यथापूर्व स्थापन
यथापूर्व स्थापन (Postliminium) विधि से संबन्धित अधिकार है।
'पोस्टलीमिनियम' शब्द पोस्ट (बाहर) और लाइमन (दहलीज) से मिलकर बना है। प्राचीन काल में, जब कोई रोम निवासी किसी विदेशी राज्य में बंदी बना लिया जाता था, उसके वहाँ से छूटने और रोम साम्राज्य की सीमा में पुन: प्रवेश करने पर, यथार्पूव स्थापना द्वारा, उसको फिर वही अधिकार प्राप्त हो जाते थे जो पहले मिले हुए थे। रोमन विधि का यह सिद्धांत इस परिकल्पना पर आधारित था, मानो वह मनुष्य कभी बंदी बनाया ही न गया हो।
वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय विधि और जनपदीय विधि में, यथापूर्व स्थापन इस तथ्य का द्योतक है कि कोई प्रदेश, व्यक्ति और संपत्ति, युद्ध के समय शत्रु के अधिकार में आने के पश्चात्, युद्धकालीन समय में ही या उसकी समाप्ति पर, फिर अपनी मूल सत्ता (original sovereign) की पुन: मिल गए हैं। अगर कोई प्रदेश शांति-संधि द्वारा समर्तित को पुन: मिल गए हैं। अगर कोई प्रदेश शांति-संधि द्वारा समर्पित (ceded) कर दिया गया है, अथवा युद्ध में जीते जोने के पश्चात् अनुबद्ध (annexed) कर लिया गया है, तब, अगर कुछ समय पश्चात् यह प्रदेश फिर अपने पहले राज्य के पास वापस आ जाता है, तो यथापूर्व स्थापन का प्रश्न नहीं उठता। इस प्रकार यथापूर्व स्थापन का अधिकार केवल युद्ध की अवस्था में ही उत्पन्न होता है।
इस अस्थायी सैनिक परिभोग (military occupation) के बीच यदि शत्रु देश कोई ऐसा काम करता है जो न्यायानुकूल है, जो यथापूर्ण स्थापन के अधिकार का उपयोग संभव नहीं है, उदाहरणार्थ यदि वह कोई साधारण कर लगाये, अथवा किसी दंडनीय व्यक्ति को दंड दे। फिर भी यह अवस्था केवल उस समय तक लागू है जब तक कि वह प्रदेश उस परिभोगी के अधिकार में हैं। परंतु यदि परिभोगी कोई ऐसा काम करता है, जो अंतरराष्ट्रीय विधि के प्रतिकूल है, तो यथापूर्व स्थापना की दृष्टि से ऐसे कोर्य को वास्तव में प्रभावहीन हो माना जाता है, उदाहरणार्थ, यदि परिभागी राज्य की अचल संपत्ति को बेच दे।
सन्दर्भ ग्रन्थ
[संपादित करें]1. हाल, डब्लू. ई.: ए ट्रीटाइज आन इंटर नेशनल ला, 1924।
2. ओपेनहेम, एल. : इंटरनेशनल ला, ए ट्रीटाइज, दूसरा खंड, (सातवाँ संस्करण) (धारा 279-284)।