अम्लराज
अम्लराज[note 1] | |
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आईयूपीएसी नाम | नाइट्रिक अम्ल हाइड्रोक्लोराइड |
अन्य नाम |
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पहचान आइडेन्टिफायर्स | |
सी.ए.एस संख्या | [8007-56-5][CAS] |
पबकैम | |
SMILES | |
गुण | |
आण्विक सूत्र | HNO3+3 HCl |
दिखावट | लाल, पीला या स्वर्णिम धुँआ देने वाला द्रव |
घनत्व | 1.01–1.21 g/cm3 |
गलनांक |
−42 °C, 231 K, -44 °F |
क्वथनांक |
108 °C, 381 K, 226 °F |
जल में घुलनशीलता | Miscible |
वाष्प दबाव | 21 mbar |
खतरा | |
NFPA 704 | |
जहां दिया है वहां के अलावा, ये आंकड़े पदार्थ की मानक स्थिति (२५ °से, १०० कि.पा के अनुसार हैं। ज्ञानसन्दूक के संदर्भ |
अम्लराज या 'ऐक्वारेजिया' (Aqua regia) ('ऐक्वारेजिया' का शाब्दिक अर्थ है 'शाही जल') या नाइट्रो-हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कई अम्लों का एक मिश्रण है। यह अत्यन्त संक्षारक (corrosive) अम्ल है। तुरन्त बना अम्लराज रंगहीन होता है किन्तु थोड़ी देर बाद इसका नारंगी हो जाता है। इससे धुँआ निकलता रहता है।
सांद्र नाइट्रिक अम्ल और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का ताजा मिश्रण ही अम्लराज है। इन्हें प्रायः १:३ के अनुपात में मिश्रित किया जाता है। इसे अम्लराज या 'ऐक्वारेजिया' नाम इसलिये दिया गया क्योंकि यह स्वर्ण और प्लेटिनम आदि 'नोबल धातुओं' को भी गला देता है। तथापि टाइटैनियम, इरिडियम, रुथिनियम, टैटलम, ओस्मिअम, रोडियम तथा कुछ अन्य धातुओं को यह नहीं गला पाता।
अम्लराज का विघटन
[संपादित करें]जब सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और सांद्र नाइट्रिक अम्ल को आपस में मिलाया जाता है तब रासायनिक अभिक्रिया होती है। इस अभिक्रिया के फलस्वरूप वाष्पशील नाइट्रोसिल क्लोराइड तथा क्लोरीन बनती हैं जो अम्लराज से निकलने वाले धुंएँ तथा अम्लराज के लाक्षणिक पीले रंग से स्पष्ट है। ज्यों-ज्यों अम्लराज से वाष्पशील पदार्थ उडकर अलग हो जाता है, अम्लराज की शक्ति (potency) भी कम होती जाती है।
- HNO3 (aq) + 3 HCl (aq) → NOCl (g) + Cl2 (g) + 2 H2O (l)
नाइट्रोसिल क्लोराइड का पुनः नाइट्रिक आक्साइड और क्लोरीन में विघटन हो सकता है। इसलिये अम्लराज के धुएँ में नाइट्रोसिल क्लोराइड और क्लोरीन के अलावा नाइट्रिक आक्साइड भी होती है।
- 2 NOCl (g) → 2 NO (g) + Cl2 (g)
उपयोग
[संपादित करें]अम्लाराज मुख्यतः
- (1) क्लोरोऔरिक अम्ल (chloroauric acid) के उत्पादन के लिये प्रयुक्त होता है जो वोलविल प्रक्रम (Wohlwill process) में प्रयुक्त विद्युत अपघट्य है। इसी प्रक्रम के द्वारा उच्चतम शुद्धता (99.99 %) के स्वर्ण का शोधन किया जाता है।
- (2) अम्लराज का प्रयोग इचिंग (etching) और कुछ विशिष्ट वैश्लेषिक प्राक्रमों में भी होती है।
- (3) कुछ प्रयोगशालाओं में कांच के पात्रों पर लगे कार्बनिक यौगिकों एवं धातु-कणों को हटाने के लिये भी इसका प्रयोग किया जाता है।
इतिहास
[संपादित करें]अम्लराज का उल्लेख सर्वप्रथम मध्यकालीन यूरोपीय अलकेमिस्ट श्यूडो-गेबर (Pseudo-Geber) की कृतियों में मिलता है जो १४वीं शती की हैं। एंटोनी लैवोशिए (Antoine Lavoisier) ने सन् 1789 में इसे नाइट्रोमुरिएटिक अम्ल (nitro-muriatic acid) नाम दिया।
क्रियाएँ
[संपादित करें]स्वर्ण को घोलना
[संपादित करें]स्वर्ण को एक्वारेज़िया में डालने पर यह उसमें घुल जाता है, और घुलकर टेट्राक्लोरोआरिक क्लोराइड बनाता है, यह क्रिया दो चरणों में पूरी होती है।
- Au + HNO3 + 3HCL → Aucl3 + NO + H2O
- Aucl3 + HCL→ H[Aucl4]
प्लेटिनम को घोलना
[संपादित करें]यह सोना एवं प्लेटिनम को गलाने में समर्थ होता हैं। ये सोना और platinum को गलाने मे समर्थ होता है।
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
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