अल्फोन्सो आम में स्प्ंजी टिशू की समस्या एंव इसका समाधान
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'अल्फोन्सो' आम की किस्मों में राजा माना जाता हैं।इसके विकास के द्श्कों बाद भी आंतरिक खराबी या स्प्ंजी टिशू की समस्या के कारण भारत अभी भी इसके नियार्त में काफी पीछे है।इसके फलस्वरुप देश के राजस्व में भारी घाटा होता है।वर्ष १९९८ से यह समस्या एक पह्ली बनी रही हैं।
स्प्ंजी टिशू के कारण
[संपादित करें]ताकिर्क रूप से स्प्ंजी टिशू बाहय कारकों,जैसे तापमान,स्ंवाहक ताप आदि के कारण नहीं होती,क्योंकि ये स्वास्थ फल एंव स्प्ंजी टिशू से प्रकोपित फल के लिए अलग-अलग नहीं होते,जिसका समान पुष्प-गुच्छ पर लगातार निरीक्षाण किया गया।स्प्ंजी टिशू की तीव्रता फल की परीपक्वता से संब्ंधित है और यह पोषक तत्वों,विशेषकर कैल्शियम और बोरोन की कमी के कारण होती हैटिशू की अस्तव्यस्तता,जो कि स्प्ंजी टिशू के समान स्थानीय रूप से प्रकट होती है,प्रार्ंभ में उस क्षेत्र से पोषक तत्वों को दुबार इकट्ठा करने से होती है न कि विकास के समय पोषक तत्वों के प्रदाय के अभाव में।
स्प्ंजी टिशू पुष्प-गुच्छ में लगानेवाले फलों की स्ंख्या के अनुपात में होती है,जिसमें विकास के दौरान फलों की आंतरिक प्रतिस्पर्धा की स्ंभावना दिखती हैं।आनुव्ंशिक रूप से एक कमजोर बीज प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाएगा और यध्य्पि फल भौतिक रूप से पेड से स्ंबध्द् दिखता हैं,फिर भी मुख्य पेड से स्ंरचनात्मक रूप से या कायिर्की रूप से,स्ंभावत: स्ंसाधनों के विपरीत बहाव को रोकने के लिए,अलग हो जाता है।बीज के पोषक तत्वों की आवश्यकता की,दाता पेड द्वरा नाभिका पर लगी वृंतिका के माध्यम से ,पूर्ति की जाती है।जब इसके विकास के दौरान पेड से सीधे प्रदाय कठिन होता है तब बीज मध्य्-फल भित्तिक पर् निर्भर होता हैं और गुठली के पास सिथ्त किसी भी स्थान से स्ंसाधानों को याद्च्छिक रूप से लेते हैं,जिससे पोषक तत्वों की कमी होती है और टिशू सूख जाती है।उजड्ड बीज,जैसा कि आम का,मादा-पौधे पर विकसित होने पर भी पूर्व-अंकुरण प्रार्ंब करदेते हैं और स्थायित्व हेतु अंकुरण-क्षम बने रहने के लिए उनको लगातार नमी की आवाश्यकता होती हैं।बीज एंव इसके दाता पेड के बीज संवाहन की कमी विकासात्मक रूप से भारी स्ंख्या में महत्त्व्पूर्ण घट्नाओं को घट्ने देती हें,जिस्से अंकुरण-रीति में भ्रूण का कार्यिकी बदलाव होता है;अंकुरण-कार्य भ्राणीय विकास के कार्य को अस्वीक्रत कर देता हें।इसलिए कार्यिकी रूप से सक्रिय भ्रूण,उच्च प्राथमिकतावाले विलय-ग्रत होने के कारण और नाभिक पर स्थित व्रंतिका के माध्यम से फल के गूदेदार भाग से साध्नों को निकालने में सक्षम होने के कारण,स्प्ंजी टिशू बनने को प्रेरित करता है। स्प्ंजी टिशू ज्यादातर स्थानीय विकार है और निश्चित रूप से गुठली के सतह पर लगती है।इसके अतिरिक्त यह,स्प्ंजी टिशू से प्रकोपित कुछ फलों में दिखाई दे रही उद्भिज-बीजधारिता के साथ,स्प्ंजी टिशू के लिये बीज की प्रमुख भूमिका पर श्ंका करने को बदावा देता हैं।नमूने की विस्तृत जाँच और व्य्वसथित निरीक्षण से पता चला कि स्प्ंजी टिशू एंव बीज की अंकुरण-रीति में बद्लाव का सीधा स्ंबध हैं। कार्यिकी एंव जैवरासायनिक अध्ययनों ने इस परिकल्पना को मान्यता दी और स्प्ंजी टिशू के लिए बीज के कारण बन्ने की निष्कर्षी सबूत प्रदान किया।रेडियोट्रेसर टिटियम अध्ययन ने स्प्ंजी टिशू से प्रकोपित फल के गूदे से बीज में होनेवाले अधिकाधिक पानी के स्ंग्रहण को स्पष्ट रूप से दिखाया गया हैं।आम के गुठ्ली घुन से प्रकोपित फलों में स्प्ंजी टिशू के अभाव ने बीज की सीधी भूमिका क एक ठोस स्वाभाविक सबूत दिया कि घुन केवल बीज को ही खाता है।अल्फोन्सो और तोतापुरी आम पर किए गए तुलनात्मक अध्य्यान ने अल्फोन्सो में स्प्ंजी टिशू के प्रकोप में नाभिक पर वृंतिका के स्ंब्ंध के महत्त्व को समझने में मदद की।
स्प्ंजी टिशू की समस्या का समाधान
[संपादित करें]पादप आनुवंशिक स्ंसाधनों के उपयोग से बीज की चायापचयी क्रिया में बदलाव करने के दवारा स्प्ंजी टिशू के नियमन ने न केवल बीज की भूमिका को साबित किया वरन 'अल्फोन्सो'में इस विकार के निय्ंत्रण के लिये नई आशाएं प्रदान की/बीज के चायापचय का निम्न-विनियमन इस किस्म में स्प्ंजी टिशू को रोकने के लिए एक व्यावहार्य नीति दिखती हैं/स्प्ंजी टिशू को रोकने के लिए पैक्लोबूट्राज़ोल के प्रयोग ने एक अमूल्य अकाद्मिक अंतरदृष्टि प्रदान की,लेकिन निर्यात-प्रतिब्ंध और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के कारण इसके व्यावहारिक प्रयोग में सीमाएँ हैं।इस लिए कुछ पर्यावरण -अनुकूल मिश्रणों का विकास किया गया और स्प्ंजी टिशू को रोकने में उनकी प्रभवकारिता क भारतीव बागवानी अनुस्ंधान स्ंस्थान के बागान और महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र क्र किसानों के बागानों में मूल्यंकन किया गया,जिसक परिणाम अच्छा था। किसानों से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर वर्ष २०१० के प्रक्षेत्र के बेहतर पर्यावरण-अनुकूल मिश्र्ण को और सुधारा तथा इसका अल्फोन्सो निर्यात सुविधा,रत्नगिरी,महाराष्ट्र कृषि विपणन बोर्ड,पुणे के सह्योग से वर्ष २०११ के दौरान कोंक्ण क्षेत्र के रत्नगिरी और सिन्धुदुर्ग जिलों के २० किसानों के बागनों में परिक्षण किया गया।इस उन्नत पर्यावरण-अनुकूल मिश्रणों ने न केवल स्प्ंजी टिशू को शत प्रतिशत रोका वर्न फल के आकार सहित गुण्वत्ता के कई मापद्ण्डों को बदाया।कुछ किसानों ने पाया कि पेड में ही पके फलों में भी स्प्ंजी टिशू बिल्कुल नहीं थी,जो एक असाधारण उपलब्धि है। फिर भी किसान चाहते हैं कि इस मिश्रण का और स्ंशोधन किया जाए ताकि इसे एसे प्रभावी बनाया जाए कि फल की ६०% तक की परिपक्व अवस्था में एक ही तुडाई-पूर्व छिड्काव से स्प्ंजी टिशू को रोक जा सके।किसानों ने शिकायत की कि अधिकांश फलों की वृद्धि एंव विकास निर्धारित कार्यिकीय अवस्था से पहले मिश्रण के स्ंपर्क में आने से प्रभावित हुए।इन दोनोँ मुद्दों के समाधान का कार्य प्रगति पर है।'अल्फोन्सो'में रहस्यमय स्प्ंजी टिशू की समस्या के कारण को सुलझाने में निदर्शनात्मक बदलाव,न केवल 'अल्फोन्सो' में वरन एसे ही विकारवाली अन्य किस्मों,जैसे दशहरी और आम्रपाली में उजड्ड बीज के कारण होने वाले जेली बीज के कार्यिकीय फल-विकार के लिए निदानकारी नीतियों को तैयार करने में,ल्ंबे समय तक चलेगा।
सन्दर्भ
[संपादित करें]<"बागवानी" अंक५,वर्ष २०१३=२०१४,राजभाषा पत्रिका "भारतीय बागवानी अनुस्ंधान स्ंस्थान",पृष्ठ स्ंख्या-२६-२७, /> <https://web.archive.org/web/20080523172642/http://hi.wikipedia.org/wiki/>