890 ई. में दाग़ हैदराबाद गए और निज़ाम के कविता गुरु नियत हो गए। इन्हें यहाँ धन तथा सम्मान दोनों मिला और यहीं सन् 1905 ई. में फालिज से इनकी मृत्यु हुई। दाग़ शीलवान, विनम्र, विनोदी तथा स्पष्टवादी थे और सबसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करते थे।


गुलजारे दाग, आफ्ताबे, दाग, माहतादे दाग तथा यादगारे दाग इनके चार दीवान हैं, जो सभी प्रकाशित हो चुके हैं। 'फरियादे दाग', इनकी एक [[मसनबी]] (खंडकाव्य) है। इनकी शैली सारल्य और सुगमता के कारण विशेष लोकप्रिय हुई। भाषा की स्वच्छता तथा प्रसाद गुण होने से इनकी कविता अधिक प्रचलित हुई पर इसका एक कारण यह भी है कि इनकी कविता कुछ सुरुचिपूर्ण भी है।
गुलजारे-दाग़, आफ्ताबे-दाग़, माहताबे-दाग़ तथा यादगारे-दाग़ इनके चार दीवान हैं, जो सभी प्रकाशित हो चुके हैं। 'फरियादे-दाग़', इनकी एक [[मसनवी]] (खंडकाव्य) है। इनकी शैली सरलता और सुगमता के कारण विशेष लोकप्रिय हुई। भाषा की स्वच्छता तथा प्रसाद गुण होने से इनकी कविता अधिक प्रचलित हुई पर इसका एक कारण यह भी है कि इनकी कविता कुछ सुरुचिपूर्ण भी है।


== बाहरी कड़ियाँ ==
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[[श्रेणी:उर्दू साहित्यकार]]
[[श्रेणी:उर्दू साहित्यकार]]
[[श्रेणी:उर्दू शायर ]]
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21:09, 21 अप्रैल 2013 का अवतरण

नवाब मिर्जा खाँ 'दाग़' , उर्दू के प्रसिद्ध कवि थे। इनका जन्म सन् 1831 में दिल्ली में हुआ। इनके पिता शम्सुद्दीन खाँ नवाब लोहारू के भाई थे। जब दाग़ पाँच-छह वर्ष के थे तभी इनके पिता मर गए। इनकी माता ने बहादुर शाह "ज़फर" के पुत्र मिर्जा फखरू से विवाह कर लिया, तब यह भी दिल्ली में लाल किले में रहने लगे। यहाँ दाग़ को हर प्रकार की अच्छी शिक्षा मिली। यहाँ ये कविता करने लगे और जौक़ को गुरु बनाया। सन् 1856 में मिर्जा फखरू की मृत्यु हो गई और दूसरे ही वर्ष बलवा आरंभ हो गया, जिससे यह रामपुर चले गए। वहाँ युवराज नवाब कल्ब अली खाँ के आश्रय में रहने लगे। सन् 1887 ई. में नवाब की मृत्यु हो जाने पर ये रामपुर से दिल्ली चले आए। घूमते हुए दूसरे वर्ष हैदराबाद पहुँचे। पुन: निमंत्रित हो सन् 1890 ई. में दाग़ हैदराबाद गए और निज़ाम के कविता गुरु नियत हो गए। इन्हें यहाँ धन तथा सम्मान दोनों मिला और यहीं सन् 1905 ई. में फालिज से इनकी मृत्यु हुई। दाग़ शीलवान, विनम्र, विनोदी तथा स्पष्टवादी थे और सबसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करते थे।

गुलजारे-दाग़, आफ्ताबे-दाग़, माहताबे-दाग़ तथा यादगारे-दाग़ इनके चार दीवान हैं, जो सभी प्रकाशित हो चुके हैं। 'फरियादे-दाग़', इनकी एक मसनवी (खंडकाव्य) है। इनकी शैली सरलता और सुगमता के कारण विशेष लोकप्रिय हुई। भाषा की स्वच्छता तथा प्रसाद गुण होने से इनकी कविता अधिक प्रचलित हुई पर इसका एक कारण यह भी है कि इनकी कविता कुछ सुरुचिपूर्ण भी है।

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