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केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

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भारत के केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अन्तर्गत सितम्बर, 1974 में किया गया था। इसके पश्चात केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अन्तर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गये।

यह क्षेत्र निर्माण के रूप में कार्य करता है तथा पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अन्तर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएं भी उपलब्ध करता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्य जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 में व्यक्त किये गये हैं। (1) जल प्रदूषण के निवारण एवं नियंत्रण द्वारा राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में कुओं और सरिताओं की स्वच्छता को सुधारना तथा (2) देश में वायु प्रदूषण के निराकरण अथवा नियंत्रण, निवारण के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार लाना। (3) जल ,वायु और भूमि प्रदुषण से सम्बंधित सूचनाओं का संकलन व वितरण करते है।

वायु गुणवत्ता प्रबोधन वायु गुणवत्ता प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण अंग है। राष्ट्रीय वायु प्रबोधन कार्यक्रम (रा.व.प्र.का.) की स्थापना वर्तमान वायु गुणवत्ता की स्थिति और प्रवृत्ति को सुनिश्चित करने तथा उद्योगों और अन्य स्रोतों के प्रदूषण को नियमित कर नियंत्रित करने तथा वायु गुणवत्ता मानकों के अनुरूप रखने के उद्धेश्य से की गई है। यह औद्योगिक स्थापना तथा शहरों की योजना तैयार करने के लिए अपेक्षित वायु गुणवत्ता के आंकड़ों की पृष्ठभूमि भी उपलब्ध कराता है।

इसके अलावा केन्द्रीय बोर्ड का नई दिल्ली स्थित आई.टी.ओ. चौराहे पर एक स्वचालित प्रबोधन केन्द्र भी है। इस केन्द्र पर श्वसन निलम्बित विविक्त कण, कार्बन मोनो ऑक्साइड, ओजोन, सल्फर डायोक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड तथा निलम्बित विविक्त कण भी नियमित रूप से प्रबोधित किये जा रहे हैं। आई.टी.ओ. की वायु गुणवत्ता पर सूचना प्रत्येक सप्ताह अद्यतन की जाती है।

स्वच्छ जल खेती-बाड़ी, उद्योग में प्रयोग के लिए वन्य जीव तथा मत्स्य पालन के प्रजनन तथा मानव के आस्तित्व के लिए एक चिर स्थाई संसाधन आवश्यक है। भारत नदियों वाला देश है। यहां 14 प्रमुख नदियों, 44 मझोली नदियों और 55 छोटी नदियों के अलावा काफी संख्या में झीलें, तालाब तथा कुएं हैं, जिनका प्रयोग प्राथमिक रूप से बिना उपचार किये पीने के लिए किया जाता है। सामान्य तौर पर अधिकत्तर नदियां मानसून के दौरान से भरी रहती हैं जो वर्ष के केवल तीन माह तक सीमित रहती है, प्रायः शेष समय में ये सूखी ही रहती है और उद्योगों अथवा शहरों/कस्बों से विसर्जित अपशिष्ट जल ही ले जाती है, जो हमारे सीमित जल संसाधनों की गुणवत्ता को खतरे में डालती है। भारतीय संसद ने हमारे जल निकायों की स्वास्थ्यप्रदता को बरकरार रखने तथा सुरक्षित रखने के विचार से जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 बनाया। जल प्रदूषण से संबंधित तकनीकी तथा सांख्यिकीय आँकड़ों को एकत्र करना, मिलाना तथा उसका प्रसारण करना केन्द्रीय बोर्ड का एक अधिदेश है। इसलिए जल गुणवत्ता का प्रबोधन तथा निगरानी इसकी सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि है।

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