पिरान कालियार शरीफ

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कलियर शरीफ दरगाह,रुड़की, उत्तराखंड
कलियर शरीफ दरगाह,रुड़की, उत्तराखंड
ग़ूलर का पेड

पिरान कलियर शरीफ 13 वीं शताब्दी के चिश्ती सिलसिले के सूफी संत की दरगाह है। मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर कलियरी को सरकार साबिर पाक और साबिर पिया कलियरी के नाम से पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। आप का मजार शरीफ उत्तराखंड के हरिद्वार जिला व शहर से 25 किलोमीटर और रुड़की शहर से केवल 7 किलोमीटर की दूरी पर है।[1]

रुड़की से 7 किलोमीटर की दूरी पर कलियर शरीफ में अनेक दरगाह शरीफ है जिनमें साबिर पिया की दरगाह, किलकिली साहब की दरगाह ,हजरत इमाम साहब की दरगाह,

अलाउद्दीन साबिर कलियारी[संपादित करें]

अलाउद्दीन साबिर कलियारी का जन्म 19 रबी अल-अव्वल, 592 हिजरी (1196) में हेरात में जमीला खातून के घर हुआ था, जो बाबा फरीद की बड़ी बहन थी। उनके पिता सैय्यद अबुल रहीम की मृत्यु के बाद, 1204 में, उनकी माँ ने उन्हें पाकपट्टन लेकर बाबा फरीद के पास आयी, जो उन्हें अपना मुरीद बनाया और उन्हें लंगर की देखभाल का काम सौंपा।

जब अलाउद्दीन की माँ ने उन्हें बहुत समय बाद देखा, तो उन्हें उनकी कमजोरी दिखाई दी, जिसे देखकर उन्होंने बाबा फरीद से जवाब मांगा। बाबा फरीद ने समझाया कि वह खाने की देखभाल के लिए बनाए गए हैं और उनके पास भोजन की कमी नहीं होनी चाहिए।

अलाउद्दीन ने समझाया कि हालांकि वह खाने की देखभाल का काम करते थे, लेकिन उन्होंने उससे खाना नहीं खाया। उन्होंने उसके बजाय जंगल में जाकर खाना खाने के लिए खोजा। उनके इस धैर्य को देखकर उन्हें फिर "साबिर" (धैर्यशील) का उपाधि दिया गया।

1253 ईस्वी में, जब बाबा फरीद ने उन्हें कालियार शरीफ का संरक्षक नियुक्त किया, तो उन्होंने कालियार पहुंचकर अपने आखिरी दिनों तक वहां रहा और 13 रबी अल-अव्वल, 690 हिजरी (1291) में वहां इस दुनिया से विसाल कर गये।