सुरेखा यादव
सुरेख यादव (जन्म २ सितम्बर, १९६५) भारतीय रेलवे की पहली महिला रेलगाड़ी चालक हैं। १९८८ में वह भारत की पहली महिला ट्रेन चालक बनीं।[1] अप्रैल २००० में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी द्वारा पहली बार चार महानगरीय शहरो में "लेडीज स्पेशल"- लोकल ट्रेन शुरू की गयीं जिनके चालक दल की सदस्या यादव भी बनीं।[2] उनके कैरियर में एक महत्वपूर्ण घटना ८ मार्च २०११ को, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हुई थी, जब वह डेक्कन क्वीन नामक रेलगाड़ी को पुणे से सीएसटी, मुंबई तक ले जाने के लिए एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बन गई थीं, जहाँ मुंबई के तत्कालीन महापौर श्रद्धा जाधव ने केन्द्रीय रेलवे क्षेत्र के मुख्यालय सीएसटी में उनका स्वागत किया। यह सुरेखा के लिए सपना सच होने जैसा था, क्योंकि वह मध्य रेलवे की एक प्रतिष्ठित गाड़ियों में से एक की चालक थी, जो कि महिला चालक द्वारा चलयी गयी; मुंबई-पुणे रेलवे प्रवासी संघ (एसोसिएशन) ने इस ट्रेन को चलाने के लिए उनका जोरदार समर्थन किया। [3]
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]सुरेख का जन्म महाराष्ट्र केे सतारा में सोनाबाई और रामचन्द्र भोसले के घर हुआ। उनके पिता एक किसान थे और वह अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं।[4] उनकी आरंभिक शिक्षा सेंट पॉल कान्वेंट स्कूल, सतारा से हुई थी। स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद, उन्होंने व्यवसाय प्रशिक्षण के लिए प्रवेश ले लिया और फिर पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा जिले के कराड में सरकारी पॉलिटेक्निक से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के लिए पढ़ाई की। वह शिक्षक बनने के लिए गणित में बीएससी की डिग्री व बीएड की डिग्री पूरी करना चाहती थीं परन्तु भारतीय रेलवे में नौकरी मिलने के मौके से वो सपना पूरा न कर पाई।
व्यावसायिक जीवन
[संपादित करें]१९९७ में सुरेखा का भारतीय रेलवे सिलेक्शन बोर्ड द्वारा साक्षात्कार लिया गया। वह १९८६ में कल्याण ट्रेनिंग स्कूल में मध्ययुगीन रेलवे ट्रेनर के रूप में मध्य रेलवे में शामिल हुई जहां उन्होंने छह महीने तक प्रशिक्षण लिया। वह १९९८ में एक नियमित सहायक चालक बन गयीं।
जब उन्होंने भारतीय रेलवे में काम शुरू किया तो उन्होंने महसूस किया के वह भारतीय रेलवे में काम करने वाली एक अकेली महिला हैं। अन्य महिलायें भी उनके द्वारा प्रेरित हुईं, और २०११ में ५० महिला लोकोमोटिव ड्राइवर जो उपनगरीय ट्रेनों और माल गाड़ियों का संचालन करने लगीं तथा साथ ही शंटर्स या सहायक ड्राइवर लोगों में भी शामिल हो गयीं।
१९९१ में सुरेख ने टेलीविजन धारावाहिक (शीर्षक-' हम किसी से कम नहीं ') में भी काम किया। उन्हें एक महिला ट्रेन ड्राईवर होने के रूप में अपनी एक अनोखी भूमिका के लिए कई संघठनो से प्रशंसा भी मिली। उन्होंने काफी बार राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनेलो पर साक्षात्कार भी दिए हैं।
13 मार्च 2023 को, वह सेमी-हाई-स्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन चलाने वाली पहली महिला बनीं; उन्होंने सोलापुर से मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस तक 455 किलोमीटर की दूरी तय की।
निजी जीवन
[संपादित करें]१९९० में उनका विवाह शंकर यादव से हुआ जों महाराष्ट्र सरकार में एक पुलिस निरीक्षक हैं। उनके दो बेटे- अजिंक्य (जन्म १९९१) व अजितेश (जन्म १९९४) दोनों मुंबई विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के छात्र हैं। उनके पति उनके काम में उनका बहुत समर्थन करते हैं। [5]
प्राप्त पुरस्कार
[संपादित करें]- जिजाऊ पुरस्कार (१९९८)
- महिला प्राप्ति पुरस्कार (२००१)
- राष्ट्रीय महिला आयोग, दिल्ली (२००१)
- लोकमत सकी मंच (२००२)
- महिला प्राप्तकर्ता पुरस्कार (२००१ में केंद्रीय रेलवे द्वारा)
- आरदुब्लूसीसी के द्वारा सर्वश्रेस्थ महिला वर्ष का पुरस्कार (२०१३)
- ५ अप्रैल २०१३ को भारतीय रेलवे पर पहली महिला लोकोपायलट के लिए जीएम पुरस्कार (अप्रैल 2011)
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ & Rights 2001, p. 185.
- ↑ "Bold, Bindaas And Successful". Cityplus. 10 March 2011.
- ↑ "Mumbai Western Railway believes in woman-power". DNAIndia. 9 March 2011.
- ↑ "The woman in the engine". The Indian Express.
- ↑ Documentation on Women, Children & Human Rights. Sandarbhini, Library and Documentation Centre, All India Association for Christian Higher Education. 2001.