हरमन मिन्कोवस्की
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हरमन मिन्कोवस्की (Hermann Minkowski ; 22 जून 1864 – 12 जनवरी 1909) लिथुआनियाई-जर्मन गणितज्ञ थे। उन्होने संख्याओं की ज्यामिति का सृजन एवं विकास किया। उन्होने संख्या सिद्धान्त तथा गणितीय भौतिकी की समस्याओं के हल के लिए ज्यामितीय विधियों का उपयोग किया।
आधुनिक गणित के विकास में हरमन मिन्कोवस्की का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। उन्होंने आधुनिक फलन विश्लेषण का आधार निर्मित किया। उन्होंने द्विघाती रूपों के ज्ञान को बहुत अधिक विस्तार दिया। उन्होंने गणित के एक उप-विषय की आधारशिला रखी जिसे 'संख्याओं की ज्यामिति' कहा जाता है।
परिचय
[संपादित करें]यह मिन्कोवस्की ही थे जिन्होंने अल्बर्ट आइंस्टाइन के आपेक्षिकता के सिद्धांत की गणितीय नींव तैयार की। मिन्कोवस्की ने यह समझ लिया था कि आइंस्टाइन के आपेक्षिता के सिद्धांत को एक अ-युक्लीडीय स्पेस (जिसे अब मिन्कोवस्की स्पेस कहा जाता है) में ही सबसे अधिक अच्छी तरह सराहा जा सकता है। अतः आपेक्षिकता सिद्धांत के ज्यामितीय निहितार्थों तथा दृढ़ गणितीय संरचनाओं को विकसित करते हुए मिन्कोवस्की ने पहले एक-दूसरे पर अनाश्रित समझे जाने वाले दिक् और काल को परस्पर संबद्ध करके एक चतुर्विमीय दिक्काल सातत्य का प्रस्ताव किया। दिक्काल सातत्य, जिसे दिक्काल भी कहा जाता है, का अभिकल्पन मिन्कोवस्की द्वारा भौतिक समष्टि की ज्यामिति के संकेतन के लिए किया गया था जैसा कि वे आपेक्षिकता बाद के सिद्धांत द्वारा सुझाया गया था। हम जानते हैं कि न्यूटनी भौतिकी अथवा चिरसम्मत भौतिकी में दिक् और काल को दो बिल्कुल अलग-अलग राशियां माना जाता था। परंतु, मिन्कोवस्की ने प्रदर्शित किया कि आपेक्षिकता के सिद्धांत की संकल्पना के कारण यह गणितीय दृष्टि से आवश्यक हो गया है कि तीन स्पेस संबंधी विमाओं-लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई के साथ समय को चौथे विमा को भी जोड़ लिया जाए। अतः आइंस्टाइन और मिन्कोवस्की के कार्य ने दर्शाया कि वास्तव में दिक् और काल बहुत अंतरंगता से परस्पर संबंधित हैं। दिक् और काल की एकल चतुर्विम सत्तता को इसकी सम्पूर्णता में घटना समष्टि अथवा मिन्कोवस्की समष्टि भी कहा जाता है जिसमें एकल स्पेस बिंदु का समय के साथ इतिहास एक वक्र या रेखा से तथा दिक्काल में सीमित एक घटना एक बिंदु से निरूपित होती है। मिन्कोवस्की समष्टि में ये ज्यामितीय संकल्पनाएं प्रायः क्रमशः विश्व वक्रों या रेखाओं तथा विश्व बिंदुओं के नाम से व्यक्त की जाती हैं और इनको सामान्य त्रिविमीय दिक् में इनके समदृश्य आकृतियों से अलग करके पहचानना चाहिए। यहां यह भी उल्लेख किया जाना चाहिए कि स्थान एवं समय की एकता की धारणा हेंड्रिक लारेंज के रूपांतरणों के विश्लेषण में देखी जा सकती है। मिन्कोवस्की ने पहली बार लॉरेंज के रूपांतरण की धारणाओं के महत्त्व को पहचाना।
मिन्कोवस्की द्वारा दिक्काल मॉडल की प्रस्तुति से पूर्व आइंस्टाइन के आपेक्षिकता के व्यापक सिद्धांत को आइंस्टाइन समेत सभी भौतिकीविद् का भान उन्हें नहीं था। यह मिन्कोवस्की ही थे जिन्होंने इस नए सिद्धांत की गणितीय संरचना और उसके ज्यामितीय निहितार्थों का अध्ययन किया। मिन्कोवस्की के गणितीय विचारों और तकनीकों ने आइंस्टाइन के आपेक्षिकता के व्यापक सिद्धांत की रचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
मिन्कोवस्की और डेविड हिल्बर्ट दोनों ने ही एक-दूसरे के कैरियर को प्रभावित किया। वे पहली बार कोनिग्सबर्ग में विद्यार्थी के रूप में एक-दूसरे के सम्पर्क में आए थे। मिन्कोवस्की हिल्बर्ट से नीचे की कक्षा में थे। बाद में वे दोनों गोटिंजेन विश्वविद्यालय में सहकर्मी हो गए। वे दोनों ही सैद्धांतिक गणित भौतिकी में चले गए। वे ‘गणित और भौतिकी के बीच एक पूर्व स्थापित समरसता’ से प्रभावित थे और उन्होंने इसे पुष्ट भी किया। यह भी मान्यता थी कि प्रकृति के रहस्यों पर से पर्दा उठाने के लिए उच्चस्तरीय गणित का उपयोग अनिवार्य होता है। यह सुविज्ञात है कि हिल्बर्ट ने अपने सन् 1900 के प्रसिद्ध व्याख्यान में प्रमुख गणितीय समस्याओं की सूची प्रदान करके बीसवीं सदी के गणितीय अनुसंधान प्रक्रम को बहुत अधिक प्रभावित किया था। परंतु, यह बात बहुत लोगों को पता नहीं है कि हिल्बर्ट को उनके व्याख्यान के लिए यह विषय चुनने का सुझाव मिन्कोवस्की ने ही दिया था। मिन्कोवस्की ने एक पत्र में हिल्बर्ट को लिखा थाः ‘‘सर्वाधिक प्रभावकारी विषय होगा भविष्य का पूर्वदर्शन कराने का प्रयास, अर्थात् उन समस्याओं की रूपरेखा जिनसे जूझने में भावी गणितज्ञों को व्यस्त रहना चाहिए। इस प्रकार आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि लोग आगे आने वाले कई दशकों तक आपके व्याख्यान की चर्चा करते रहें।’’ आइंस्टाइन की गणित के प्रति दृष्टि को ‘मात्र भौतिकीय अंर्तदृष्टि के एक औजार’ के स्थान पर’ वैज्ञानिक सर्जनात्मकता के विशिष्ट स्रोत’ के रूप में परिवर्तित करनें में मिन्कोवस्की और हिल्बर्ट मुख्यतः उत्तरदायी थे।
मिन्कोवस्की ने ज़्युरिख पॉलिटेक्निक में अल्बर्ट आइंस्टाइन को गणित पढ़ाया था। विद्यार्थी के रूप में आइंस्टाइन के प्रति उनकी कोई विशेष रूचि नहीं थी। हिल्बर्ट के साथ अपने पत्र व्यवहार में पॉलिटैक्निक के जिस एकमात्र विद्यार्थी का उल्लेख उन्होंने किया, वे थे वाल्टर रिट्ज (1878-1909)। कहा जाता है कि बाद के विद्यार्थियों को उन्होंने बताया था कि उन्हें आइंस्टाइन का आपेक्षिकता का सिद्धांत गणितीय दृष्टि से अनुपयुक्त लगा था।
हरमन मिन्कोवस्की का जन्म 22 जून 1864 को जार अलैक्जेंडर द्वितीय के शासनाधीन रूसी साम्राज्य के अलेक्जोटेन (अलेक्ज़ोटास) (जो आज के लिथुवानिया में कौनास के निकट है) में हुआ था। उनके पिता-माता लेविन मिन्कोवस्की एवं राशेल मिन्कोवस्की (उर्फ तौबमान) जर्मन मूल के थे। 7 वर्ष की उम्र तक मिन्कोवस्की की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। सन् 1872 में उनके माता-पिता वापस जर्मनी लौट आए और कोंनिग्सबर्ग (अब कालिनीग्राद, रूस) में बस गए। मिन्कोवस्की ने एल्शैडिश चेस जिम्नैज़ियम में अध्ययन किया जहां उनके जूनियर सहपाठियों में विल्हेल्म वीन (1864-1928) तथा अर्नोल्ड सोमरफेल्ड (1868-1951) शामिल थे जो बाद में प्रतिष्ठित भौतिकीविद् बने।
अप्रैल 1880 में मिन्कोवस्की ने कोनिग्सबर्ग विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहां अन्य लोगों के साथ उनके सहपाठियों में शामिल थे : हीनरिक वेबर, वोल्डेमर वोयट, एडोल्फ हुर्विज़ और फर्डिनैंड लिंडरमैन। उन्होंने बर्लिन विश्वविद्यालय में तीन सत्र पूरे किए, जहां उन्होंने अर्न्स्ट एडुआर्ड कुमेर (1810-1893), लियोपोल्ड क्रोनेकर (1823-1891), हरमन वॉन हेल्महॉल्ट (1821-1894) तथा गुस्ताव रॉबर्ट किरखोफ (1824-1887) से शिक्षा प्राप्त की।
सन् 1883 में मिन्कोवस्की ने पेरिस अकादमी ऑफ साइंसेज का ग्रैंड प्रिक्स डेस साइंसेज मैथेमैटिकेस जीता। तब उनकी आयु केवल 18 वर्ष थी। यह पुरस्कार उन्हें निपुण ब्रिटिश गणितज्ञ हेनरी जे. एस. स्मिथ के साथ प्रदान किया गया था। इस पुरस्कार के लिए घोषणा सन् 1881 में की गई थी। पुरस्कार का विषय किसी पूर्णांक को पांच वर्गों के योग के रूप में निरूपित करने के विभिन्न तरीकों संबंधी समस्या का हल तलाश करना था। समस्या तो सन् 1847 में आइंस्टाइन द्वारा हल की जा चुकी थी और उन्होंने इस प्रकार के निरूपणों की संख्या ज्ञान करने का सूत्र दे दिया था। परंतु, उन्होंने इस बात की कोई व्याख्या नहीं की थी कि वे इस सूत्र तक कैसे पहुंचे। सन् 1867 में स्मिथ ने इस समस्या को हल किया और इसकी उपपत्ति भी प्रस्तुत की। पेरिस अकादमी ऑफ साइंसेज ने जब इस पुरस्कार के लिए विषय की घोषणा की तो उन्हें स्मिथ के कार्य का ज्ञान नहीं था। स्मिथ ने इस विषय पर पहले किए गए अपने कार्य को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया। मिन्कोवस्की को भी आइंस्टाइन के द्विघात रूपों के सिद्धांत की पुनर्रचना करते समय इस समस्या का एक हल मिला। उन्होंने अपने निष्कर्षों को 140 पृष्ठों की एक पांडुलिपि के रूप में अकादमी को पेश किया। मिन्कोवस्की का सूत्रीकरण स्मिथ से बेहतर माना गया क्योंकि उन्होंने अपनी उपपत्ति में अधिक सहज और सर्वनिष्ठ परिभाषाओं का उपयोग किया था। सन् 1885 में लिंडरमैन के मार्गदर्शन में उन्होंने अपनी पी.एच.डी.कोनिग्सबर्ग में पूरी कर ली। उनका पी.एच.डी. शोध प्रबंध द्विघात रूपों पर था। कोनिग्सबर्ग में ही मिन्कोवस्की डेविड हिल्बर्ट के संपर्क में आए।
पी.एच.डी. पूरी कर लेने के बाद उन्हें अनिवार्य सैन्य सेवा में जाना पड़ा और उसके बाद सन् 1887 में वे प्राइवेट्डोजेंट (अवैतनिक प्राध्यापक) के रूप में बोन विश्वविद्यालय से जुड़ गए। सन् 1892 में उन्हें सहप्राचार्य के पद पर प्रोन्नत कर दिया गया। बोन में उन्होंने गणितीय भौतिकी के क्षेत्र में कार्य करना शुरू किया। जो पहली समस्या उन्होंने चुनी वे आदर्श द्रवों में डूबे ठोसों की गति का अध्ययन था। इस समस्या पर पहले डब्ल्यू. थॉमसन, किरखोफ, क्लेव्स्क और अन्य लोगों ने अध्ययन किया था। मिन्कोवस्की ने एक ऐसी विधि का विकास किया जो किसी भी ठोस के लिए लागू की जा सकती थी फिर चाहे वे किसी भी आकृति का हो। बोन में मिन्कोवस्की की रूचि गणित से भौतिकी में अधिक हो गई। उन्होंने बोन के भौतिकी संस्थान में समय बिताना शुरू किया जो उस समय हेनरिख हर्ट्ज की अध्यक्षता में कार्यरत था। यहां तक कि उन्होंने एक प्रयोंगशाला पाठ्यक्रम भी पूरा किया। ऐसी रिपोर्ट हैं जो यह बताती हैं कि हर्ट्ज ने युवा मिन्कोवस्की को रात्रिभोज पर बुलाया। हर्ट्ज के साथ मिन्कोवस्की का मेल-जोल अधिक दिन तक नहीं चल पाया क्योंकि् सन् 1894 में हर्ट्ज की मृत्यु हो गई। उसी वर्ष मिन्कोवस्की ने बोन छोड़ दिया। यदि हर्ट्ज और अधिक जीवित रहते तो शायद स्थिति कुछ और होती। परंतु इसका मिन्कोवस्की पर निर्णायक प्रभाव पड़ा उनकी रूचि सैद्धान्तिक यात्रिंकी में हो गयी। यह तथ्य नोट करने योग्य है कि हर्ट्ज यांत्रिकी के नए सिद्धांत सन् 1890 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में बनाए थे।
बोन में रहते हुए मिन्कोवस्की ने संख्या सिद्धांत पर भी कार्य किया जिसने गणित के एक नए उपविषय का पथ प्रस्तुत किया, जिसे संख्याओं के ज्यामिति कहते हैं। सन् 1896 में उन्होंने अपनी संख्याओं की ज्यामति का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने संख्या सिद्धांत की कुछ समस्याओं के हल के लिए ज्यामितिय विधियां विकसित की। अपने निष्कर्षों की विवेचना उन्होंने संख्याओं की ज्यामिति संबंधी अपनी पुस्तक ‘ज्योमेट्री डेर जेहलें’ में की है।
सन् 1894 में मिन्कोवस्की ज्युरिख पॉलिटेक्निक की फैकल्टी में अपने पूर्व शिक्षक हुर्विट्ज के साथ आ गए। ज्युरिख में मिन्कोवस्की को अधिक वेतन प्राप्त हुआ और उन्हें अभियांत्रिकी और गणित के विद्यार्थियों के साथ विचार-विमर्श का अवसर भी प्राप्त हुआ। उन्होंने पॉलिटेक्निक में छः वर्ष बिताए और विविध विषयों पर भाषण दिए जो विश्लेषणात्मक यांत्रिकी, द्रवगति, विभव सिद्धांत, विचरण कलन, संख्या सिद्धांत, फलनों का सिद्धांत, आंशिक अवकल सिद्धांत और बीजगणित से संबंधित थे। ज्युरिख पॉलिटेक्निक में शिक्षण के दौरान मिन्कोवस्की ज्युरिख विश्वविद्यालय में पढ़ना चाहते थे। परंतु उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई। इस स्थिति से वे बहुत संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वे पॉलिटेक्निक को एक स्कूल ही मानते थे ‘‘जिससे गणित का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता।’’
सन् 1902 में मिन्कोवस्की विश्वविद्यालय व्यवस्था तंत्र में लौट आए इस बार वे गोटिंगन विश्वविद्यालय में गए। मिन्कोवस्की के लिए विशेष रूप से गणित की एक नई चेयर स्थापित की गई (यह तीसरी चेयर थी)। यह एक असाधारण कार्य था। यह हिल्बर्ट के द्वारा मिन्कोवस्की को गोटिंगन आमंत्रित करने में ली गई रूचि के कारण ही संभव हुआ। इससे पहले हिल्बर्ट उन फेलिक्स क्लीन (1849-1925) के आमंत्रण पर गोटिंगन आए थे जो आधुनिक ज्यामिति के विकास को निर्माणात्मक रूप से प्रभावित करने वाले महान गणितज्ञों में से एक, महान जर्मन गणितज्ञ थे। क्लीन ने सन् 1886 में गोटिंगन विश्वविद्यालय में गणित की चेयर ग्रहण की थी और गोटिंगन को गणित अध्ययन का एक महान केन्द्र बनाने की मुहिम में जुट गए थे। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए क्लीन ने अधिकारियों को शुद्ध गणित में एक और चेयर स्थापित करने के लिए तैयार कर लिया और इसको ग्रहण करने के लिए हिल्बर्ट को आमंत्रित किया। हिल्बर्ट को पहले ही बर्लिन विश्वविद्यालय में गणित की लजारस फुक चेयर के लिए प्रस्ताव प्राप्त हो चुका था। हिल्बर्ट ने इस शर्त के साथ गोटिंगन का प्रस्ताव स्वीकार करने का मन बना लिया कि उनके साथ मिन्कोवस्की भी गोटिंगन विश्वविद्यालय में क्लीन के सहयोगी बनें। क्लीन के आग्रह पर प्रुशियन शैक्षणिक अधिकारियों ने हिल्बर्ट चेयर स्थापित करने का अभूतपूर्व निर्णय लिया। गोटिंगन आने के बाद मिन्कोवस्की का मुख्य सरोकार गणितीय भौतिकी रहा। सन् 1905 में मिन्कोवस्की ने हिल्बर्ट के साथ मिलकर इलेक्ट्रॉन संबंधी सिद्धांतों की समीक्षा पर एक सेमिनार का आयेजन किया। सन् 1907 में उन्होंने विद्युतगतिकी के समीकरणों पर एक सांझा सेमिनार आयोजित किया। अपने जीवन के शेष दो (1907-1909) वर्षों में मिन्कोवस्की पूरी तरह विद्युतगतिकी के समीकरणों और आइंस्टाइन द्वारा प्रतिपादित आपेक्षिकता के सिद्धांत के अध्ययन में जुटे रहे। मिन्कोवस्की ने विशिष्ट आपेक्षिकता के व्यापक सिद्धांत को दिक्काल सातत्य के पदों में पुनर्प्रस्तुत किया। उन्होंने दर्शाया कि इस सिद्धांत के मुख्य निष्कर्षों को केवल गणितीय नियमों के आधार पर व्युत्पन्न किया जा सकता था और उसके लिए प्रयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। मिन्कोवस्की की प्रस्तुति ने इस सिद्धांत को स्पष्टता और श्रेष्ठता का वे स्तर प्रदान किया जिसके कारण यह आइंस्टाइन के मूल सिद्धांत से बहुत आगे निकल गया। मैक्स वॉन लॉउ और आर्नोल्ड जैसे सुविख्यात भौतिकीविदों ने मिन्कोवस्की के विचारों को और आगे बढाया। सन् 1911 में इस विषय में प्रकाशित आपेक्षिकता के व्यापक सिद्धांत संबंधी लॉउ की परिचयात्मक पाठ्य पुस्तक संयोगवश ऐसी पहली पाठ्य पुस्तक थी जिसमें मिन्कोवस्की के सूत्रीकरण का उपयोग किया गया था।
मिन्कोवस्की ‘फोर कलर मैप कंजेक्चर’ का हल प्रस्तुत करना चाहते थे, लेकिन अंततः वे इसमें सफल नहीं हो पाए। रोचक बात यह है कि इस समस्या पर काम शुरू करने से पहले उन्होंने टिप्पणी की थी कि समस्या अभी तक हल इसलिए नहीं हुई थी क्योंकि केवल तीसरे दर्जे के गणितज्ञों ने ही उस पर कार्य किया था। उन्होंने जोर देकर यह भी कहा था ‘‘मुझे विश्वास है मैं इसे हल कर सकता हूं’’। लेकिन बाद में जब उन्होंने यह महसूस किया कि वे संतोषजनक प्रमाण नहीं दे सके हैं तो उन्होंने कहा ‘‘देवता मेरे अहंकार से नाराज़ हो गए हैं, मेरा प्रमाण भी त्रुटिपूर्ण है।’’
12 जनवरी 1909 को गोटिंगन, जर्मनी में मिन्कोवस्की का देहांत हो गया। उनकी मृत्यु अचानक ही हो गई। मृत्यु के समय वे केवल 40 वर्ष के थे।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- 1. द मैकमिलन एंर्साक्लोपीडिया, लंदन : मैकमिलन लंदन लिमिटेड, 1981
- 2. द कैम्ब्रिज डिक्शनरी ऑफ साइंटिस्टस (द्वितीय संस्करण), कैम्ब्रिज : कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2002
- 3. चैम्बर्स बायोग्राफिकल डिक्शनरी (शताब्दी संस्करण), न्यूयार्क : चैम्बर्स हर्राप पब्लिशर्स लिमिटेड, 1997
- 4. ए डिक्शनरी ऑफ साइंटिस्ट्स, ऑक्सफोर्ड : ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1999
- 5. महंती, सुबोध : डेविड हिल्बर्ट : अब तक के महानतम गणितज्ञों में से एकः ड्रीम 2047, अप्रैल 2012