हालावाद

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हालावाद साहित्य, विशेषतः काव्य की वह प्रवृत्ति या धारा है जिसमें हाला या मदिरा को वर्ण्य विषय मानकर काव्यरचना हुई हो। साहित्य की इस धारा का आधार उमर खैयाम की रुबाइयाँ रही हैं। हालावादी काव्य का संबंध ईरानी साहित्य से है जिसका भारत में आगमन अनूदित साहित्य के माध्यम से हुआ।

'हाला' का शाब्दिक अर्थ है- ‘मदिरा’, ‘सोम’, शराब’ आदि। हरिवंश राय बच्चन ने अपनी हालावादी कविताओं में इसे गंगाजल, हिमजल, प्रियतम, सुख का अभिराम स्थल, जीवन के कठोर सत्य, क्षणभंगुरता आदि अनेक प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया है।

इस नवीन काव्य धारा को ‘वैयक्तिक कविता’ या ‘हालावाद’ या ‘नव्य-स्वछंदतावाद’ या ‘उन्मुक्त प्रेमकाव्य’ या ‘प्रेम व मस्ती के काव्य’ आदि उपमाओं से अभिहित किया गया है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उत्तर छायावाद को छायावाद का दूसरा उन्मेष कहा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने उत्तर छायावाद/छायावादोत्तर काव्य को “स्वछन्द काव्य धारा” कहा है।

डॉ.नगेन्द्र ने छायावाद के बाद और प्रगतिवाद के पूर्व की कविता को ‘वैयक्तिक कविता’ कहा है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “वैयक्तिक कविता छायावाद की अनुजा और प्रगतिवाद की अग्रजा है, जिसने प्रगतिवाद के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया। यह वैयक्तिक कविता आदर्शवादी और भौतिकवादी,दक्षिण और वामपक्षीय विचारधाराओं के बीच का एक क्षेत्र है।”

हिन्दी साहित्य में हालावाद का प्रचलन बच्चन की मधुशाला से माना जाता है। हालावाद नामकरण करने का श्रेय रामेश्वर शुक्ल अंचल को प्राप्त है। अन्य हालावादी कवि हैं- भगवतीचरण वर्मा, नरेन्द्र शर्मा आदि।

हालावाद का समय 1933 से 1936 तक माना जाता है।

डॉ. रामदरश मिश्र ने हालावादी काव्य के विषय में कहा है कि “व्यक्तिवादी कविता का प्रमुख स्वर निराशा का है, अवसाद का है, थकान का है, टूटन का है, चाहे किसी भी परिप्रेक्ष्य में हो।" डॉ. हेतु भारद्वाज ने हालावादी काव्य को “क्षयी रोमांस और कुण्ठा का काव्य” कहा है। डॉ. बच्चन सिंह ने हालावाद को “प्रगति प्रयोग का पूर्वाभास” कहा है। ” सुमित्रानंदन पंत ने कहा है कि “मधुशाला की मादकता अक्षय है"। उन्होनें आगे कहा है कि "मधुशाला में हाला, प्याला, मधुबाला और मधुशाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी, मर्मस्पर्शी, रागात्मक एवं रहस्यपूर्ण भावों को वाणी दी है।" हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हालावादी काव्य को "मस्ती, उमंग और उल्लास की कविता" कहा है।

हालावाद/छायावादोत्तर काव्य की प्रमुख विशेषताएं
  • जीवन के प्रति व्यापक दृष्टि का अभाव
  • आध्यात्मिक अमूर्तता तथा लौकिक संकीर्णता का विरोध
  • धर्मनिरपेक्षता
  • जीवन सापेक्ष दृष्टिकोण
  • द्विवेदी युगीन नैतिकता और छायावादी रहस्यात्मकता का परित्याग
  • स्वानुभूति और तीव्र भावावेग
  • उल्लास और उत्साह
  • जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण
  • जीवन का लक्ष्य स्पष्ट