प्रभाकरवर्धन
प्रभाकरवर्धन | |
---|---|
महाराजा | |
थानेसर का चतुर्थ राजा | |
शासनावधि | 7th century CE |
जीवनसंगी | यशोमती |
संतान | राज्यवर्धन, हर्षवर्धन, राज्यश्री |
राजवंश | पुष्पभूति (वर्धन) |
पिता | आदित्यवर्धन |
माता | महेशगुप्त |
प्रभाकरवर्धन थानेश्वर का राजा था, जो पुष्यभूति वंश का था और छठी शताब्दी के अंत में राज्य करता था।[1] प्रभाकरवर्धन की माता गुप्त वंश की राजकुमारी महासेनगुप्त नामक स्त्री थी।अपने पड़ोसी राज्यों, मालव, उत्तर-पश्चिमी पंजाब के हूणों तथा गुर्जरों के साथ युद्ध करके प्रभाकरवर्धन ने काफ़ी प्रतिष्ठा प्राप्त की थी।अपनी पुत्री राज्यश्री का विवाह प्रभाकरवर्धन ने कन्नौज के मौखरि राजा गृहवर्मन से किया था। प्रभाकरवर्धन की मृत्यु 604 ई. में हुई जिसके बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र राज्यवर्धन उत्तराधिकारी बना।
पुष्यभूति वंश का प्रथम शासक था जिसने थानेश्वर को अपनी राजधानी बनाया था। यह "प्रतापशील" के नाम से विख्यात था। इस वंश के शासकों में सर्वप्रथम महाराजाधिराज की उपाधि प्रभाकरवर्धन ने ही धारण की। इसकी मृत्यु के बाद इसकी पत्नी यशोमती सती हो गयी। यशोमती की तीन संतान थी – राज्यवर्धन, हर्षवर्धन, राज्यश्री। राजयश्री का विवाह मौखरि नरेश ग्रहवर्मा से हुआ था। देवगुप्त ने ग्रहवर्मा की हत्या कर दी और राज्यश्री को बंदी बना लिया। राज्यश्री को हर्षवर्धन विंध्याचल के जंगलों से बचाकर लाया।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Prachin Bharat Ka Itihas (Ancient India), Hindi Edition. S. Chand Publishing. पृ॰ 208. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-219-2205-0. अभिगमन तिथि 27 अप्रैल 2020.
यह भारतीय इतिहास से सम्बंधित लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |